स्वतंत्र समय, भोपाल
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह अफसरों की लापरवाही के कारण पुलों के निर्माण कार्य लेट हुए हैं। कैग ने मप्र में निर्मित पुलों के ऑडिट में कई गंभीर गड़बडिय़ों का खुलासा हुआ है। लोक निर्माण विभाग अपने काम में किस कदर लापरवाही करता है, इस का उदाहरण राजगढ़ जिले में देखा जा सकता है। दरसअल यहां पर अजनार नदी पर पुल का निर्माण होना था। 21 नवम्बर 2016 में वर्क आर्डर जारी हुए और निर्माण की समय सीमा 20 मार्च 2018 तय की गई। जब काम शुरू हुआ तो पता चला कि पुल के लिए जमीन का अधिग्रहण ही नहीं किया। 52 माह यानी चार साल से ज्यादा जमीन अधिग्रहण में लग गया। कैग की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2022 की स्थिति में पुल का काम अधूरा था। ऐसी स्थिति प्रदेश में 25 पुलों की है, जिनके निर्माण एक से लेकर पांच वर्ष तक जमीन की कमी से लेट हुए हैं। शासन ने भूमि अधिग्रहण में देरी का कारण 2013 में भारत सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन बताया। अदालतों में प्रकरणों का लंबित होना सहित कारण बताए। पुल और ब्रिज नहीं बनने से लोगों को नदी, रेलवे क्रासिंग पार करने में परेशानियां हुई। लोगों को कई किमी इधर-उधर घूमकर जाना पड़ा। बारिश में कई हादसे भी हुए।
कैग की रिपोर्ट में भोपाल, इंदौर, उज्जैन संभाग के पुलों में गड़बड़ियां
कैग ने रिपोर्ट में बताया कि कार्यादेश के साथ ठेकेदारों को काम के लिए 231.45 करोड़ की राशि भी दी गई। कार्यपालन यंत्री को यह तय करना था कि भूमि का अधिग्रहण हुआ या नहीं। भोपाल, इंदौर, रीवा, उज्जैन संभाग के पुलों में गड़बडिय़ां मिली। कैग ने अगस्त 2022 में रिपोर्ट बनाई, तब तक 15 पुल बने थे, 10 का काम जारी था। यही नहीं मप्र में निर्मित पुलों के ऑडिट में कई गंभीर गड़बडिय़ों का खुलासा हुआ है। टोटल 72 पुलों का ऑडिट किया गया था। पाया गया है कि 68 पुल निर्धारित समय पर बनकर तैयार नहीं हुए थे फिर भी ठेकेदारों को भुगतान कर दिया गया। इसके अलावा ठेकेदारों को और भी कई प्रकार के लाभ दिए गए। प्रदेश सरकार ने सन 2013 में एक नियम निर्धारित किया था कि सरकारी काम उपयोग किए जाने वाले गौण खनिज की रॉयल्टी ली जाएगी। संबंधित सरकारी ठेकेदार को रॉयल्टी अदा करनी होगी। इस नियम के अनुसार जब तक कोई ठेकेदार रायल्टी चुकाने के संबंध में अदेयता प्रमाण पत्र नहीं देता, उसका भुगतान नहीं किया जाना चाहिए। इसके बाद भी अक्टूबर 2020 से सितंबर 2021 के बीच भोपाल और उज्जैन संभाग के छह पुलों के निर्माण में ठेकेदारों को भुगतान कर दिया गया। इनके निर्माण में एक माह से 68 माह तक का विलंब हुआ। ठेकेदारों पर कार्रवाई भी नहीं की गई। शासन ने तर्क दिया कि विभिन्न तरह की अनुमतियां प्राप्त करने के कारण विलंब हुआ।
कैग की रिपोर्ट में इन पांच निर्माण की देरी चर्चा में
कैग की रिपोर्ट के अनुसार, पांच पुलों के निर्माण में हुई देरी सबसे अधिक चर्चा में रही। बुरहानपुर में आरओबी के अधिग्रहण में 52 माह की देरी से काम 38 माह लेट हुआ। निर्माण की स्वीकृति 19 जुलाई 2013 को हुई थी। जमीन अधिग्रहण में 92 माह लग गए जिससे काम 68 माह लेट हो गया। सीहोर के सलकनपुर-धर्मकुंडी मार्ग में नर्मदा पर पुल का निर्माण 15 फरवरी 2013 को स्वीकृत, जमीन अधिग्रहण में 13 माह की देरी से काम 51 माह लेट हो गया। बैतूल के सारनी-लोनिया रोड पर तवा नदी पर पुल निर्माण के कार्यादेश 8 दिसंबर 2015 को हुए। शहडोल के बरकछ-ब्यौहारी रोड पर झापर नदी में पुल निर्माण का कार्यादेश 17 अक्टूबर 2016 को हुआ। जमीन लेने में 52 माह की देरी से काम 37 माह लेट हुआ। रतलाम के चंदरिया रेल खंड में रेलवे ओवर ब्रिज के निर्माण का कार्यादेश 28 सितंबर 2018 को हुआ। जमीन अधिग्रहण का 33 माह लेट हुआ। इससे पुल का निर्माण कार्य 33 लेट देरी से हुआ। जबकि कार्यपालन यंत्री को जमीन अधिग्रहण के लिए पहले स्थानीय प्रशासन को प्रस्ताव भेजना था। स्थिति क्लीयर होने के बाद ही कायदिश निकालना था। सेवानिवृत्त ईएनसी प्रभाकांत कटारे का कहना है कि काम शुरू करने से पहले वैधानिक अनुमतियां लेना जरूरी होता है। जमीन अधिग्रहण करना एक अहम जिम्मेदारी है क्योंकि जमीन नहीं होगी तो ठेकेदार काम कैसे शुरू करेगा। यह जल्दबाजी में लिया गया निर्णय है। इससे विभाग और निर्माण एजेंसी के बीच में विवाद की स्थिति पैदा होती है।