बंगाल चुनाव में भाजपा का नरम हिंदुत्व दांव, मुस्लिम वोटों से लिया सबक

बंगाल चुनाव : पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपनी रणनीति बदल दी है। नए प्रदेश अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य के नेतृत्व में पार्टी ने अब आक्रामक हिंदुत्व की जगह नरम हिंदुत्व को अपनाने का फैसला किया है। 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव और 2021 के विधानसभा चुनाव में पार्टी तृणमूल कांग्रेस को हराने में सफल नहीं हो सकी। उस समय भाजपा ने सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों को उठाया था, जिससे मुस्लिम वोटर टीएमसी के पक्ष में एकजुट हो गए थे। अब भाजपा इस ध्रुवीकरण की काट निकालने की कोशिश कर रही है।

चुनाव दर चुनाव यूं बदली तस्वीर

2014 में मोदी युग की शुरुआत के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति में बड़ा बदलाव आया। भाजपा के उभार से डरे मुस्लिम वोटर तेजी से टीएमसी के पक्ष में एकजुट होते गए। इससे कांग्रेस और वाम दलों की स्थिति कमजोर होती चली गई। 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटें और 12% वोट मिले थे, जबकि वाम दलों को 26 सीटें और 20% वोट मिले थे। लेकिन 2020 के चुनाव में दोनों पार्टियां लगभग खत्म हो गईं। कांग्रेस और वाम दल एक भी सीट नहीं जीत सके और इनके वोट प्रतिशत में 10% और 16% की गिरावट आई।

भाजपा का स्पष्ट रुख

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा कि पार्टी मुसलमानों के नहीं, बल्कि कट्टरपंथ के खिलाफ है। हमारा उद्देश्य है कि मुसलमानों के हाथों में पत्थर नहीं, किताब हो। उन्होंने बताया कि राज्य में राजनीतिक हिंसा के शिकार ज्यादातर लोग मुसलमान हैं। भाजपा चाहती है कि बंगाल में पहले जैसा सांप्रदायिक सौहार्द फिर से लौटे।

हम यह भी चाहते हैं कि दुर्गा पूजा और मुहर्रम के जुलूस शांति से साथ-साथ निकाले जाएं। उन्होंने कहा कि भाजपा मुसलमानों की शिक्षा और रोजगार की स्थिति को बेहतर बनाने की भी कोशिश करेगी। पार्टी का लक्ष्य समरस और शांतिपूर्ण समाज बनाना है।