पंकज रामेंदु
प्रख्यात किताब ‘दर दर गंगे’ के लेखक
एक बार एक व्यक्ति को रात में जंगल पार करना था लेकिन उसके पास एक टॉर्च था, उसे लगा कि टॉर्च की रोशनी जंगल को पार करने के लिए काफी नहीं है, यह सोच कर पर वह वहीं जंगल के पास किनारे पर बैठ गया और सुबह का इंतज़ार करने लगा। तभी वहां से एक दूसरा आदमी हाथ में एक बहुत छोटा सा दिया लिए हुए जंगल की ओर जाने लगा। दूसरे आदमी को देखकर पहले आदमी को अजीब लगा कि मेरे पास कम से कम इससे ज्यादा रोशनी है फिर भी मैं जंगल जाने से बच रहा हूं लेकिन यह आदमी इतनी कम रोशनी में भी जंगल जाने की हिम्मत कर रहा है, बड़ा बहादुर है या फिर पागल है। उस शख्स ने उत्सुकतावश दूसरे आदमी को रोका और उसकी इस बेवकूफी की वजह जाननी चाही। दिया लेकर अंदर जा रहे शख्श ने कहा, भई इस घने जंगल में तुम कितनी भी रोशनी ले जाओ, जंगल को रोशन करने के लिए कम ही होगी। दूसरी तरफ देखें तो जंगल में जाने के लिए तुम्हें कितनी रोशनी की ज़रूरत होगी, सिर्फ अपने से अगले एक कदम भर की। मेरे दिए में इतनी रोशनी है कि वह मेरे कदम बढ़ाते ही एक कदम आगे बढ़ जाएगी और इस तरह से पूरा जंगल पार हो जाएगा। बस आपको कदम बढ़ाते जाना है और आगे बढ़ते जाना है।
Blood Donation समाज के अंधकार में रोशनी पैदा करने का उदाहरण
हमारे समाज में अक्सर लोग उस एक कदम और आगे बढ़ाने से ही डर जाते हैं और जंगल के अंधकार को देखते हुए सुबह के इंतज़ार में जंगल के बाहर ही रात गुजारने को राजी हो जाते हैं। और जो व्यक्ति जंगल के बाहर रात गुजारता है वह अपनी कहानियां, वचन और कथन पूरी दुनिया या समाज को सुनाता है और लोग उसे सत्य मान कर उसी अनुसार रात में एक दिये के सहारे जंगल पार करने से कतराने की पंरपरा का निर्वाह करने लग जाते हैं। कई बार यह रात इतनी लंबी हो जाती है कि हमारे इर्द गिर्द वक्त ऐसे जाले बुन देता है कि उससे बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही कुछ हमने हमारी परंपराओं और रिवाजों के साथ भी किया है जो यह सोच कर बनाई गई थी ताकि समाज में जुड़ाव बना रहे, हमने उसके पीछे के मंतव्य को ना समझते हुए बस हमसे पहले वाले के अनुसार उसका निर्वाह करना उचित समझा, ठीक जंगल ना पार करने वाले शख्स की कहानी की तरह। नतीजा यह निकला कि समाज की कई परंपराएं जिनका मकसद कुछ और था वह इस तरह समाज का अनिवार्य तत्व बन गई कि जो सक्षम था वह तो निबाह कर ही रहा है और जो अक्षम है वह भी समाज के अनकहे दबाव के चलते उसे निबाहने को मजबूर हो जाता है।
ऐसे में ज़रूरत होती है उस शख्स की जो खुद दिया लेकर जंगल में जाने की हिम्मत और वजह लोगों को बता सके। इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार राजेश राठौर भी ऐसे ही लोगों में से हैं। सामाजिक सरोकारों को लेकर उनकी पत्रकारिता को काफी सम्मान से लिया जाता है। हाल ही में उनके साथ एक दुखद घटना घटी जब उनके भाई मनोज राठौर दुनिया को छोड़ गये। राजेश राठौर ने अपने भाई की मृत्यु से उपजे अंधकार में भी समाज के लिए एक छोटी सी रोशनी पैदा करने का उदाहरण पेश किया। पगड़ी की रस्म के साथ रक्तदान ( Blood Donation ) शिविर का आयोजन करने का फैसला लिया। वजह साफ है किसी के जाने पर उसकी याद में कुछ ऐसा किया जाए कि वह समाज की स्मृतियों में मौजूद भी रहे और समाज में व्याप्त तिमिर के लिए एक छोटी सी रोशनी भी बन सके। क्योंकि रोशनी नहीं हमें कदम बढ़ाना होता है, रोशनी खुद व खुद आगे बढ़ जाती है।