स्वतंत्र समय, भोपाल
प्रोफेसरों के सालाना ग्रेड पे को लेकर अदालत में दो बार हारने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मामला कैबिनेट ( Cabinet ) में ले जाकर विवाद का हल तत्काल करने का फैसला लिया था। इससे प्रोफेसर्स भी कोर्ट केस विड्रा करने के लिए तैयार हो गए थे। मगर उच्च शिक्षा विभाग कैबिनेट के फैसले को ही तीन माह से दबाए बैठा है। विभागीय मंत्री की टेबल पर पहुंचते ही फाइल अटक गई है। इससे एक बार फिर विवाद की स्थिति बन गई है। राज्य सरकार का जोर अदालती मामलों के बोझ को कम करने पर है। मुख्यमंत्री के निर्देश हैं कि ऐसी कोशिश करें कि किसी को सरकार के खिलाफ अदालत जाने की नौबत ही न आए। विभागीय स्तर पर ही विवादों का निराकरण हो जाए। इसके लिए वे विवादित मामलों को कैबिनेट के जरिए निराकृत करने की पहल भी करने में पीछे नहीं हैं। मगर उच्च शिक्षा विभाग न कोर्ट के आदेश ही मान रहा है और न अपनी सरकार के फैसलों पर ही अमल कर पा रहा है।
Cabinet के फैसले पर तत्काल मंत्री इंदरसिंह के पास भेज दी
ऐसा ही मामला प्रोफेसर्स की एजीपी 9000 से 10000 करने का है। हाईकोर्ट में हार के बाद सरकार अपील में चली गई थी। अपील में भी सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा। मुख्यमंत्री के संज्ञान में पूरा मामला होने से उन्होंने पहल करते हुए पुराना आदेश निरस्त करते हुए 4 मार्च 2024 की कैबिनेट में उन्होंने प्रोफेसर्स को 10000 रुपए एजीपी देने का निर्णय लिया था। कोर्ट में किरकिरी होने के कारण विभाग को भी इसमें तत्काल कार्रवाई करना था। मगर आज तीन महीने इंतजार में ही बीत गए। इस बीच प्रोफेसर्स शासन द्वारा बार-बार दिए जा रहे रिकवरी के नोटिस से परेशान हैं और फिर अदालत की शरण लेने का मन बनाने लगे हैं। दूसरी तरफ उच्च शिक्षा विभाग अपनी ही सरकार के फैसले पर अमल नहीं कर पा रहा है। सूत्रों के मुताबिक विभाग ने कैबिनेट ( Cabinet ) के फैसले पर तत्काल कार्रवाई करते हुए मार्च में ही फाइल विभागीय मंत्री इंदरसिंह परमार के कार्यालय को भेज दी थी। मगर अब तक फाइल वहां से लौटी ही नहीं है। प्रोफेसर्स विभागीय अधिकारियों के लगातार चक्कर काट रहे हैं। मगर विवाद की स्थिति टलने की बजाय बढ़ती ही जा रही है।
क्या है पूरा विवाद
राज्य सरकार ने 2006 में प्रोफेसर्स को छठवां वेतनमान देते हुए एजीपी 10000 का लाभ दिया था। करीब ढाई साल तक सभी पात्र प्रोफेसर्स को इसका लाभ मिलता रहा। 30 माह बाद वित्त विभाग की आपत्ति के बाद शासन ने पुराना आदेश निरस्त करते हुए बढ़ी हुई एजीपी कम कर दी। इसके खिलाफ प्रोफेसर्स हाईकोर्ट चले गए। वहां प्रोफेसर्स के पक्ष में ही फैसला आया। सरकार अपील में गई, हवां भी हार गई। इस बीच सरकार ने 30 माह में ली गई बढ़ी हुई एजीपी की रिकवरी प्रोफेसरों से शुरू कर दी। इसके खिलाफ प्रोफेसर्स कोर्ट की शरण में हैं।
यह हुआ था समझौता
मुख्यमंत्री डॉ. यादव की पहल पर प्रोफेसर्स से समझौता किया गया था कि वे अपना केस विड्रा कर लें और सरकार पुराना आदेश बहाल कर देगी। प्रोफेसर्स की सहमति के बाद कैबिनेट में मामला ले जाकर सरकार ने मध्यप्रदेश शैक्षणिक सेवा (महाविद्यालयीन शाखा) भर्ती नियम, 1990 अंतर्गत कार्यरत सीधी भर्ती/पदोन्नत/पदनामित प्राध्यापकों को यू.जी.सी. छठवें वेतनमान में 1 जनवरी 2006 से रुपये 37400-67000+ए.जी.पी. 10 हजार रुपए का वेतनमान देने की स्वीकृति प्रदाय की थी। साथ ही 14 सितम्बर 2012 के विभागीय आदेश को संशोधित करने तथा 19 मार्च 2013 के विभागीय आदेश को निरस्त करने के लिए उच्च शिक्षा विभाग को अधिकृत किया था। मगर विभाग अब तक न पुराने आदेश को बदल सका है और न प्रोफेसर्स की रिकवरी ही रुक रही है। इस दोहरी व्यवस्था के चलते रिटायर होने वाले प्रोफेसरों के सामने कोर्ट जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बच रहा है।
ब्यूराके्रट्स का ईगो आ रहा आड़े
इस विवाद की मुख्य वजह ब्यूरोक्रेट्स ही माने जा रहे हैं। असल में 10000 एजीपी का लाभ कमिश्नर रैंक के आईएएस को भी नहीं मिलता है। ऐसे में उच्च शिक्षा विभाग में कई प्राचार्य और प्रोफेसर्स का वेतनमान अपने विभागीय प्रमुख से भी अधिक रहता है। यही वजह है यूजीसी का नया वेतनमान लागू करने को लेकर हमेशा विवाद होता रहता है।