By-Election 2024: झारखंड के पहले चरण में 43 विधानसभा सीटों के साथ-साथ 10 अन्य राज्यों की 31 विधानसभा सीटों और केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर भी मतदान शुरू हो गया है। वोटिंग सुबह 7 बजे से शुरू होकर शाम 5 बजे तक चलेगी। इन चुनावों के परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे।
केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा का मुकाबला भाजपा की नव्या हरिदास और लेफ्ट के सत्यन मोकेरी से है। सिक्किम की दोनों सीटों पर 30 अक्टूबर को ही सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (SKM) के दोनों प्रत्याशी निर्विरोध विजयी घोषित किए गए थे, इसलिए यहां मतदान नहीं हुआ।
10 राज्यों की 31 विधानसभा सीटों में उपचुनाव हो रहे हैं, जिनमें 28 विधायक सांसद बनने, 2 के निधन और 1 के दलबदल से रिक्त हुई थीं। इनमें 4 सीटें SC और 6 सीटें ST के लिए आरक्षित हैं। इन 31 सीटों में से 18 सीटें विपक्षी I.N.D.I.A ब्लॉक ने जीती थीं, जिनमें कांग्रेस के पास 9 सीटें थीं। वहीं, NDA ने 11 सीटें जीती थीं, जिनमें से 7 भाजपा के थे और 2 अन्य दलों के थे।
कर्नाटक की चन्नापटना विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए वोटिंग शुरू हो गई है। इस सीट से एनडीए ने जेडीएस नेता निखिल कुमारस्वामी को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने पांच बार के विधायक सीपी योगेश्वर को अपने टिकट पर चुनावी मैदान में उतारा है। यह मुकाबला दिलचस्प है, क्योंकि निखिल कुमारस्वामी का जेडीएस से राजनीति में प्रवेश और सीपी योगेश्वर का कांग्रेस से जुड़ा होना, दोनों ही पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है।
राजस्थान में 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के 11 महीने के भीतर सात सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं। इनमें से सलूंबर सीट पर भाजपा के अमृतलाल मीणा विधायक थे, जबकि बाकी छह सीटों पर कांग्रेस, भारतीय आदिवासी पार्टी और हनुमान बेनीवाल की RLP के पास विधायक थे।
इन उपचुनावों के नतीजे सीधे तौर पर राज्य सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा माने जा रहे हैं, खासकर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए। 2019 में भाजपा ने राजस्थान में लोकसभा चुनाव में 25 में से 18 सीटें जीती थीं, लेकिन यह परिणाम पहले के मुकाबले कमजोर थे, क्योंकि 2014 में भाजपा ने सभी 25 सीटें जीती थीं।
पिछले 5 सालों में कांग्रेस ने उपचुनावों में लगातार सफलता पाई है, जिसमें 89% उपचुनावों में पार्टी की जीत हुई है। हालांकि, हरियाणा में भाजपा की हालिया जीत से पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा है, फिर भी अगर इन उपचुनावों के नतीजे भाजपा के खिलाफ गए, तो यह पार्टी और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए एक सियासी संकट उत्पन्न कर सकता है।
बिहार की चार विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव को 2025 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। 2020 के विधानसभा चुनाव में इन चार सीटों में से तीन पर महागठबंधन का कब्जा था। अब इन उपचुनावों से यह देखा जाएगा कि बिहार में राजनीतिक दलों के बीच की कड़ी प्रतिस्पर्धा किस दिशा में जाती है।
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली NDA को लोकसभा चुनाव में 30 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इसमें मुख्य भूमिका नरेंद्र मोदी की थी या नीतीश कुमार के कार्यों का असर था। नीतीश कुमार को भरोसा है कि उपचुनाव में भी लोग उनके काम के आधार पर मतदान करेंगे, लेकिन यह देखने की बात होगी कि उनकी नेतृत्व में उपचुनाव में पार्टी को कितनी सफलता मिलती है।
वहीं, तेजस्वी यादव और उनके समर्थक 17 महीने की महागठबंधन सरकार के दौरान दी गई नौकरियों का प्रचार कर रहे हैं, हालांकि लोकसभा चुनाव में इसका कोई खास असर नहीं दिखा था। अगर इन उपचुनावों में महागठबंधन को उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिलते हैं, तो इससे तेजस्वी यादव की साख और नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं।
इस उपचुनाव की अहमियत जनसुराज पार्टी के लिए भी बहुत है, जो चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) द्वारा बनाई गई पार्टी है। पीके ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। हालांकि, यह देखना बाकी है कि बिहार की जातीय गणित में जनसुराज को कितना समर्थन मिलता है, जो 23 नवंबर को परिणाम आने के बाद स्पष्ट होगा।