डॉग अटैक से सहमी राजधानी, 2 करोड़ रुपए सलाना खर्च, पर कम नहीं हो रही कुत्तों की संख्या

स्वतंत्र समय, भोपाल

भोपाल के मीनाल रेजीडेंसी में स्ट्रीट डॉग्स के सात माह की बच्चे पर हमला करने से मौत का मामला गरमा गया है। इस मामले के बाद भोपाल कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने स्ट्रीट डॉग्स को पकडऩे के लिए वृहद अभियान चलाने के निर्देश नगर निगम को दिए है। कलेक्टर के इस आदेश के बाद नगर निगम के अधिकारी-कर्मचारी असमंजस में हैं। क्योंकि निगम द्वारा कुत्तों की नसबंदी पर हर साल करीब 2 करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन कुत्तों की तादाद कम होने की बजाय लगातार बढ़ रही है। शहर में बीते 10 सालों में स्ट्रीट डॉग्स की संख्या 30 हजार से बढकऱ 1.60 लाख पर पहुंच गई है। यानी शहर में हर साल औसतन 13,000 डॉग्स बढ़ रहे हैं।

गौरतलब है कि भोपाल में कुत्तों का आतंक लगातार बढ़ रहा है। अभी हालही में एक कुत्ते ने शहर में डेढ़ घंटे में 21 लोगों को काटा है। इतना ही नहीं आवारा कुत्ते ने 7 से 8 दूसरे कुत्तों को भी काटा है। जेपी अस्पताल में इंजेक्शन लगवाने के लिए लंबी कतार लग गई। हॉस्पिटल में रखे एंटी रेबीज इंजेक्शन कम पड़ गए। रात को ही फॉर्मेसी काउंटर खुलवाकर एंटी रेबीज इंजेक्शन लाने पड़े। यह स्थिति तब है जब नगर निगम डॉग्स की आबादी को कम करने के लिए लगातार काम कर रहा है।

हर साल 18 हजार से ज्यादा डॉग्स की नसबंदी

सालभर में 18 हजार से ज्यादा डॉग्स की नसबंदी की जाती है। इस पर हर साल करीब 2 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। लेकिन, डॉग्स की आबादी घटने के बजाय लगातार बढ़ रही है। ऐसे में जिम्मेदारों पर सवाल भी उठते रहे हैं। डॉग्स की नसबंदी की जिम्मेदारी नगर निगम के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. एसके श्रीवास्तव की है। वे मूलत: पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारी हैं। 2013 में उनको बतौर स्लाटर हाउस प्रभारी नगर निगम में संलग्न किया गया था, तब से लेकर अब तक डॉ. श्रीवास्तव यहीं जमे हैं। जबकि, इस दौरान उनकी कार्यशैली पर कई बार सवाल खड़े हुए हैं। लिखित शिकायतें हुई, लेकिन इनका बाल भी बांका नहीं हुआ। उधर, कुत्तों के नसबंदी के दावे के बीच संख्या कई गुना बढ़ी है। 30 हजार से बढकऱ 1.60 लाख के करीब पहुंच गई है। नगर निगम के आंकड़े बताते हैं कि एक नसबंदी पर 945 रुपए का खर्च आता है।

नगर निगम के प्रयास विफल

2019 में 25 पिंजरे रखवाए गए थे, इसमें करीब 50 ऐसे आवारा कुत्ते, जो किसी कारण से आक्रामक हो गए हैं उन्हें रखने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन कुछ दिन बाद पिंजरे गायब हो गए। 2019 में शहर के सभी वार्डों में आवारा कुत्तों के लिए फीडिंग सेंटर बनाने निर्देश दिए थे। ये सेंटर निगम को बनाने थे, लेकिन नहीं बने। 2017 में शहर में कुत्तों के लिए 4 शेल्टर होम बनाने प्रस्ताव पारित किया था। जमीन आवंटन के लिए फाइल प्रशासन को भेजी, लेकिन आवंटन नहीं हुआ। नगर निगम के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. एसके श्रीवास्तव कहते हैं कि मुझे 2013 में नगर निगम में बतौर स्लाटर हाउस प्रभारी संलग्न किया गया है। मैं तब से ही अपना काम पूरी जिम्मेदारी के साथ करता आ रहा हूं। कुछ लोग जरूर मेरे खिलाफ शिकायतें करते हैं, लेकिन उनके सारे आरोप निराधार साबित हुए हैं।

वैक्सीनेशन पर हर साल एक करोड़ का खर्च

शहर में हर साल करीब एक करोड़ रुपए के रेबीज इंजेक्शन लगाए जाते हैं। हमीदिया अस्पताल में हर साल डॉग बाइट के 6,000 मामले पहुंचते हैं। प्रत्येक मरीज को रेबीज के दो इंजेक्शन लगते हैं। एक इंजेक्शन की कीमत 400 रुपए मानें तो प्रति साल 11,520 डोज के लिए 46 लाख रुपए खर्च होते हैं। लगभग इतने ही इंजेक्शन हर साल जेपी अस्पताल में भी लगाए जाते हैं। वहीं निजी अस्पतालों में भी रेबीज के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। एडिशनल कमिश्नर रणबीर कुमार सिंह ने डॉग बाइट की बढ़ती घटना को लेकर कहा कि हमारी तरफ से लगातार प्रयास किया जा रहा है। आवारा कुत्तों से निपटने का वैक्सीनेशन ही एक तरीका है और वैक्सीनेशन किया जा रहा है। हमने आवारा कुत्तों को लेकर जो सेंटर बनाये है उसमें बढ़ोतरी की गई। उन्होंने बताया कि स्टेरलाइजेशन पहले जो सिर्फ एक था, अब तीन किए गए। आवारा कुत्ते तभी हमला करते हैं, जब उनका खाना नहीं मिलता है। कानूनी इजाजत नहीं देता कि हम और कहीं स्थानांतरित करें। हम सिर्फ जनसंख्या पर कंट्रोल करने का प्रयास कर सकते हैं।

 कागजों में नसबंदी

सूत्रों की मानें तो सोशल वर्कर्स की ओर से 2016 से डॉ. श्रीवास्तव की शिकायतें की जा रही हैं कि इनकी शह पर ही एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर वाले डॉग्स की फर्जी नसबंदी करते आए हैं। पहले नीलबड़ में संचालित एक एबीसी सेंटर पर और अब 3 इलाकों में संचालित एबीसी सेंटरों में गड़बडिय़ां उजागर होती रही हैं। पहले शहर में एक एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) सेंटर था, जिसे संस्था नवोदय वैट सोसायटी नीलबड़ में चलाती थी। निगम की ओर से प्रति नसबंदी इस संस्था को भुगतान किया जाता था। संस्था पर हमेशा गड़बड़ी के आरोप लगते रहे। ऐसे में निगम ने सालभर पहले शहर में तीन सेंटर स्थापित कर दिए। इनको तीन अलग-अलग संस्थाओं को संचालित करने के लिए दिया है। इनमें नवोदय वैट सोसायटी भी शामिल है। नगर निगम के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. एसके श्रीवास्तव ने एबीसी सेंटर्स को भ्रष्टाचार का केंद्र बना दिया है। दरअसल, डॉग्स की नसबंदी सिर्फ कागजों में होती हैं। यही वजह है कि इतनों सालों में डॉग्स की संख्या कम नहीं हुई है। शिकायतों के बाद भी डॉ. श्रीवास्तव को भी नहीं हटाया गया।