9 साल पहले हुई Corruption की जांच, रिटायर्ड होने पर विशेष अदालत में मामला

स्वतंत्र समय, भोपाल

भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे खंडवा के तत्कालीन कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी अश्विनी नायक के खिलाफ भ्रष्टाचार ( Corruption ) निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13 के तहत अपराध क्रमांक-37 में लोकायुक्त में मामला दर्ज किया गया था। 9 साल मामले की जांच चली और अधिकारी के रिटायर होने के बाद सरकार ने विशेष अदालत में अभियोजन की मंजूरी दी है।

अश्विनी नायक पर Corruption का प्रकरण बनता है

सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव अनिल सुचारी के हस्ताक्षर से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि तत्कालीन कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी अश्विनी नायक के विरुद्ध अभिलेख में सुसंगत सामग्री की छानबीन करने पर राज्य सरकार की राय है कि अश्विनी नायक पर, जिसने भ्रष्ट साधनों का सहारा लेकर अपनी आय के स्त्रोतों से अनुपातिक संपत्तियां अर्जित की, प्रथम दृष्ट्या प्रकरण बनता है। गौरतलब है कि अश्विनी नायक द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की वजह से उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध क्रमांक-37 में मामला दर्ज किया गया था। इस मामले की जांच 2015 में लोकायुक्त संगठन द्वारा की गई। भ्रष्टाचार सिद्ध होने के दौरान ही अश्विनी नायक रिटायर भी हो गए।

सरकार ने माना न्यायालय में चलेगा प्रकरण

जीएडी सचिव ने स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा यह आवश्यक समझा गया कि उक्त अभियुक्त पर मप्र विशेष न्यायालय अधिनियम, 2011 की धारा-3 के अधीन स्थापित विशेष न्यायालय द्वारा विचारण किया जाना चाहिए। इसलिए सरकार ने अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए उक्त अपराध पर मप्र विशेष न्यायालय अधिनियम, 2011 के तहत संपत्ति के राजसात की कार्रवाई करने की मंजूरी भी दी है।

ऐसे ही लटके हैं भ्रष्टाचार के मामले

भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे सरकारी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले तो लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू संगठन हिचकते हैं और यदि मामला दर्ज भी हो जाए, तो सरकार अभियोजन की मंजूरी के लिए मामलों को सालों लटकाए रहती है। वर्तमान में सरकार के पास 175 से अधिक भ्रष्टाचार के प्रकरणों में अभियोजन की मंजूरी के लिए प्रस्ताव अटके हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार इन मामलों में कार्रवाई नहीं करती है, जिसके चलते कोर्ट से कई बार भ्रष्टाचारी बच जाते हैं।