City को लंबा नहीं ऊंचा होना चाहिए ….!


लेखक
संजय वर्मा

शहर ( City ) आबादी के बोझ से कराह रहे हैं। ट्रैफिक, सडक़ें, पीने का पानी, गंदे पानी पानी की निकासी हर शहर के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं । क्या इन समस्याओं का संबंध शहरों के बेतरतीब फैलाव से है? क्या एक वर्टिकल सिटी बना कर इन समस्याओं को सुलझाया जा सकता है? इन दिनों सारी दुनिया के इंजीनियर इस बात पर बहस कर रहे हैं कि आधुनिक शहरों की मुश्किलों को क्या ऊंची इमारतों वाले शहर जिसे वर्टिकल सिटी कहा जाता है, बनाकर दूर किया जा सकता है इन दिनों 15 मिनट सिटी बनाने पर बात हो रही है, जहां शहर की किसी भी जगह सिर्फ 15 मिनट में पहुंचा जा सके।

भारत की बड़ी आबादी लगातार City में आ रही है

यह बहस हमारे जैसे देश में और भी जरूरी हो जाती है क्योंकि भारत की एक बड़ी आबादी रोजगार और दीगर कारणों से गांव से लगातार शहरों ( City ) में आ रही है , जिसके बोझ तले शहरों का बुनियादी ढांचा चरमरा रहा है । दूसरे भारत के पास दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी है और दुनिया की कुल ज़मीन का सिर्फ 2.4 फ़ीसदी हिस्सा है , ऐसे में शहरों को फैलाने का मतलब होगा जंगल और खेतों से जमीन छीन कर उन पर लोगों को बसाना जो आबोहवा के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

दुनिया के विकसित देशों में रहवास की जगह, काम की जगह से दूर शांत ,सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में होती है । यह ख्याल बेशक रूमानी है, पर इसे अपनाने से पहले हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वहां जनसंख्या कम है ,आवाजाही के लिए बड़ी सडक़ें हैं, कारें हैं ,काम के घंटे और दिन कम है ,और आमदनी ज्यादा है । यदि हम शहरों को फैलाते हैं तो लोग काम-धंधे ,पढ़ाई ,इलाज ,मनोरंजन आदि के लिए उपनगरों से मुख्य नगर आते ही हैं । इतने सारे लोग जब रोज आवाजाही करते हैं , तब सडक़ों, यातायात के साधनों पर ज्यादा दबाव आता है । ट्रैफिक जाम ,प्रदूषण , सडक़ दुर्घटनाएं ये तमाम चीजें लोगों की आवाजाही करने से जुड़ी हैं।वर्टिकल सिटी के हिमायतियों का कहना है कि हमारे जीवन की बहुत सी समस्याओं की वजह हमारे शहरों की गलत प्लानिंग है । पहले हम लोगों को दूर दूर बसा देते हैं , फिर प्रदूषण ,ट्रैफिक जाम का रोना रोते हैं ,और सार्वजनिक यातायात के नाम पर नाकामयाब तजुर्बे करते हैं ।

मुंबई जैसे शहरों का हाल देखकर उनकी बातें सही लगती हैं ,जहां पूरे इन्फ्रास्ट्रक्चर का दम निकल रहा है । फैले हुए शहरों में लोग रोज 3 से 4 घंटे का समय आवाजाही में गंवाते हैं। यह उस व्यक्ति की ऊर्जा और समय की बर्बादी है जिसे किसी समाज उपयोगी काम में लगाया जा सकता था ।इतनी आवाजाही का बुरा असर लोगों के पारिवारिक जीवन और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है ,क्योंकि उनके पास मनोरंजन या सामाजिक मेलजोल के लिए कोई समय नहीं बचता । लंबाई चौड़ाई में फैले शहर को पीने के पानी , बिजली , गंदे पानी को इक_ा करने के लिए दूर-दूर तक लाइनें बिछाना पड़ती हैं । इन लाइनों को बनाना और मेंटेन करना महंगा काम है । दूर दूर से कचरे को इकठ्ठा करना उसका निस्तारण स्थल तक पहुंचना भी खर्चीला और मेहनत का काम है। इंदौर जैसे छोटे शहर में भी एक गरीब मजदूर अपनी आमदनी का 10 फ़ीसदी घर से कार्य स्थल तक आने जाने में में खर्च कर देता है।

वर्टिकल सिटी का एक बड़ा फायदा यह होता है कि ऊंची इमारतों के बीच खाली जगहें होती हैं , जहां बगीचे ,खेल के मैदान और सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए खुली जगह छोड़ी जाती हैं । ये खुली जगहें , लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है जो मौजूदा शहर के मॉडल में कम होती जा रही हैं ।

वर्टीकल सिटी एक आधुनिक विचार है , क्योंकि कुछ बरसों पहले तक इंजीनियरिंग इतनी उन्नत नहीं थी कि इस तरह का शहर बसाया जा सके। पत्थर और लकड़ी से बनी इमारतों की अपनी सीमा थी । आरसीसी (सरिये और सीमेंट) के अविष्कार के बाद बहुमंजिला इमारतों का चलन बढ़ा ,परंतु आरसीसी की भी अपनी एक सीमा है । ताकत के मुकाबले अधिक वजन होने की वजह से आर सी सी की इमारतों का वजऩ बहुत बढ़ जाता है ,जिससे एक तो निर्माण की लागत बढ़ जाती है दूसरे जितनी ऊंची इमारत उतनी ही गहरी नींव खोदना पड़ती है । पर आधुनिक सिविल इंजीनियरिंग ने स्टील बिल्डिंग्स के रूप में हमें इसका समाधान दे दिया है । इसलिए सारी दुनिया अब स्टील बिल्डिंगस अपना रही है , जिसमें सौ मंजिल से भी ऊंची इमारतें आसानी से बनाई जा सकती हैं । मगर हमारे यहां नक्शा पास करने के नियम पुराने हैं और ऊंची इमारतों के लिए सरकार और अधिकारी मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं

आधुनिक इंजीनियरिंग ने हमें मौका दिया है कि हम ऊंची इमारतों का एक ऐसा शहर बनाएं जहां आप अपने घर से दफ्तर ,स्कूल ,बगीचे या सिनेमाघर कुछ सेकंड या मिनटों में पहुंच जाएं ताकि आपका जीवन ट्रैफिक में हॉर्न बजाते झुंझलाते और अपना ब्लड प्रेशर बढ़ाते हुए न बीते बल्कि आपके पास खुद के लिए और अपनो के लिए ज़्यादा समय हो।
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं)