चीतों को रास नहीं आ रहा मध्यप्रदेश का मौसम

स्वतंत्र समय, भोपाल

मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीका से जो चीते लाए गए थे, उनमें अब सिर्फ 17 जीवित बचे हैं और 10 चीतों की मौत हो चुकी है। हालांकि इन चीतों का भारत का मौसम रास नहीं आ रहा है या फिर कोई दूसरी वजह है, ये अब तक क्लीयर नहीं हो पाया है। अभी हाल ही में नामीबियाई चीता शौर्य की मौत हो गई, सितंबर 2022 के बाद से ये 10वीं मौत है। शौर्य की मौत किन वजहों से हुई, इसको लेकर वन विभाग ने बताया कि इसकी वजह स्पष्ट नहीं है। मार्च 2023 से, कूनो में अलग-अलग वजहों से शौर्य समेत 7 वयस्क चीतों और तीन शावकों की मौत हो गई है, जिससे मरने वालों की संख्या 10 हो गई है। अब तक मरने वाले वयस्क चीतों में तीन मादा और चार नर शामिल हैं। इनमें 27 मार्च को साशा, 23 अप्रैल को उदय, 9 मई को दक्ष, 11 जुलाई को तेजस, 14 जुलाई को सूरज, 2 अगस्त को धात्री और 16 जनवरी को शौर्य की मौत हो गई।

तीन शावकों की हो चुकी मौत

इनके अलावा नामीबिया से लाई गई मादा चीता ज्वाला ने चार शावकों को जन्म दिया था। जिनमें 23 मई को एक और 25 मई को दो शावकों की मौत हो गई। नामीबिया से लाए गए चीतों में से अबतक 10 की मौत हो चुकी है और कूनो नेशनल पार्क में जीवित बचे चीतों की संख्या अब सिर्फ 17 बची रह गई है, जिनमें छह नर, सात मादा और चार शावक शामिल हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सोशल मीडिया के जरिए बताया था कि नामीबियाई चीता आशा ने तीन शावकों को जन्म दिया है।

प्रोजेक्ट चीता के तहत नामीबिया से लाए गए थे

बता दें कि चीता को साल 1952 में देश से विलुप्त प्रजाति घोषित कर दिया गया था। भारत में उनकी आबादी को पुनर्जीवित करने की केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के हिस्से के रूप में चीतों को साउथ अफ्रीका और नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क में ट्रांसफर किया गया था। चीता प्रोजेक्ट के तहत 17 सितंबर, 2022 को नामीबिया से आठ चीते लाए गए थे। इनमें पांच मादा और तीन नर चाते शामिल थे। इसके बाद फरवरी, 2023 में 12 चीतों को साउथ अफ्रीका से लाया गया था। बीते साल दिसंबर में चार चीतों को जंगल में छोड़ दिया गया था, लेकिन उनमें से दो को बाद में पकड़ लिया था। चीतों की मौत को लेकर बीते साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई थी। शीर्ष अदालत ने सरकार से इस पर हलफनामा दायर करने को कहा था, जिसमें मौत की वजह और उसके बचाव में क्या कदम उठाए गए, इसकी जानकारी देनी थी।

पेंच टाईगर रिजर्व से प्रदेश में भेजे सबसे ज्यादा चीतल

सिवनी जिले के पेंच नेशनल पार्क से प्रदेश के कई स्थानों पर चीतल भेजे जा रहे है। जानकारी के अनुसार, सभी टाइगर रिजर्व की अपेक्षा पेंच टाइगर रिजर्व से कई स्थानों पर सबसे अधिक चीतल भेजे जा चुके हैं। अब भी पेंच में बोमा तकनीक से चीतलों को पकड़कर अन्य स्थानों पर शिफ्ट करने का काम चल रहा है। प्रदेश के टाइगर रिजर्व से अब तक 7500 चीतलों की अन्य स्थानों पर शिफ्टिंग की गई है। इसमें से अकेले पेंच टागर रिजर्व से 3600 चीतल कूनो पालपुर, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व व खंडवा भेजे जा चुके हैं। प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व में से पेंच में सबसे अधिक चीतल हैं। यही कारण है कि यहां से सबसे ज्यादा चीतल अन्य स्थानों पर भेजे जा रहे हैं। पेंच राष्ट्रीय उद्यान के डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह ने बताया कि चीतलों की संख्या बढऩे का मुख्य कारण यहां घास के मैदान अधिक होना है। कन्हा और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान पर घास के मैदान कम है। वहीं यहां के जंगल क्षेत्र में घास कम और छोटी-छोटी झाडिय़ां ज्यादा है। पेंच टाइगर रिजर्व में घास के मैदान अधिक है। साथ ही यहां सागौन, गरारी व मिश्रित पेड़ है। इन पेड़ों के आसपास प्रचुर मात्रा में घास होती है। वहीं यहां बड़े क्षेत्रफल में लगे लेंटाना को भी समय-समय पर साफ किया जाता है। इससे इस स्थान पर भी घास ऊग आती है। इस तरह पूरे पेंच टाइगर रिजर्व में घास हैं। चीतल घास वाले क्षेत्र में ही रहना पसंद करते हैं। इसलिए अन्य राष्ट्रीय उद्यानों के स्थान पर पेंच टाइगर रिजर्व में चीतलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पेंच राष्ट्रीय उद्यान में चीतलों को पकडऩे के लिए पुरानी बोमा पद्धति अपनाई जा रही है। इस पद्धति में चीतल के रहवासी क्षेत्र में लकड़ी का खूंटा गड़ा का पर्दा व नेट से बड़े क्षेत्रफल को कवर कर बोमा तैयार किया जाता है। चीतलों को आकर्षित करने के लिए उनका पसंदीदा चारा के अलावा समय-समय पर महुआ रखा जाता है। बोमा के अंदर मौजूद कर्मचारी चीतलों के बोमा में आते ही उसका गेट बंद कर देता है। इसके बाद बोमा के गेट में वाहन खड़ा किया जाता है।
गेट खुलते ही हड़बड़ाहट में बोमा के अंदर फंसे चीतल सीधे वाहन में चढ़ जाते हैं। इसके बाद इन चीतलों को शिफ्ट कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया की खास बात है कि इसमें चीतलों को बिना हाथ लगाए व बिना बेहोश किए नैसर्गिक तौर पर पकड़ा जाता है। इससे चीतलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। पेंच नेशनल पार्क के डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह का कहना है कि पेंच टाइगर रिजर्व से सतपुडा़, नौरादेही, कूनों और खंडवा में अब तक 3601 चीतल भेजे जा चुके हैं। पेंच में घास के मैदान अच्छे है। इसलिए पेंच टाइगर रिजर्व में चीतलों की संख्या बढ़ रही है। बोमा पद्धति से पकडकऱ चीतलों को शिफ्ट किया जा रहा है। प्रदेश में सबसे ज्यादा चीतल पेंच से भेजे गए हैं।
विनोद / 18 जनवरी 24