ब्रिटिश शासन के दौरान, जब भारत में इतिहास और संस्कृति का दस्तावेजीकरण तेजी से शुरू हुआ, तब अंग्रेजों ने “एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल” के माध्यम से एक विशाल ज्ञान नेटवर्क खड़ा किया। यह संस्था उस दौर की सबसे बड़ी ज्ञान-केन्द्रित संस्था थी, जो किसी भी मायने में आज के गूगल जैसी भूमिका निभा रही थी। लेकिन इस ज्ञान-तंत्र की बुनियाद में कई सवाल उठते हैं—क्या वाकई भारत का इतिहास उसी रूप में दर्ज किया गया जैसा वह था, या फिर दूसरे देशों के ग्रंथों और संस्कृति को भारत पर थोपकर एक नया ‘औपनिवेशिक इतिहास’ गढ़ा गया?
थाईलैंड-इंडोनेशिया के ग्रंथों की ‘भारतीयता’
बताया जाता है कि उस समय अंग्रेजों के पास भारत का पर्याप्त ऐतिहासिक डेटा नहीं था। ऐसे में उन्होंने थाईलैंड और इंडोनेशिया के कई पुराणों, उपनिषदों और महाकाव्यों को उठाकर उन्हें भारतीय इतिहास का हिस्सा घोषित कर दिया। इससे भारत की सांस्कृतिक गहराई तो दिखाई गई, लेकिन वह ‘मूल’ नहीं थी, बल्कि उधार ली गई थी। जब इन पर सवाल खड़े हुए, तो अंग्रेजों ने नई कहानियाँ जोड़कर अपनी रचनाओं को “स्थानीय” रंग देने की कोशिश की।
रामायण और लंका: पहचान की राजनीति
एक दिलचस्प उदाहरण रामायण से जुड़ा है। जब अंग्रेजों ने रामायण को भारत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रचारित किया, तब सबसे बड़ी चुनौती थी—लंका की भौगोलिक स्थिति तय करना। पहले लक्षद्वीप को लंका बताया गया, लेकिन बाद में 1950 के आसपास, श्रीलंका (तब का सिलोन) को भारी आर्थिक सहायता देकर उसका नाम बदलवाकर ‘लंका’ करवा दिया गया, जिससे रामायण की कथा को भौगोलिक रूप से भारत से जोड़ा जा सके। यह दर्शाता है कि कैसे सांस्कृतिक प्रतीकों को राजनीतिक और भौगोलिक जरूरतों के अनुसार मोड़ा गया।
आधुनिक दौर में इतिहास की पुनर्व्याख्या और बाज़ार
अब जब ये ऐतिहासिक धारणाएं सवालों के घेरे में हैं, तब एक नया ट्रेंड उभर रहा है। अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर उन “मूल पुस्तकों” को फिर से बेचा जा रहा है, जिनसे यह पता चलता है कि इतिहास में क्या-क्या गड़बड़ हुआ था। कहा जा रहा है कि अगले 10 वर्षों में 1 लाख से ज्यादा शोध-प्रबंध (थीसिस) ऐसे मुद्दों पर आने वाले हैं, जिससे फर्जी इतिहास की परतें खुलेंगी, और इसके पीछे एक बड़ा ज्ञान-व्यापार भी आकार ले रहा है।
रामायण का आधुनिक प्रभाव: जनभावनाओं का बदलता भूगोल
रामायण आज भारतीय जनमानस में इतनी गहराई से रच-बस गई है कि हर कुछ महीनों में किसी शहर या स्थान का नाम रामायण से जुड़े पात्रों या घटनाओं के आधार पर बदला जा रहा है। कभी सीता के मायके की खोज चल रही है, तो कभी रावण के पूर्वजों की जन्मभूमि की। यह दर्शाता है कि ऐतिहासिक धारणाएं केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं हैं, वे लोगों की सोच और पहचान का हिस्सा बन चुकी हैं।