गर्भावस्था में सावधानी जरूरी, नहीं तो बच्चे का दिल बन सकता है कमजोर

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपनी सेहत का विशेष ध्यान रखना बहुत जरूरी है। यदि इस दौरान लापरवाही होती है, तो बच्चे के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ सकता है। खासकर जन्मजात हृदय रोग (Congenital Heart Disease – CHD) का खतरा बढ़ जाता है। भारत में हर साल लगभग 2 लाख बच्चे CHD का शिकार होते हैं। पहले यह दुर्लभ माना जाता था, लेकिन अब हर 100 बच्चों में से लगभग 8 बच्चे किसी न किसी प्रकार के जन्मजात हृदय रोग के साथ पैदा हो रहे हैं।

कर्नाटक और पूरे भारत में बढ़ते मामले

हाल ही में कर्नाटक से एक रिसर्च सामने आई है, जिसमें पिछले तीन सालों में लगभग 41 हजार स्कूली बच्चे CHD का शिकार पाए गए। यह सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं है, पूरे भारत में ऐसे मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। Indian Academy of Pediatrics के अनुसार, इनमें से लगभग हर पांचवे बच्चे में बीमारी के गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं। उत्तर भारत के कुछ राज्यों में यह समस्या और अधिक गंभीर है।

बच्चे क्यों होते हैं CHD के शिकार?

दिल्ली के आरएमएल हॉस्पिटल के पूर्व प्रोफेसर और कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. तरुण कुमार बताते हैं कि CHD कई तरह की हार्ट डिजीज का समूह है। इसमें दिल में छेद होना, वाल्व का बंद होना या हार्ट की नस का गलत दिशा में मुड़ जाना जैसी परेशानियाँ शामिल हैं।

प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ स्वास्थ्य समस्याएं इस बीमारी का कारण बन सकती हैं:

  • यदि गर्भवती महिला को डायबिटीज है और यह नियंत्रित नहीं है।
  • थाइराइड की समस्या यदि अनकंट्रोल में हो।
  • गर्भावस्था में दवाओं या ड्रग्स का अधिक इस्तेमाल।

CHD के लक्षण क्या होते हैं?

दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुपरीटेंडेंट डॉ. एल.एच. घोटेकर बताते हैं कि CHD के लक्षण बच्चों में अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य लक्षण जन्म के तुरंत बाद दिखाई दे सकते हैं। इनमें सांस लेने में तकलीफ, नीली त्वचा या थकान जैसी समस्याएं शामिल हैं।

पहचान और समय पर उपचार जरूरी

आज के समय में कई तकनीकें मौजूद हैं जिससे जन्मजात हृदय रोग की पहचान पहले ही की जा सकती है।

  • प्रेगनेंसी के दौरान फिटल इकोकार्डियोग्राफी टेस्ट कराया जा सकता है।
  • इसके अलावा इको टेस्ट और अन्य डायग्नोस्टिक टेस्ट भी संभव हैं।
  • यदि बीमारी की पहचान समय पर हो जाए, तो उपचार के लिए दवाएं, सर्जरी और गंभीर मामलों में हार्ट ट्रांसप्लांट तक किया जा सकता है। उपचार की योजना इस बात पर निर्भर करती है कि बच्चे की समस्या कितनी गंभीर है।

सावधानियां और बचाव

  • गर्भावस्था में नियमित स्वास्थ्य जांच कराना।
  • डायबिटीज और थाइराइड जैसी समस्याओं को नियंत्रित रखना।
  • किसी भी दवा या ड्रग्स का इस्तेमाल केवल डॉक्टर की सलाह से करना।