Constitution गौरव यात्रा…या हरण यात्रा


बातरस
राजेश राठौर

कहां…से शुरू करूं, कहां पर खत्म करूं… बेशर्मी, बेहया, लज्जा की धज्जियां उड़ाती संविधान ( Constitution ) गौरव यात्रा इंदौर में जिस तरीके से ‘चीरहरण’ की तरह बीआरटीएस लेन से गुजरती है और तमाम अफसर ‘बेहरे-गूंगे’ बनकर सब कुछ देखते रहते हैं। आम आदमी को ‘जूते की नोंक’ पर रखने वाले अफसर क्या सब छुट्टी पर चले गए थे।

Constitution गौरव यात्रा के नाम पर इंदौर बना तमाशा

संविधान ( Constitution ) गौरव यात्रा के नाम पर बीआरटीएस की लेन में कानून-कायदे की ‘चीर-फाड़’ करते हुए निकल जाती है। जो आम जनता पब्लिक ट्रांसपोर्ट यानि आईबस में बैठती है वो ये तमाशा देखकर माथा पीटने के लिए मजबूर हो गई। शायद किसी मालवी बुजुर्ग महिला ने बस में बैठकर ये दृश्य देखते समय जरूर ये कहा होगा ‘सत्यानाश हो इनका’। बिना अनुमति इतने ही पाप करने वाले राजनेता और उनके लुच्चे-लफंगे कार्यकर्ता ‘सीता हरण’ की तरह कानून का ‘हरण’ आए दिन करते हैं, इंदौर को तमाशा बना दिया है चंद लोगों ने। दुर्भाग्य यह है कि तमाशबीन लोग लाखों की संख्या में हैं।
इंदौर कहने को तो जिंदा शहर है लेकिन स्वार्थ के कारण अब लोग मैदान नहीं पकड़ते। इससे बड़ा इंदौर पर ‘कलंक’ क्या लगेगा। चंद लोग सैकड़ों वाहन लेकर गुजर जाते हैं और पुलिस-प्रशासन ‘धृतराष्ट्र’ बनकर बैठ जाता है। किसी में हिम्मत नहीं कि कोई ‘माई के लाल’ अफसर इनके खिलाफ मामूली सी धारा में भी केस दर्ज कर ले। यदि आम व्यक्ति बीआरटीएस लेन में फोर व्हीलर तो ठीक, टू व्हीलर लेकर भी घुस जाता तो पुलिस उसकी चमड़ी उधेड़ देती। जिस शहर में कानून मजाक बन जाए और बाकी सब देखते रहें, इससे बड़ा जघन्य अपराध क्या कहलाएगा। अब तो लगता है कि इंदौर के साथ जो हो रहा है शायद उसी के लिए इंदौर बना है।
वो जुमला अब इंदौर पर फिट बैठता है ‘सब आजाद हैं जिसको जो करना है करने दो। सब स्वतंत्र हैं, मैं चाहंू ये करूं, मैं चाहंू जो करूं… मेरी मर्जी’। इंदौर के लोग मुफ्त के खाने और गुंडों को समाजसेवी बनाने का काम ही अच्छे तरीके से कर सकते हैं। अन्याय के खिलाफ अब नहीं लड़ सकते। ये इंदौर है…यहां आओ, जो चाहे करो। बस, आपके सत्ता के कर्ताधर्ताओं से संबंध होना चाहिए। कोई कुछ भी करे, किसी को कोई चिंता नहीं है। लोग मरें, जिएं या सड़-सडक़र मर जाएं, यह शहर खामोश रहेगा। क्योंकि यहां सब मतलब के रिश्ते रखते हैं। सब को काली कमाई करना है, जल्दी पैसा कमाना है, फिर भले ही उसके लिए कोई भी समझौता करना पड़े।
सवाल इस बात का भी है, यह शहर सिर्फ ‘इवेंटबाज’ हो गया है। यहां दिखावा करने में हम पाश्चात्य संस्कृति को भी पीछे छोड़ चुके हैं। जनप्रतिनिधियों की बात करना बेमानी है क्योंकि वो बेचारे ‘जमीन के धंधे’ में लगे हैं। इंदौर अपनी किस्मत पर आंसू बहाता रहेगा और ये शहर कब ‘हीरो से जीरो’ हो जाएगा, पता भी नहीं चलेगा। हमने तो जो लोगों ने बताया-कहा, वो लिख दिया। अब हमने भी जनता पर फैसला छोड़ दिया कि उनका शहर है, उनको जीना मरना यहां है। वो ही फैसला करें कि करना क्या है।