शोधकर्ता ने किया बड़ा खुलासा
अयोध्या। सैकड़ों वर्षों और हजारों बलिदानों के बाद आखिरकार राम भक्तों का सपना साकार होने जा रहा है। रामनगरी में जन-जन के आराध्य प्रभु श्रीराम का भव्य और दिव्य मंदिर निर्माण हो रहा है। ठीक 11 महीने बाद राम लला अपने गर्भ गृह में विराजमान हो जाएंगे, लेकिन किस स्वरूप में इसका किसी को कुछ नहीं पता है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से नेपाल से आए दो विशालकाय पत्थरों को लेकर देशभर में काफी चर्चाएं हो रही हैं। देशभर से श्रद्धालु अयोध्या पहुंच कर पत्थर की पूजा-अर्चना कर रहे हैं, लेकिन राम भक्त जिसे शालिगराम शिला मानकर पूज रहे हैं असल में वो शालिगराम नहीं देव शिला है। दरअसल यह दावा शीला पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक ने किया है।
भूगर्भीय वैज्ञानिक डॉ.कुलराज चालीसे ने बताया कि वे कई महीनों से इस विशालकाय शिला पर रिसर्च कर रहे हैं। ऐसे में अयोध्या लाई गई शिला काफी अनमोल है। इस देव शीला पर लोहे के औजार से नक्काशी नहीं की जा सकती है. हालांकि इस शिला पर नक्काशी करने के लिए हीरा काटने वाले औजार का प्रयोग करना पड़ेगा। साथ ही बताया कि मां जानकी की नगरी से भगवान राम के स्वरूप निर्माण के लिए लाई गई देवशिला 7 हार्नेस की है। इसीलिए इस पर लोहे की छेनी से नक्काशी नहीं की जा सकती है। क्योंकि लोहे में 5 हार्नेस पाए जाते हैं।
करीब 7 महीने से चल रहा रिसर्च
भूगर्भीय वैज्ञानिक डॉ. कुलराज चालीसे का कहना है कि पिछले जून माह से हमारी टीम इस पत्थर पर रिसर्च कर रही है। डॉ. कुलराज का कहना है कि जब हम अयोध्या आए तो हमें पता चला कि नेपाल की गंडकी नदी में पाए जाने वाले शालिग्राम शिला से भगवान श्रीराम की मूर्ति का निर्माण कराया जाना है, तभी से हम रिसर्च कर रहे हैं। हम अपनी पहली रिपोर्ट भी सौंप चुके है। दरअसल नेपाल के काली गंडकी नदी से दो विशालकाय शालिगराम शिला अयोध्या लाए गए हैं। इन्हें अयोध्या के रामसेवकपुरम में रखा गया है। इसमें एक शिला 26 टन और दूसरी सिला 14 टन की है। साधु-संत, महंत और राम भक्तों के बीच इस बात की चर्चा काफी तेज है कि इसी शिला से भगवान राम समेत चारों भाइयों की प्रतिमाएं बनाई जाएंगी।