75 लाख के भुगतान को लेकर Forest department के सीसीएफ और एसडीओ में ठनी

स्वतंत्र समय, भोपाल

भ्रष्टाचार और नियम विरुद्ध खरीदी में निर्माण कार्य डिपार्टमेंट का नाम पहले स्थान पर आता था, लेकिन अब फॉरेस्ट महकमा ( Forest department ) भी इसमें पीछे नहीं है। संजय टाइगर नेशनल पार्क के फील्ड डायरेक्टर अमित दुबे ने नर्सरियों के लिए आवंटित 75 लाख के बजट से अन्य सामग्री की खरीदी कर डाली। इस मामले में प्रभारी सीएफ अजय पांडेय और एसडीओ केबी सिंह के बीच भुगतान को लेकर ठन गई है।

Forest department में नियम विरुद्ध खरीदी

प्रभारी वन संरक्षक अजय पांडेय चाहते हैं कि संजय नेशनल पार्क के फील्ड डायरेक्टर अमित दुबे द्वारा की गई खरीदी का भुगतान कर दिया जाए, लेकिन एसडीओ केबी सिंह ने खरीदी को नियम विरुद्ध बताते हुए प्रमाणकों पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया है। उधर सामग्री का प्रदाय करने वाली फर्म आजाद ट्रेडर्स भुगतान के लिए सीनियर अफसरों पर लगातार दबाव बना रही है। वानिकी वृत रीवा के प्रभारी रहे अमित दुबे ने नर्सरी में पौधारोपण के लिए मुख्यालय से प्राप्त 75 लाख के बजट से सोलर स्ट्रीट लाइट, स्ट्रीट लाइट, विद्युत स्ट्रीट लाइट, वाटर कूलर, सोलर पंप, सोलर कैमरा आदि बाजार दर से डेढ़ गुना अधिक की कीमत पर खरीद डाले। भुगतान के इन बिलों पर हस्ताक्षर करने से एसडीओ केबी सिंह ने इनकार कर दिया है।

Forest department इन कार्यों पर खर्च…

  • सोलर स्ट्रीट लाइट – 9,00,000
  • विद्युत स्ट्रीट लाइट – 1,05,600
  • वाटर कूलर और आरओ 4,44,000
  • सोलर कैमरा 1, 68,000
  • सोलर पम्प 3 एचपी 4,99,999
  • सोलर पम्प 5 एचपी 2,99,999
  • ईट, बालू, सीमेंट आदि 39,00,000
  • मजदूरी की राशि 12, 00, 000

आईएफएस को बचाने एसडीओ को फंसाया

वन विभाग ने मंत्रालय में पदस्थ ओएसडी अनुराग कुमार को बचाने के लिए एसडीओ डॉ. कल्पना तिवारी को बलि बकरा बना दिया। यही नहीं विभाग के शीर्षस्थ अफसरों ने तिवारी को आरोप पत्र जारी कर आईएफएस की दौड़ से बाहर कर दिया। तत्कालीन टीकमगढ़ के डीएफओ रहे अनुराग कुमार ने चैनलिंक और वायरवेड की खरीदी की थी, लेकिन प्रमाणकों पर एसडीओ कल्पना तिवारी के बिना हस्ताक्षर ही डीएफओ ने भुगतान करवा दिया था। जब कुमार के खिलाफ गड़बडिय़ों को लेकर शिकंजा कसा गया तो शासन में बैठे होने का फायदा उठाते हुए अनुराग कुमार ने डिलीवरी चालान में हस्ताक्षर करने का आधार बनाकर डॉ कल्पना तिवारी को ही आरोपों के कठघरे में खड़ा कर दिया। जबकि प्रमाणक पर एसडीओ के हस्ताक्षर ही नहीं है।