CM Mohan Yadav बोले- किसी के 12 बजाना हो तो सहकारिता में सदस्य बनाओ

स्वतंत्र समय, भोपाल

भोपाल के समन्वय भवन में बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 के मौके पर राज्य स्तरीय सम्मेलन हुआ। इस दौरान सीएम डॉ. मोहन यादव ( CM Mohan Yadav ) ने कहा- हम भाग्यशाली हैं कि हमको अपने प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सहकारिता के क्षेत्र में बड़े बदलाव दिख रहे हैं। नहीं तो सहकारिता के अंदर की दुनिया ऐसी है कि खग ही जाने खग की भाषा। इससे तो भगवान ही बचाएं। मुख्यमंत्री ने कहा- मैं तो वर्षों से सहकारिता से जुड़ा रहा, लेकिन दूर भी रहा। किसी को निकालना है तो ये माया भी भगवान के अलावा सहकारिता के अधिकारी ही जानते हैं। कैसे निकालना है। किसी के 12 बजाना है तो समिति में सदस्य बनाकर जांच बैठा दो। इस कार्यक्रम में सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग, अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल, डीपी आहूजा समेत सहकारिता, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी विभाग के अधिकारी मौजूद रहे।

CM Mohan Yadav बोले- परिपत्र दबाकर रखे जाते हैं

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ( CM Mohan Yadav ) ने कहा- सहकारिता में नई भावना लाए हैं। इसमें कई सारी चीजों को सरलीकृत किया है। आज कई सेवाओं और पुस्तकों का लोकार्पण और विमोचन किया। पहले तो कई तरह के परिपत्र छिपाकर रखते थे। कौन-कौन से परिपत्र निकल गए पता ही नहीं चलता था। मैं भी उस चीज का भुक्तभोगी हूं। मुख्यमंत्री ने 1990- 92 का एक वाकया सुनाया। उन्होंने कहा कि उज्जैन में मुझे लगा कि एक सहकारी समिति बनानी चाहिए और लोगों को मकान देना चाहिए। मकान सस्ते बना दो तो सब ले लेंगे। उसमें क्या गलत है? हमने अपने स्तर पर सारी पंचायतें करने के बाद प्रस्ताव पूरा कर वल्लभ भवन में पहुंचाए। पहले तो नीचे से ही बोलते रहे कि अभी हाउसिंग सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन बंद है। हमने पूछा कि अगर हाउसिंग सोसाइटीज बन रही हैं तो रजिस्ट्रेशन क्यों बंद है? हमने कहा ठीक है बंद है तो देखते हैं। तुम तो कार्रवाई आगे बढ़ाओ। मैं अफसरों के पास जाता। वो रोज दो नए कागज पकड़ा देते। मैं उन कागजों की पूर्ति करता। वो नए कागज पकड़ा देते। ऐसा करते हुए 8-15 दिन गुजर गए। मैं पूछता कि आप अच्छे से देख लो इसमें कोई कमी तो नहीं। मेरे सामने कहते कि ठीक है। मैं घर पहुंचता और दो कागज जमा करने का पत्र फिर भेज देते।

उज्जैन जैसा हाल वल्लभ भवन में भी मिला

सीएम ने कहा- कि कागज पूर्ति करते-करते मैं भोपाल तक आ गया। भोपाल आया तो वल्लभ भवन में उस समय शारदा नाम के कोई अधिकारी थे। मैं प्रस्ताव देते-देते वहां तक पहुंच गया। उसके बाद भी वही हाल। मैंने पूछा कि कोई कागज की कमी हो तो देख लीजिए। फिर उन्होंने तीन-चार चि_ी पकड़ा दी कि यह कागज कम पड़ गए। सारी पूर्ति करने के बाद फिर पूछा तो उन्होंने फिर एक चि_ी घर भेज दी कि यह कमी है। फिर मैंने कहा कि यह क्या नाटक है? कैसी सहकारिता है?