CJI सूर्यकांत का बड़ा सवाल- पिता ही क्यों? मां की जाति के आधार पर भी क्यों नहीं मिल सकता जाति प्रमाण पत्र?

Delhi News : सुप्रीम कोर्ट ने जाति प्रमाण पत्र जारी करने के पुराने नियमों पर एक अहम सवाल खड़ा किया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि बदलते सामाजिक परिवेश में केवल पिता की जाति को ही आधार क्यों माना जाए? उन्होंने कहा कि मां की जाति के आधार पर भी बच्चों को जाति प्रमाण पत्र जारी करने पर विचार किया जाना चाहिए।
यह टिप्पणी उस वक्त आई जब अदालत एक ऐसी याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक मां ने अपने बच्चों के लिए अपने समुदाय (अनुसूचित जाति) के आधार पर सर्टिफिकेट की मांग की थी।
क्या है पूरा मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला एक ऐसी महिला से जुड़ा है जिसने तहसीलदार से अपने तीन बच्चों (दो बेटियां और एक बेटा) को अनुसूचित जाति (SC) का प्रमाण पत्र देने का अनुरोध किया था। महिला का तर्क था कि वह हिंदू आदि द्रविड़ समुदाय से ताल्लुक रखती है, जो अनुसूचित जाति के अंतर्गत आता है।
महिला ने अपनी अर्जी में बताया कि शादी के बाद से ही उसका पति उसके माता-पिता के घर पर रह रहा है। यानी बच्चे अपनी मां के पारिवारिक माहौल और समुदाय के बीच ही पले-बढ़े हैं। इसलिए, बच्चों की जाति का निर्धारण पिता के बजाय मां की जाति के आधार पर किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
सुनवाई के दौरान CJI सूर्यकांत ने इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की बात कही। उन्होंने कहा, “बदलते समय के साथ माता की जाति के आधार पर जाति प्रमाण पत्र क्यों नहीं जारी किया जाना चाहिए? इसका मतलब यह होगा कि किसी अनुसूचित जाति की महिला के उच्च जाति के पुरुष से विवाह से पैदा हुए और उच्च जाति के पारिवारिक परिवेश में पले-बढ़े बच्चे भी अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के हकदार होंगे।” — CJI सूर्यकांत
अदालत की यह टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पितृसत्तात्मक व्यवस्था से अलग हटकर मां के अधिकारों और बच्चों के पालन-पोषण के माहौल को महत्व देती है। हालांकि, कोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि इसका असर उन मामलों पर क्या होगा जहां बच्चे उच्च जाति के पिता के साथ पले-बढ़े हों।
अभी क्या है नियम?
वर्तमान नियमों के मुताबिक, भारत में जाति का निर्धारण मुख्य रूप से पिता की जाति से होता है। 5 मार्च 1964 और 17 फरवरी 2002 की राष्ट्रपति अधिसूचनाओं और केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार, जाति प्रमाण पत्र के लिए पात्रता पिता की जाति और राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में उनकी आवासीय स्थिति पर निर्भर करती है।
पुराने फैसलों का संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने पहले के कई फैसलों में पिता की जाति को ही निर्णायक माना है। उदाहरण के लिए, ‘पुनीत राय बनाम दिनेश चौधरी (2003)’ मामले में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि किसी व्यक्ति की जाति का निर्धारण प्रथागत हिंदू कानून के तहत पिता की जाति से होगा।
उस फैसले में कहा गया था कि वैधानिक कानून की अनुपस्थिति में बच्चे अपनी जाति पिता से विरासत में प्राप्त करेंगे, न कि माता से। मौजूदा सुनवाई इस पुरानी मान्यताओं को चुनौती देती है और बदलते सामाजिक ढांचे में नए नियमों की आवश्यकता की ओर इशारा करती है।