रविवारीय गपशप
अदालतों में चलने वाले मुकदमे कई बार छोटे छोटे उदाहरण से भी हल हो सकते हैं , लेकिन ये इस बात पर निर्भर करता है कि वे कितने सटीक और मौजूँ हैं । बात पुरानी है तब मैं उज्जैन में नगर निगम का आयुक्त हुआ करता था और इसके साथ ही महाकाल मंदिर के प्रशासक का दायित्व भी मेरे पास ही था । मंदिर का प्रवेश द्वार तब सामने से था , जहाँ से आज भी महाकाल की सवारी निकला करती है ।
प्रवेश द्वार के पड़ोस में एक प्याऊ हुआ करती थी , उसका उपयोग तो बहुत कम हुआ करता था , अलबत्ता उसकी आड़ में कुछ दुष्ट गण , लघु और दीर्घ शंका जरूर कर जाया करते थे । चूँकि ये प्याऊ मंदिर के प्रवेश के ठीक बराबर में थी तो ऐसी अवस्था में दुर्गन्ध और इस अव्यवस्था की शिकायत अक्सर हुआ करती थी । इस परेशानी को दूर करने को यह तय किया गया की प्याऊ को यहाँ से हटा कहीं और शिफ्ट किया जावे और उसकी जगह पुलिस चौकी बना दी जावे ।
शीघ्र ही इसपे अमल भी कर दिया गया पर इस शीघ्रता में ये कमी रह गयी कि पुरानी प्याऊ जिस दानदाता ने बनवाई थी उनको खबर करना या उनकी सहमति लेना रह गया था और इस बात को उन्होंने अन्यथा ले लिया । दानदाता ने इस बावत हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी कि प्याऊ वापस वहीं स्थापित की जाए । इस बीच कुछ ऐसा हुआ कि दुर्भाग्य वश मेरे पिता का देहावसान हो गया और इस कारण छुट्टी पर होने की वजह से मैं कोर्ट में हाज़िर न हो पाया और मंदिर का पक्ष सही प्रकार से न रख पाने के कारण न्यायालय ने ये आदेश दे दिया कि दानदाता जहाँ चाहे वहां मंदिर की ओर से प्याऊ बनवा के दी जाये और उसका व्यय प्रशासक उठाये । ये कुछ ज्यादा ही मेहरबानी हो गयी थी और दानदाता को ये निर्देश देने करने का अधिकार भी दे दिया गया था कि जहाँ वो कहे वहीं नयी प्याऊ बनवाई जायेगी । हमने अपील करने का निश्चय किया ।
उनदिनों बशीर अहमद खान साहब जो इंदौर हाईकोर्ट में प्रशासनिक जज भी थे , की डी.बी. चल रही थी । ख़ान साहब बड़े ज़हीन और प्रसिद्द जज थे । नगर निगम की ओर से हमारे अधिवक्ता होते थे , श्री विजयवर्गीय जो मंदिर की ओर से भी नियुक्त किये गए पर ये मामला कुछ विशेष था तो हमने किसी सीनियर अधिवक्ता को भी नियुक्त करना भी उचित समझा और इसके लिए एक सीनियर एडवोकेट श्री पावेचा साहब को हमने अपनी ओर से पैरवी करने के लिए नियुक्त किया । पावेचा साहब का चेम्बर हाईकोर्ट के पीछे ही था और जब विजयवर्गीय जी के साथ उनके पास जाकर हमने पूरी सूरत बयान की तो वे मुस्कुराए और बोले कोई बात नहीं आप निश्चिन्त रहो । नियत तारीख में हम अदालत में हाज़िर हुए , केस का नंबर आया और हम सब पीठ के सामने हाथ बांध कर खड़े हो गए । खान साब ने कहा हाँ बताइये क्या मामला है ?
पावेचा वकील साहब ने कहा कुछ नहीं माय लार्ड पिछले हफ्ते न्यायालय परिसर में जो वाटर कूलर का आपने उद्घाटन किया है उसे अब वहां से हटाया नहीं जा सकेगा , वो हमेशा वहीं रहेगा चाहे बार चाहे या जजेस । जज साहेब बोले क्या बकवास है ये , ये क्या बात हुई ? पावेचा जी बोले जी हां बस ऐसा ही कुछ महाकाल मंदिर की इस प्याऊ का मामला है और बस कुछ ही क्षणों में फाइल देखने के बाद अदालत ने इस मामले में निचली अदालत के आदेश के विरुद्ध स्थगन आदेश जारी कर दिया और जब अंतिम आदेश जारी हुआ हुआ तो वो एक नजीर बना । न्यायालय ने आदेश किया कि दानदाता एक बार दान कर देता है तो दान की वस्तु में उस पर उसका अधिकार समाप्त हो जाता है और इस तरह मंदिर का उस प्याऊ पर पूर्णाधिकार स्थापित हो गया ।