बॉम्बे High Court ने 17 दिन की शादी को किया रद्द

स्वतंत्र समय, मुंबई

बॉम्बे हाईकोर्ट ( High Court  ) की औरंगाबाद पीठ ने एक युवा जोड़े की शादी को रद्द करने का फैसला सुनाया। दरअसल, शख्स शादी को सफल बनाने में सक्षम नहीं हो सका था, इसी को देखते हुए अदालत ने माना कि पीडि़ता की मानसिक स्थिति के लिए शादी रद्द करना ही ठीक है। न्यायमूर्ति विभा कंकणवाड़ी और न्यायमूर्ति एसजी चपलगांवकर की खंडपीठ ने 15 अप्रैल के फैसले में यह भी कहा कि यह उन युवाओं की मदद करने का मामला है, जो विवाह के बाद मानसिक, भावनात्मक या शारीरिक रूप से एक-दूसरे से जुड़ नहीं पाते हैं। एक 27 वर्षीय युवती ने इस साल फरवरी में एक परिवार अदालत द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज करने के बाद पीठ का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें शादी को रद्द करने की मांग की गई थी।

High Court से कहा शारीरिक संबंध बनाने में असमर्थ

अदालत ( High Court ) ने कहा कि इस तरह की नपुंसकता के लिए विभिन्न शारीरिक और मानसिक कारण हो सकते हैं। पीठ ने कहा कि इस मामले में साफ है कि शादी नहीं चलने का कारण पति की सापेक्ष नपुंसकता है। अदालत ने कहा कि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि यह मामला एक युवा जोड़े से जुड़ा है, जिन्हें शादी में निराशा झेलनी पड़ी। खंडपीठ ने कहा कि शख्स पहले इस बात को स्वीकार करने से संकोच कर रहा था कि उसे कुछ समस्या है। वह अपनी पत्नी को जिम्मेदार ठहरा रहा था। हालांकि, व्यक्ति ने स्वीकार कर लिया था। उसने माना कि यह नपुंसकता की सामान्य धारणा से कुछ अलग है और यह उनके जीवन पर कलंक नहीं बनेगा।

यह है मामला

व्यक्ति ने शुरू में परिवार अदालत के समक्ष एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा था कि शादी पूरी नहीं हुई थी। उसने इसके लिए महिला को दोषी ठहराया था। बाद में उसने मान लिया कि सापेक्ष नपुंसकता है। व्यक्ति ने दावा किया कि वह अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने में असमर्थ था, लेकिन अन्यथा वह सामान्य था। बयान में, उन्होंने कहा कि वह कोई कलंक नहीं चाहते थे इसलिए मानने को तैयार नहीं थे। इसके बाद, पत्नी ने एक आवेदन दायर कर अनुरोध किया कि परिवार अदालत ट्रायल करने के बजाय सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार प्रवेश के चरण में ही तलाक की याचिका पर फैसला करे। हालांकि, अदालत ने आवेदन को खारिज कर दिया था।