इंदौर में सज्जन मुझसे बोले-मैं कुलपति का पति: CM Mohan Yadav

स्वतंत्र समय, भोपाल

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ( CM Mohan Yadav ) ने मंगलवार को सीएसआईआर-एम्प्री (एडवांस मटेरियल एंड प्रोसेसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट) में दो दिवसीय राष्ट्रीय हिन्दी विज्ञान सम्मेलन का शुभारंभ किया। इस दौरान उन्होंने कुलपति के पद को कुलगुरु करने की पूरी कहानी सुनाई।

CM Mohan Yadav ने सुनाई कुलपति से कुलगुरू की कहानी

सीएम ( CM Mohan Yadav ) ने कहा कि ये देश का दुर्भाग्य है और चुनौती पूर्ण, लेकिन आनंद का विषय है। हम गुलामी के लंबे काल से निकलकर गए हैं। गुलामी ने हमारे अंदर के गुणों को पहचानने के लिए कष्ट खड़ा कर दिया। कई बार दूसरा कोई मजाक हममें से ही बनाता है। जब मैं शिक्षा मंत्री था, तब हिन्दी ग्रंथ अकादमी की बैठक में सभी वाइस चांसलर्स के साथ सोचा कि हमारी डिग्रियां, मेडिकल, इंजीनियरिंग की डिग्रियों का पाठ्यक्रम हिन्दी में क्यों नहीं होना चाहिए। मुझे अच्छा लगा कि कभी जिनको कुलपति कहा जाता था वो सब ग्रंथ अकादमी में आते थे। इनको हमने कुलगुरु कहा है। ये उस मानसिकता का ही फर्क है जो कुलगुरु और कुलपति में होती है। प्रोफेसर रेणु जैन के पति ने कहा-मैं कुलगुरु का पति: सीएम ने कहा- मैं जब शिक्षामंत्री था तब इंदौर यूनिवर्सिटी कैंपस में गया। प्रोफेसर रेणु जैन अभी भी कुलगुरु हैं। मैं उनसे मिला संयोग से उनके पति मिले। उन्होंने कहा आपका मेरा परिचय नही हैं। मैंने कहा-बताइए तो वो बोले मैं कुलपति का पति हूं। आप बताओ मेरी क्या हालत हुई होगी। उन्होंने कोई अहंकार में नहीं बोला। लेकिन, वो यथार्थ भी था। लेकिन, भाषा में क्या बोला गया उसका असर कैसा होगा। ये उस समय समझने के लिए पर्याप्त था। मैंने कहा ये नहीं चलेगा। हमने खोजबीन की तो बताया गया कि कुलगुरु रख सकते हैं। हमने कहा इससे अच्छी क्या बात हो सकती है। कुलपति के बजाए कुलगुरु कहते हैं। उन्होंने सीएसआईआर की किताब अनुसंधान संदेश और सम्मेलन की स्मारिका का विमोचन किया।

किसी को अपने प्रभाव से दबाना, डराना नहीं चाहते

सीएम ने कहा- हमारी हजारों साल से परंपरा रही है। हम किसी को दबाना, डऱाना नहीं चाहते। किसी को गिराना नहीं चाहते। किसी को अपने प्रभुत्व में लाकर अपने नीचे नहीं बिठाना चाहते। लेकिन, ये चीजें करने की बात करेंगे तो सब क्षेत्रों की महत्ता बढेगी। उनमें विज्ञान सबसे पहले आता है। विज्ञान में हमारी भी कठिनाई है पढक़र कागज की डिग्री मिलती है। लेकिन, अपनी स्व भाषा में जो बात समझ सकते हैं। देशी भाषा से जैसे ही हम विदेशी भाषा में जाते हैं तो कई बार अर्थ बदल जाता है।