प्रवीण शर्मा, भोपाल
प्रदेश में 11 साल बाद सहकारिता ( Cooperative elections ) कराने को लेकर राज्य सरकार द्वारा जोर-शोर से पीटा गया ढिंढोरा एक बार फिर फटा ढोल निकला है। चुनाव प्रक्रिया आरंभ होने की तिथि निकल चुकी है, लेकिन सहकारिता चुनावों को लेकर सरकार 21 दिन से चुप्पी ओढक़र बैठी है। हाईकोर्टके आदेश का पालन करने के लिए चुनाव कार्यक्रम बनाया गया था। खानापूर्ति कर प्रदेश की 4534 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव एक बार फिर टाल दिए गए हैं।
Cooperative elections 26 जून से 9 सितंबर के बीच होना थे
निकट भविष्य में भी सहकारिता ( Cooperative elections ) चुनावों की संभावना नहीं है। फिलहाल मानसून बाधा है तो 50 फीसदी से ज्यादा समितियां डिफाल्टर हैं। इन्हें दुरुस्त करने के बाद ही चुनाव का आधार बन सकेगा। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य सरकार ने प्रदेश में सहकारिता चुनाव का कार्यक्रम घोषित किया था। इसके मुताबिक सहकारिता चुनाव 26 जून से 9 सितंबर के बीच चार चरणों में होना थे। सरकार ने 11 साल बाद चुनाव कराने को लेकर वाहवाही लूटने में कोई कमी नहीं की। कांग्रेस सरकार पर सहकारिता क्षेत्र की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए चुनाव न कराने की वजह भी पूर्व सीएम कमलनाथ की सरकार को बताया था। मगर इस बार भी सारी तैयारी कागजी और खानापूर्ति ही साबित हुई है। आजतक न प्राथमिक समितियों के लिए नामांकन शुरू हुआ है और न चुनावों को लेकर गांव और किसानों में कोई हलचल है, बल्कि सब सरकार की मंशा में ही खोट बता रहे हैं। अव्वल तो डिफाल्टर समितियों के चुनाव हो ही नहीं सकते। प्रदेश में आधी समितियां डिफाल्टर हैं। इसके चलते समितियां प्रशासक की देखरेख में ही काम करती रहेंगी और किसानों के लिए दरवाजे बंद ही रहेंगे।
डिफाल्टर समितियां मुख्य बाधा बनीं
प्रदेश की आधी से ज्यादा सहकारी समितियां डिफाल्टर घोषित हैं। इनमें से अधिकांश समितियां कांग्रेस सरकार की किसान कर्जमाफी योजना के कारण डिफाल्टर हैं तो इसके बाद 2023 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए भी कई किसानों ने कर्ज नहीं चुकाया, जिससे उनकी समितियां भी डिफाल्टर हो गईं। ग्वालियर, चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड अंचल की 90 फीसदी से ज्यादा समितियां डिफाल्टर हैं तो महाकौशल व नर्मदा पट्टी में करीब 70 प्रतिशत समितियों में फिलहाल चुनाव संभव नहीं हैं। वहीं इंदौर व उज्जैन संभाग में भी 40 प्रतिशत से ज्यादा सहकारी समितियों पर कर्जा बकाया है।
यह था समितियों का चुनाव कार्यक्रम
राज्य में सहकारी संस्थाओं के चुनावों के लिए 4 चरण में मतदान कराने का कार्यक्रम जारी किया है। इसके अनुसार 26 जून से 9 सितंबर तक इसकी प्रक्रिया चलेगी। सदस्यता सूची जारी करने के बाद 8, 11, 28 अगस्त और 4 सितंबर को मतदान होगा। मतदान के तत्काल बाद मतगणना होगी। सबसे पहले प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों और विभिन्न संस्थाओं में भेजे जाने वाले प्रतिनिधियों के चुनाव होंगे। इसके आधार पर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के संचालक मंडल का चुनाव होगा।
11 साल से प्रशासक हैं तैनात
प्रदेश में 4,534 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां हैं। इनके चुनाव आखिरी बार वर्ष 2013 में हुए थे। इनके संचालक मंडल का कार्यकाल वर्ष 2018 तक था। विधानसभा चुनावों को देखते हुए पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने ही इनमें प्रशासक नियुक्त कर दिए थे। फिर कांग्रेस सरकार आई तो तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने अपनी किसान कर्ज माफी योजना और लोकसभा चुनावों को देखते हुए प्रशासकों के हाथ में ही कमान रखी। उन्होंने जिला बैंकों में भी प्रशासक बैठा दिए। जैसे-तैसे लोकसभा चुनाव हुए तो सरकार किसान कर्ज माफी योजना में व्यस्त हो गई और चुनाव टाले जाते रहे। कांग्रेस सरकार गिरने के बाद उपचुनाव, कोरोना के कारण चुनाव नहीं हुए। फिर 2023 के चुनाव आ गए प्रशासक ही जिला सहकारी बैंकों को मुखिया बने रहे। अब लंबे समय बाद माहौल बना था, लेकिन वह भी किसानों को मुंह चिढ़ाकर चला गया।
मानसून बाद ही चुनाव की संभावना है
सरकार ने जो चुनाव कार्यक्रम बनाया था वह किसान संगत नहीं था। 15 जून से 15 सितंबर के बीच मानसून के दौरान कभी भी सहकारिता के चुनाव नहीं कराए जाते। बारिश में किसान अपने खेत संभालेगा कि सहकारिता समितियों के चुनाव में दौड़ भाग करेगा। फिर प्रदेश की 50 फीसदी से ज्यादा समितियां डिफाल्टर हैं, इनमें चुनाव कैसे होंगे। नियमों वे कहीं आती ही नहीं हैं। इसलिए अब मानसून बाद ही चुनाव की संभावना है। इसके लिए सरकार को नए सिरे से तैयारी करना होगी। यही हालत दुग्ध, मस्त्य, लघु वनोपज, मार्केटिंग, और आवास संघ की समितियों के चुनावों की भी है। इनमें से बीते 15-20 सालों से चुनाव नहीं हुए हैं।
-मदन राठौर, प्रदेश संयोजक सहकारिता प्रकोष्ठ बीजेपी मप्र।