CJI सूर्यकांत के आदेश, अब जनता से जुड़े केस सुप्रीम कोर्ट में मिलेगी फास्ट ट्रैक सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने आम नागरिकों से जुड़े महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई को और तेज तथा कारगर बनाने के लिए नई प्रणाली लागू की है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत के निर्देशों के आधार पर कोर्ट प्रशासन ने घोषणा की है कि जिन मामलों में आम जनता की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत अधिकार या तात्कालिक अंतरिम राहत की मांग शामिल है, उन्हें विशेष प्राथमिकता दी जाएगी। अब ऐसे मामलों को सत्यापन और त्रुटि-शोधन पूरा होते ही दो कार्यदिवस के भीतर मुख्य या पूरक सूची में शामिल कर लिया जाएगा। यह कदम न्याय तक शीघ्र पहुंच सुनिश्चित करने और लोगों की समस्याओं के त्वरित समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव माना जा रहा है।

जमानत मामलों के लिए नई अनिवार्य प्रक्रिया

नियमित जमानत, अग्रिम जमानत तथा जमानत रद्द करने से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने एक नई शर्त लागू की है। अब इन याचिकाओं की प्रति केंद्र सरकार, राज्य सरकार या संबंधित केंद्र शासित प्रदेश के नोडल अधिकारी या स्थायी वकील को भेजना अनिवार्य होगा। इसके अलावा इन मामलों के सत्यापन के लिए एक अलग से आवेदन दाखिल करना पड़ेगा। इस आवेदन के बिना न तो याचिका सत्यापित मानी जाएगी और न ही उसे कोर्ट की सुनवाई सूची में जोड़ा जाएगा। कोर्ट का मानना है कि यह नियम प्रक्रिया को पारदर्शी और सुव्यवस्थित बनाएगा, जिससे ऐसी याचिकाओं पर तेज निर्णय लिया जा सकेगा।

नए मामलों की सूचीबद्धता का तय शेड्यूल

सुप्रीम कोर्ट ने मामलों के सूचीबद्ध होने को लेकर एक स्पष्ट टाइमटेबल भी जारी किया है। नई व्यवस्था के अनुसार—

  • मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को सत्यापित हुए मामले अगले सोमवार को सूचीबद्ध होंगे।
  • शुक्रवार, शनिवार और सोमवार को सत्यापित हुए मामले अगले शुक्रवार को रखे जाएंगे।

इस प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि अब वादियों को अपने मामलों का उल्लेख (मेंशनिंग) कोर्ट में करने की आवश्यकता नहीं होगी। सत्यापन के बाद केस स्वयं ही सूची में शामिल हो जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इन श्रेणियों के मामलों में किसी प्रकार की मेंशनिंग स्वीकार नहीं की जाएगी। इससे न्यायिक प्रक्रियाओं में अनावश्यक देरी खत्म होगी और सिस्टम अधिक सुचारू रूप से काम करेगा।

दहेज को लेकर सुप्रीम कोर्ट की कठोर टिप्पणी

दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराई पर भी कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह को एक पवित्र और आजीवन बंधन माना जाता था, लेकिन दहेज की बढ़ती प्रवृत्ति ने इसे धीरे-धीरे व्यावसायिक सौदे जैसा बना दिया है। कोर्ट का कहना है कि आधुनिक समय में लोग विवाह उपहारों, धन-संपत्ति और दिखावे को विवाह का अहम हिस्सा मानने लगे हैं, जिससे इस रिश्ते की मूल भावना कमजोर हो रही है। दहेज को उपहार या प्रथा के रूप में प्रस्तुत करना केवल एक ढोंग है, जबकि वास्तविकता यह है कि यह लालच का रूप धारण कर चुका है, जिसे समाज को गम्भीरता से समझने की जरूरत है।

दहेज के खिलाफ जागरूकता की अपील

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संदेश देते हुए कहा है कि विवाह का आधार प्रेम, भरोसा और समानता होना चाहिए, न कि आर्थिक लेन-देन। अदालत ने युवाओं, परिवारों और सामाजिक संगठनों से आह्वान किया है कि वे दहेज प्रथा के खिलाफ व्यापक जागरूकता अभियान चलाएं। कोर्ट का मानना है कि जब तक समाज दहेज को परंपरा नहीं बल्कि बुराई के रूप में स्वीकार कर उसका विरोध नहीं करेगा, तब तक न तो दहेज हत्या जैसी घटनाएँ रुकेंगी और न ही महिलाओं पर होने वाला अत्याचार कम होगा। सुप्रीम कोर्ट का यह संदेश समाज को दहेज-मुक्त भविष्य की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।