Braj Holi Festival 2023 होली हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। पूरे भारत में ये पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन कान्हा की नगरी मथुरा में इसका अलग ही उत्साह देखने को मिलता है।
Braj Holi Festival 2023 भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में ये रंगोत्सव 40 दिनों तक मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत वसंत ऋतु के प्रवेश करते ही हो जाती है। वसंत पंचमी पर मथुरा के मंदिरों में और होलिका दहन स्थलों पर होली का ढांडा गाड़े जाने के बाद से ही इस रंगोत्सव की शुरुआत हो जाती है।
परंपरा के अनुसार वसंत पंचमी के दिन बांके बिहारी मंदिर में सुबह की आरती के बाद सबसे पहले मंदिर के पुजारी भगवान बांके बिहारी को गुलाल का टीका लगाकर होली के इस पर्व का शुभारम्भ करते हैं। इस दिन मंदिर में श्रद्धालुओं पर भी जमकर गुलाल उड़ाया जाता है। इसके बाद रंग पंचमी वाले दिन इस रंगोत्सव का समापन होता है।
वसंत का आगमन होते ही ब्रज में पूरे मंदिर को पीले फूलों से सजाया जाता है। ब्रज (Braj Holi Festival) में 40 दिन तक चलने वाली होली का आनंद लेने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में कान्हा की नगरी पहुंचते हैं। फुलेरा दूज से मथुरा में होली की शुरुआत होती है और इस दिन ब्रज में श्रीकृष्ण के साथ फूलों के संग होली खेली जाती है। इसके अलावा यहां लड्डू मार और लट्ठमार होली का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। लट्ठमार होली के दिन लट्ठ की मार खाकर लोग भी खुद को धन्य मानते हैं।
Braj Holi Festival 2023 : लट्ठमार होली
भगवान कृष्ण की साथी राधा के जन्म स्थान बरसाना की लट्ठमार होली भारत के सबसे रंगीन पर्व होली मनाने के अपने अनूठे तरीके के लिए विश्वप्रसिद्ध है। बरसाने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना के पश्चात नंदगांव के पुरुष होली खेलने बरसाना गांव में आते हैं और बरसाना गांव के लोग नंदगांव में जाते हैं। इन पुरूषों को होरियारे कहा जाता है।
बरसाना की लट्ठमार होली के बाद अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ला दशमी के दिन बरसाना के हुरियार नंदगांव की हुरियारिनों से होली खेलने उनके यहां पहुंचते हैं। तब नंदभवन में होली की खूब धूम मचती है।
दरअसल बरसाना की लठामार होली भगवान कृष्ण के काल में उनके द्वारा की जाने वाली लीलाओं की पुनरावृत्ति जैसी है। माना जाता है कि कृष्ण अपने सखाओं के साथ इसी प्रकार कमर में फेंटा लगाए राधारानी तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे तथा उनके साथ ठिठोली करते थे जिस पर राधारानी तथा उनकी सखियां ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल वृंद भी लाठी या ढ़ालों का प्रयोग किया करते थे जो धीरे-धीरे होली की परंपरा बन गया। उसी का परिणाम है कि आज भी इस परंपरा का निर्वहन उसी रूप में किया जाता है।
जब नाचते झूमते लोग गांव में पहुंचते हैं तो औरतें हाथ में ली हुई लाठियों से उन्हें पीटना शुरू कर देती हैं और पुरुष खुद को बचाते भागते हैं। लेकिन खास बात यह है कि यह सब मारना पीटना हंसी खुशी के वातावरण में होता है। औरतें अपने गांवों के पुरूषों पर लाठियां नहीं बरसातीं. बाकी आसपास खड़े लोग बीच बीच में रंग बरसाते हुए दिखते हैं।
Braj Holi Festival 2023 इस होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग बरसाना आते हैं। यह लट्ठमार होली आजभी बरसाना की औरतों / लड़कियों और नंदगांव के आदमियों / लड़कों के बीच खेली जाती है।
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