दलित और ओबीसी को बनाया जाए मंदिरों में Priest

स्वतंत्र समय, भोपाल

मप्र अनुसूचित जाति, जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ ( अजाक्स ) ने प्रदेश के मंदिरों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लोगों को Priest बनाने की मांग की है। संघ का कहना है कि सरकार पुजारियों के अलावा सेवादारों और अन्य धार्मिक कामों में लगे सेवकों के लिए मासिक मानदेय प्रदान करना एक महत्वपूर्ण पहल होगी।

Priest में केवल एक वर्ग का वर्चस्व

संघ का मानना है कि मंदिरों के पुजारियों ( Priest ) में केवल एक ही वर्ग का वर्चस्व है। वर्तमान में मप्र अजाक्स के अध्यक्ष एसीएस गृह जेएन कंसोटिया है, लेकिन मुख्यमंत्री को यह पत्र उनकी तरफ से नहीं, बल्कि जिलाध्यक्ष कृष्णकांत वंशकार ने लिखा है। कंसोटिया के पहले अजाक्स के अध्यक्ष पूर्व आईएएस अमर सिंह रहे हैं। संघ ने कहा- मप्र सरकार द्वारा विभिन्न मंदिरों एवं एतिहासिक स्थलों के विकास में अरबो, खरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। जैसे महाकाल लोक, सलकनपुर का देवी लोक, चित्रकूट लोक, रामराजा लोक ओरछा, ओंकारेश्वर लोक आदि उदाहरण है। राज्य के मंदिरों में पुजारियों के चयन में सामाजिक समरसता और समानता सुनिश्चित करना भी अत्यंत आवश्यक है। प्रदेश के मंदिरों में केवल एक वर्ग विशेष का वर्चस्प है। यह स्थिति न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है, बल्कि संविधान में वर्णित समानता के अधिकारों का भी उल्लंघन करती है।

सामाजिक समावेशिता की कमी

आजादी के बाद 75 साल बाद भी भारत की धार्मिक, सांस्कृति संस्थाओं में सामाजिक समावेशिता की अत्याधिक कमी है। मंदिरों का प्रशासन आज भी देश की 3 प्रतिशत आबादी के नियंत्रण में है, जबकि दलित, ओबीसी समुदाय जो कि भारत की आबादी 85 प्रतिशत और मप्र में करीब 90 प्रतिशत जनसंख्या है, जो इस व्यवस्था से दूर है। संघ ने सुझाव दिया कि यदि मप्र में मंदिरों के संचालन में 90 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करने वाले एससी, एसटी और ओबीसी को दिया जाए तो यह न केवल एक सामाजिक न्याय की पहल होगी, बल्कि यह कदम भारत को एक समतामूलक, आत्मनिर्भर और एकजुट राष्ट्र की ओर ले जाने वाला है।

सरकार पुजारियों को देती है मासिक मानदेय

संघ ने कहा कि मप्र धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अंतर्गत राज्य के मंदिरों के पुजारियों को उनकी आर्थिक स्थिति और मंदिर की आय के आधार पर मासिक मानदेय प्रदान करती है। जिन मंदिरों के पास कृषि भूमि नहीं है, उनके पुजारियों को सरकार 5 से 10 हजार रुपए तक मानदेय दे रही है। पुजारी के रूप में नियुक्ति से इन वर्गों की आर्थिक स्थिरता मिलेगी और समाज में उनकी स्थिति मजबूत होगी। अजाक्स ने उदाहरण देते हुए कहा-भक्तिकाल में संतों में जैसे कबीर, रविदास और तुकाराम आदि ने धर्म की रक्षा करते हुए देश को आत्मसम्मान एवं आध्यात्मिक रूप से एकीकृत किया है।