छिंदवाड़ा: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा नगर निगम में काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों के लिए रविवार की सुबह एक बुरी खबर लेकर आई। निगम प्रशासन ने शनिवार को एक आदेश जारी कर 485 अस्थायी कर्मचारियों की सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दीं। इस फैसले से कर्मचारियों और उनके परिवारों में हड़कंप मच गया है और उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
यह महत्वपूर्ण निर्णय महापौर विक्रम अहाके की अध्यक्षता में हुई मेयर-इन-काउंसिल (MIC) की बैठक में लिया गया। बैठक में निगमायुक्त ने निगम की खराब आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए कर्मचारियों की संख्या कम करने का प्रस्ताव रखा था, जिसे परिषद ने सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी।
आर्थिक संकट बना छंटनी का बड़ा कारण
सूत्रों के अनुसार, छिंदवाड़ा नगर निगम पिछले कुछ समय से गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा है। निगम की मासिक आय और खर्च के बीच एक बड़ा अंतर आ गया था। इन अस्थायी कर्मचारियों के वेतन पर ही हर महीने 1 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च हो रहा था, जो निगम के लिए एक बड़ा बोझ बन गया था। प्रशासन का कहना है कि इसी वित्तीय दबाव को कम करने और व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए यह कठोर कदम उठाना आवश्यक हो गया था।
कौन हुआ बाहर और किसकी नौकरी बची?
इस फैसले से पहले नगर निगम में कुल 721 अस्थायी कर्मचारी विभिन्न विभागों में कार्यरत थे। नए आदेश के बाद इनमें से 485 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। हटाए गए कर्मचारियों में सफाई, जल प्रदाय और अन्य शाखाओं में दैनिक वेतनभोगी या कलेक्टर रेट पर काम करने वाले लोग शामिल हैं।
हालांकि, निगम ने 236 कर्मचारियों की सेवाएं बरकरार रखी हैं। बचाए गए कर्मचारियों में वे लोग शामिल हैं जो आवश्यक सेवाओं जैसे जल आपूर्ति, बिजली व्यवस्था और वाहन संचालन (ड्राइवर) से सीधे तौर पर जुड़े हैं। प्रशासन का तर्क है कि शहर की बुनियादी सेवाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन कर्मचारियों की निरंतरता आवश्यक है।
फैसले पर गरमाई सियासत
नगर निगम में इस बड़ी छंटनी को हालिया राजनीतिक घटनाक्रम से भी जोड़कर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि महापौर विक्रम अहाके ने कुछ समय पहले ही कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामा था। इस फैसले को उनके इस राजनीतिक बदलाव के बाद निगम की वित्तीय स्थिति को नियंत्रित करने के एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इसका एकमात्र कारण वित्तीय संकट ही बताया गया है। इस निर्णय के बाद शहर में राजनीतिक माहौल भी गरमा गया है।
सेवा समाप्ति के आदेश के बाद प्रभावित कर्मचारी हैरान और परेशान हैं। कई कर्मचारी वर्षों से निगम में अपनी सेवाएं दे रहे थे और अब अचानक नौकरी जाने से उनके परिवारों के सामने भविष्य की चिंता खड़ी हो गई है।