भारत को कभी “सोने की चिड़िया” कहा जाता था और इसका बड़ा कारण था यहां की विशाल सोने की खदानें। इन्हीं में से एक है कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF), जो कर्नाटक में स्थित है। एक समय था जब यह खदान अंग्रेजों के खजाने का सबसे बड़ा स्रोत थी, लेकिन अब करीब 79 साल बाद इसे फिर से खोलने की तैयारी हो रही है।
सरकार की योजना है कि इस खदान को फिर से सक्रिय किया जाए, जिससे देश को हजारों करोड़ रुपये का फायदा हो सकता है। अगर यहां दोबारा खनन शुरू हुआ, तो हर साल लगभग 750 किलो सोना निकाला जा सकता है। इससे भारत की दूसरे देशों से गोल्ड खरीदने की निर्भरता कम होगी और विदेशी मुद्रा की बचत भी होगी।
अंग्रेजों ने भरा अपना खजाना
कोलार गोल्ड फील्ड्स का इतिहास बहुत पुराना है। अंग्रेजों के समय में यह सोने का सबसे बड़ा भंडार माना जाता था। वर्ष 1880 से लेकर 2001 तक इस खदान से करीब 900 टन सोना निकाला गया। अंग्रेजों ने इस सोने से अपनी तिजोरियां भर लीं। खास बात यह है कि 1943 तक ही 583 टन सोना निकाला जा चुका था।
आजादी के बाद क्या हुआ?
1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद, इस खदान का नियंत्रण कर्नाटक सरकार ने ले लिया। बाद में इसे भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड (BGML) को सौंपा गया। लेकिन जैसे-जैसे सोने का उत्पादन घटने लगा और लागत बढ़ने लगी, खदान घाटे में जाने लगी। अंततः वर्ष 2001 में खनन पूरी तरह बंद कर दिया गया।
अब क्यों दोबारा खोलने की तैयारी?
आज भी कोलार गोल्ड फील्ड्स में सोने का बड़ा भंडार होने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि खदान में अब भी हजारों किलो सोना मौजूद हो सकता है। अगर यह खनन फिर से शुरू हुआ, तो भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में यह एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा सोना खरीदने वाला देश है, और हर साल सैकड़ों टन गोल्ड विदेशों से आयात करता है। ऐसे में KGF का दोबारा खुलना लाखों करोड़ रुपये की बचत करा सकता है।
पौराणिक इतिहास भी है दिलचस्प
कोलार की खदान का उल्लेख चोल साम्राज्य (1004-1116) के शिलालेखों और ग्रंथों में भी मिलता है। बाद में विजयनगर साम्राज्य और टीपू सुल्तान (1750-1760) के समय में भी यहां सोना निकाला गया था। यानी यह खदान सिर्फ ब्रिटिश नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास का भी अहम हिस्सा रही है।