सीताराम ठाकुर, भोपाल
एक समय कांग्रेस-भाजपा ( BJP ) में ब्राह्मण नेताओं की भरमार हुआ करती थी, लेकिन अब कांग्रेस में ब्राह्मण नेता की कमी खल रही है। वहीं भाजपा में राज्य स्तर पर सर्वमान्य ब्राह्मण नेताओं की भरमार है। मप्र की राजनीति में ब्राह्मण समाज काफी दबदबा रखता है। ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में ये समाज वोटरों को प्रभावित करने का दम रखता है। वैसे प्रदेश में ब्राह्मण समाज 5 से 7 फीसदी ही है, लेकिन इनका दखल 65 फीसदी आबादी पर रहता है।
मप्र में ज्यादातर ब्राह्मण और ठाकुरों का ही राज
मप्र में करीब 50 फीसदी आबादी ओबीसी, 14 फीसदी एससी, 21 प्रतिशत एसटी और 15 फीसदी सामान्य वर्ग से आती हैं। इस 15 फीसदी में ब्राह्मण, ठाकुर (क्षत्रिय), जैन, वैश्य, कायस्थ, अल्पसंख्यक शामिल हैं, लेकिन सबसे ज्यादा दमदार भूमिका में ब्राह्मण नेता हमेशा आगे रहे हैं। मप्र में ठाकुर और ब्राह्मणों ने कई बार सरकार भी चलाई है। एक समय कांग्रेस में विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, राजेंद्र प्रसाद शुक्ल, मोतीलाल वोरा के बाद स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी, सत्यव्रत चतुर्वेदी, सुरेश पचौरी जैसे नेता रहे हैं। वहीं मप्र के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल, द्वारका प्रसाद मिश्र के बाद गोविंद नारायण सिंह, राजा नरेशचंद्र सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, कैलाश जोशी, अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा और दिग्विजय सिंह रहे हैं, लेकिन 2003 के बाद से ओबीसी वर्ग से ही मुख्यमंत्री बन रहे हैं। इस तरह मप्र में ज्यादातर ब्राह्मण और ठाकुरों का ही राज रहा है।
अब BJP में ब्राह्मण नेताओं की भरमार
पहले जनसंघ, फिर जनता पार्टी और बाद में भारतीय जनता पार्टी ( BJP ) में ब्राह्मण नेताओं में अटल विहारी वाजपेयी, कैलाश जोशी, अनूप मिश्रा, लक्ष्मीकांत शर्मा, रघुनंदन शर्मा, अनिल माधव दवे जैसे नेता रहे हैं। पीढ़ी परिवर्तन के बाद वर्तमान में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, डॉ. नरोत्तम मिश्रा, पंडित गोपाल भार्गव, कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले सुरेश पचौरी, डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल, जर्नादन मिश्रा, संजय पाठक, संजय शुक्ला ब्राह्मण नेता के रूप में भाजपा की शान बढ़ा रहे हैं। इनमें से ज्यादातर नेता कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए हैं। ब्राह्मण समाज से 70-80 फीसदी वोटर भाजपा को सपोर्ट करते हैं, जबकि कांग्रेस को सिर्फ12 प्रतिशत वोट ही मिल पाते हैं।
कांग्रेस में नहीं बचे दिग्गज ब्राह्मण नेता
मप्र के भीतर कांग्रेस में ब्राह्मण नेताओं का टोटा पड़ गया है। वर्तमान में सत्यव्रत चतुर्वेदी ने पार्टी से दूरी बना रखी है। श्रीनिवास तिवारी के बाद उनके पुत्र सुंदरलाल तिवारी विधायक रहे, उनके निधन के बाद पुत्र सिद्धार्थ तिवारी ने भाजपा का दामन थाम लिया है। बड़े नेता रहे सुरेश पचौरी भी भाजपा में जा चुके हैं। इस तरह कांग्रेस में सर्वमान्य राज्य स्तर पर कोई बड़ा नेता नहीं है और जो ब्राह्मण नेता बचे हैं, उनमें पीसी शर्मा, आलोक चतुर्वेदी, प्रवीण पाठक, हेमंत कटारे, मुकेश नायक, प्रताप भानु शर्मा, संजय शर्मा, नीरज शर्मा अपने क्षेत्र तक ही सीमित हैं। वहीं केके मिश्रा, जितेंद्र मिश्रा, मनोज शुक्ला आदि बड़े नेताओं में नहीं गिने जाते।
सरकार बनाने और बिगाडऩे का रखते हैं दम
साधु, संत, पंडित, पुजारी, शिक्षक और कथा वाचक के रूप में ब्राह्मण समाज के लोगों ने अपनी अलग छाप बनाई है, लेकिन ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्र में ब्राह्मण समाज के लोग वोटरों को प्रभावित करने का दम रखते हैं। वर्तमान में अधिकांश ब्राह्मण समाज भाजपा से जुड़ा हुआ है, जिसके कारण उसका लाभ भी भाजपा को मिल रहा है और कांग्रेस से दूरी की वजह से उसे नुकसान उठाना पड़ रहा है। यानि राजनीति में कांग्रेस की अपेक्षा अब भाजपा में ब्राह्मण नेताओं का बोलबाला है।