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मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। बीते दो सालों में प्रदेश में 32 नए सरकारी कॉलेज जरूर शुरू किए गए हैं, लेकिन इनके साथ शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई। नतीजा यह है कि आज भी प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी बनी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि 76 प्रतिशत प्राध्यापक और 56 प्रतिशत सहायक प्राध्यापकों के पद खाली हैं। यही नहीं, कई कॉलेज ऐसे हैं जहाँ प्राचार्य तक की नियमित नियुक्ति नहीं हुई है।

प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे चल रही उच्च शिक्षा

प्रदेश के लगभग 90 प्रतिशत से ज्यादा कॉलेज प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे चल रहे हैं। नियमित प्राचार्य की कमी के कारण कॉलेजों में प्रशासनिक और शैक्षणिक कार्य दोनों प्रभावित हो रहे हैं। अधिकांश कॉलेजों में प्रभारी प्राचार्य को ही शिक्षण कार्य के साथ-साथ प्रशासनिक जिम्मेदारी भी निभानी पड़ रही है। उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह व्यवस्था अस्थायी है, लेकिन यह “अस्थायी” व्यवस्था अब स्थायी रूप ले चुकी है।

एमपीपीएससी की धीमी प्रक्रिया ने बढ़ाई दिक्कतें

शिक्षकों की कमी का सबसे बड़ा कारण मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) की सुस्त भर्ती प्रक्रिया मानी जा रही है। आयोग ने तीन साल पहले 1,669 पदों पर सहायक प्राध्यापकों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था, लेकिन आज तक प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। साक्षात्कार और दस्तावेज़ सत्यापन जैसी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी कई विषयों के लिए चयन सूची जारी नहीं की गई। इससे कॉलेजों में स्थायी शिक्षकों की तैनाती लगातार टलती जा रही है।

अतिथि विद्वानों और प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे पढ़ाई

प्रदेश के 571 सरकारी कॉलेजों में से अधिकतर में पढ़ाई का दारोमदार अब अतिथि विद्वानों और प्रभारी प्राचार्यों पर है। कई कॉलेजों में तो एक भी नियमित शिक्षक मौजूद नहीं है। छात्र-छात्राओं को अस्थायी शिक्षकों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। विद्यार्थियों का कहना है कि “हर साल नए अतिथि शिक्षक आते हैं, जिससे निरंतरता और अनुभव दोनों की कमी महसूस होती है।”

खाली पदों का आंकड़ा चौंकाने वाला

उच्च शिक्षा विभाग के अनुसार, प्रदेश में सहायक प्राध्यापक के कुल 12,895 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से 7,284 पद अभी भी खाली हैं। वहीं, प्राध्यापकों के 848 स्वीकृत पदों में से 642 खाली हैं। इसका मतलब है कि प्राध्यापकों के करीब 75 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। यह भी गौर करने योग्य है कि प्राध्यापकों की सीधी भर्ती 2011-12 के बाद से अब तक नहीं हुई है।

प्राचार्य पदों की स्थिति और भी गंभीर

अगर प्राचार्य पदों की बात करें तो हालात और भी गंभीर हैं। प्रदेश के 469 स्नातक (UG) कॉलेजों में केवल 10 नियमित प्राचार्य कार्यरत हैं, जबकि 459 कॉलेज प्रभारी प्राचार्यों के सहारे चल रहे हैं। इसी तरह 98 स्नातकोत्तर (PG) कॉलेजों में सिर्फ 5 नियमित प्राचार्य हैं और 93 कॉलेजों में प्रभारी प्राचार्य कार्यरत हैं। यह स्थिति बताती है कि उच्च शिक्षा का ढांचा लगभग पूरी तरह “प्रभारी व्यवस्था” पर टिका हुआ है।

ग्रंथपाल और क्रीड़ा अधिकारी के पद भी खाली

शिक्षकों के साथ-साथ ग्रंथपाल और क्रीड़ा अधिकारी के पद भी लंबे समय से खाली हैं। ग्रंथपाल के 582 स्वीकृत पदों में से 247 ही भरे हुए हैं, जबकि क्रीड़ा अधिकारी के 543 पदों में से 316 खाली हैं। इसका सीधा असर कॉलेजों में खेल गतिविधियों और पुस्तकालय संसाधनों पर पड़ रहा है।

विभाग का दावा: जल्द पूरी होगी भर्ती

उच्च शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव अनुपम राजन ने कहा है कि सहायक प्राध्यापक भर्ती-2022 की प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है और इसे जल्द पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि शेष खाली पदों को भरने के लिए एमपीपीएससी को 2,197 पदों पर भर्ती का नया प्रस्ताव भेजा गया है। उनका कहना है कि आने वाले महीनों में कॉलेजों में शिक्षकों की संख्या बढ़ने से शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में मदद मिलेगी।

उच्च शिक्षा के भविष्य पर सवाल

हालांकि विभाग की योजनाएं कागज़ों पर सशक्त दिखती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और कहती है। कॉलेजों में शिक्षक, प्राचार्य और खेल-अधिकारियों की कमी से छात्रों का भविष्य प्रभावित हो रहा है। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भर्ती प्रक्रिया को गति नहीं दी गई, तो आने वाले वर्षों में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ेगा।