BJP के मायूस नेता पुत्रों को संगठन चुनाव में भी जगह नहीं

स्वतंत्र समय, भोपाल

एमपी भाजपा ( BJP ) में परिवारवाद पर रोक या फिर परिवार में एक ही टिकट दिए जाने के फार्मूले के कारण राजनीतिक विरासत के जरिए विधानसभा या लोकसभा तक पहुंचने का सपना संजोने वाले नेता पुत्रों के सपने चकनाचूर होते दिख रहे हैं। खासकर विधानसभा चुनावों में दावेदारी जताने वाले नेता पुत्रों को संगठन चुनाव में भी पूछपरख नहीं है, जिससे उनके अरमानों पर पानी फिरता नजर आ रहा है।

BJP में नेता पुत्र मैदान से ही दिख रहे गायब

पिछले दिनों लोकसभा चुनाव और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा ( BJP ) को मिली जीत को पार्टी ने परिवारवाद को बढ़ावा न देने की उपलब्धि भी करार दिया। यही वजह है कि जो नेता पुत्र हमेशा से राजनीति में आगे दिखाई देते थे, वे अब मैदान से ही गायब हैं। ऐसे नेता पुत्रों में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय सिंह चौहान, पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव, विधानसभा स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र सिंह तोमर, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय, पूर्व मंत्री जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ, पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम तथा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्व. प्रभात झा के बेटे तुष्मुल शामिल हैं। ये सभी पहले राजनीति में जमकर सक्रिय थे। इधर, भाजपा अपने इस फार्मूले के चलते आकाश विजयवर्गीय और जालम सिंह पटेल के टिकट पहले ही काट चुकी है।

सालों से राजनीति में सक्रिय हैं कई नेता पुत्र… फिर भी पद नहीं

पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र सिंह तोमर (रामू) करीब10 वर्ष से राजनीति में सक्रिय हैं। विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट मिलने की उम्मीद थी पर पार्टी ने नरेंद्र सिंह तोमर को ही विधानसभा चुनाव मैदान में खड़ा कर दिया। इससे देवेंद्र की संभावना समाप्त हो गई। सागर जिले की रहली विधानसभा सीट से नौ बार के विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव भी बेटे अभिषेक को स्थापित करना चाहते हैं। वह दमोह या खजुराहो से लोकसभा चुनाव के टिकट के लिए दावेदारी भी कर रहे थे। लेकिन टिकट नहीं मिला। वहीं, जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ मलैया ने भी विधानसभा चुनाव में टिकट मांगा, लेकिन पार्टी ने उन्हें भी तवज्जो नहीं दी। लेकिन पार्टी ने फिर जयंत मलैया हो ही यहां से टिकट दिया। पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपनी बेटी मौसम को आगे बढ़ा रहे थे। उन्हें विधानसभा का टिकट भी मिला था पर लडऩे से मना कर दिया तो अंतत: बिसेन को ही चुनाव लडऩा पड़ा।