बीएमसी में नवजातों के नाम पर हुआ बड़ा घोटाला

सुरेन्द्र सेन, सागर

बुंदेलखण्ड मेडीकल कॉलेज है तो चिकित्सा संस्थान लेकिन अपने मूल कार्य चिकित्सा की जगह यह संस्थान घोटालों को लेकर हमेशा सुर्खियां बटोरता है। ताजा मामला न्यू बोर्न बेबी किट खरीदी का सामने आया है। जिसने बुंदेलखण्ड मेडीकल कॉलेज प्रबंधन की नियत पर सवाल खड़े कर दिये हैं कि किस तरह बीएमसी भ्रष्टाचार का गढ़ बनता रहा है। आलम यह है कि शासन के नियमों को दरकिनार कर यहां सिर्फ डीन की सरकार चल रही है जहां नवजात शिशुओं की बेबी किट भी इनके भ्रष्टाचार से अछूती नहीं बची। जानकारी के अनुसार 17 जनवरी को 2024 को 11 हजार 500 न्यू बोर्न बेबी किट की खरीदी बीएमसी में की गई थी। एक किट की कीमत 350 रुपए रखी गई और उसी हिसाब से यह बेबी किट बीएमसी में खरीदी जा चुकी हैं और अब इसका भुगतान करने की तैयारी की जा रही है। जबकि मध्यप्रदेश हेल्थ कॉर्पोरेशन लिमिटेड से अनुबंधित संस्था मध्यप्रदेश राज्य पावरलूम बुनकर सहकारी संघ मर्या. बुराहानपुर में इस बेबी किट की कीमत 156 रुपए है। नियम अनुसार बीएमसी को मप्र हेल्थ कॉर्पोरेशन से अनुबंधित संस्था से ही खरीदी करनी चाहिए जहां बेबी किट का मूल्य भी कम है। लेकिन दोगुने से भी अधिक दर पर बीएमसी प्रबंधन द्वारा खादी एवं ग्रामोद्योग एम्पोरियम, उज्जैन से यह 11 हजार 500 न्यू बोर्न बेबी किट 350 रुपए प्रति किट की दर से खरीद ली गई। जिससे बीएमसी को लगभग 20 लाख से अधिक चुकाने पड़ेंगे। जिससे साफ समझ में आता है कि कहीं न कहीं भ्रष्टाचार किया जा रहा है।

बीएमसी में बिना अनुबंध वाली संस्था से खरीदी

प्रदेश भर में स्वास्थ्य संबंधी उपकरण एवं अन्य सामग्री खरीदने के लिए मप्र हेल्थ कॉर्पोरेशन लिमि. का गठन किया गया है जोकि संस्थाओं से टेंडर मंगाते हैं तथा संस्थाओं से निर्धारित दरों पर उपकरण एवं सामग्री स्वास्थ्य संस्थानों में भेजी जाती है। नियम अनुसार बीएमसी को मप्र हेल्थ कॉर्पोरेशन से अनुबंधित संस्था से ही सामग्र्री लेनी चाहिए। अगर यहां की दरें अधिक हैं तो अपने वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा करने के उपरांत अन्य स्थान से सामग्री खरीदी जा सकती है, लेकिन बेबी किट के मामले में तो बीएमसी ने हद ही कर दी। जिस संस्था का अनुबंध नहीं है और उसके द्वारा दी गई सामग्री की कीमत भी दोगुने से अधिक है फिर भी महंगी सामग्री खरीद कर नियमों को तोड़ा गया है। अब यह बात समझ से परे है कि आखिर बीएमसी प्रबंधन की क्या मजबूरी थी कि नियमों को दरकिनार कर महंगी सामग्री खरीदी गई। सूत्रों की माने तो खरीदी के नाम पर कहीं न कहीं अपनों को उपकृत करने का यह प्रयास बीएमसी द्वारा किया गया है।

डीन को नहीं खरीदी की जानकारी

बीएमसी द्वारा मांग पत्र में डीन आरएस वर्मा के हस्ताक्षर हैं। जिससे साफ समझ में आता है कि पूरी खरीदी डीन की स्वीकृति से की गई है। लेकिन जब इस मामले को लेकर डीन आरएस वर्मा से बात की गई तो उन्होंने साफतौर से इंकार करते हुए कहा कि मुझे इस खरीदी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह अपने आप में एक बड़ा और चौकाने वाला मामला है कि बीएमसी में लाखों करोड़ों की खरीदी डीन आरएस वर्मा के हस्ताक्षरों से होती है और इस खरीदी की जानकारी भी डीन को नहीं होती। जिससे कहीं न कहीं यह भी सवाल खड़े होते हैं कि क्या कोई बीएमसी प्रबंधन में ऐंसा भी व्यक्ति है जो डीन के फर्जी हस्ताक्षर करके खरीदी कर रहा है, अगर है तो यह बड़ी जांच का विषय है। हालांकि, इस मामले में डीन ने जांच कराने की बात कही है। उन्होंने कहा कि मामला उनकी जानकारी में नहीं है, खरीदी में किस संस्था से खरीदी हुई तथा किसके रेट कम हैं इसकी जानकारी लेकर जांच की जाएगी।