नीतीश कुमार की जीत के 5 बड़े कारण, महिला वोटर और मोदी फैक्टर ने कैसे बदला खेल?

बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को मिली जीत और नीतीश कुमार का एक बार फिर मुख्यमंत्री बनना किसी एक लहर का परिणाम नहीं था। इसके पीछे कई सोची-समझी रणनीतियां और सामाजिक समीकरण काम कर रहे थे। विशेषज्ञों के अनुसार, महिला मतदाताओं के मौन समर्थन, नीतीश कुमार की ‘सुशासन बाबू’ वाली छवि, विकास के काम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्me ने मिलकर जीत का मार्ग प्रशस्त किया।

यह चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की मजबूत चुनौती के बीच लड़ा गया था। तेजस्वी ने 10 लाख नौकरियों का वादा कर युवाओं के बीच एक उम्मीद जगाई थी, जिससे एनडीए के लिए मुकाबला कड़ा हो गया था। इसके बावजूद, नीतीश कुमार सत्ता में वापसी करने में सफल रहे, जिसके पीछे कई अहम कारक थे।

महिला वोटर: एनडीए की ‘साइलेंट’ ताकत

नीतीश कुमार की जीत में सबसे बड़ी भूमिका महिला मतदाताओं ने निभाई, जिन्हें अक्सर ‘साइलेंट वोटर’ कहा जाता है। राज्य में शराबबंदी का फैसला महिलाओं के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ। इसके अलावा, लड़कियों के लिए साइकिल योजना, पंचायती राज संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण जैसे कदमों ने महिलाओं का एक बड़ा वर्ग तैयार किया जो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर नीतीश कुमार के नाम पर वोट करता है। चुनाव परिणामों ने दिखाया کہ जिन क्षेत्रों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत अधिक था, वहां एनडीए का प्रदर्शन बेहतर रहा।

‘सुशासन बाबू’ की छवि और विकास का मॉडल

नीतीश कुमार की व्यक्तिगत छवि उनकी सबसे बड़ी पूंजी रही। ‘सुशासन बाबू’ के रूप में उनकी पहचान ने भ्रष्टाचार मुक्त शासन का संदेश दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल में ‘सड़क, बिजली, पानी’ जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। ‘हर घर नल का जल’ जैसी योजनाएं सीधे तौर पर आम लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं, जिसका चुनावी लाभ एनडीए को मिला। campaña के दौरान एनडीए ने आरजेडी के 15 साल के शासनकाल की तुलना अपने 15 साल के काम से करते हुए ‘जंगलराज’ की यादें ताजा कराईं, जो मतदाताओं को प्रभावित करने में सफल रहा।

प्रधानमंत्री मोदी का जादुई असर

चुनाव के अंतिम चरणों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों ने माहौल को एनडीए के पक्ष में मोड़ने में अहम भूमिका निभाई। पीएम मोदी ने अपनी सभाओं में न केवल केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिनाईं, बल्कि नीतीश कुमार के नेतृत्व पर भी मुहर लगाई। ‘डबल इंजन की सरकार’ का नारा मतदाताओं को यह समझाने में सफल रहा कि केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन की सरकार होने से विकास की गति तेज होगी। पीएम मोदी की अपील ने उन voters को भी एनडीए की ओर खींचा जो राज्य सरकार के प्रदर्शन से कुछ हद तक नाखुश थे।

सधा हुआ सामाजिक समीकरण

बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं। नीतीश कुमार ने सफलतापूर्वक गैर-यादव पिछड़ी जातियों (OBC), अति पिछड़ी जातियों (EBC) और महादलितों को अपने साथ जोड़ा। इस ‘सोशल इंजीनियरिंग’ ने आरजेडी के परंपरागत मुस्लिम-यादव (M-Y) वोट बैंक के प्रभाव को काफी हद तक कम कर दिया। यह एक ऐसा वोट बैंक है जो नीतीश कुमार के साथ मजबूती से खड़ा रहा और उनकी जीत का एक ठोस आधार बना।

विपक्ष के वादों की प्रभावी काट

महागठबंधन, खासकर तेजस्वी यादव ने 10 लाख सरकारी नौकरियों का जो वादा किया था, उसने campaña में हलचल मचा दी थी। एनडीए ने इस वादे पर सवाल उठाकर इसकी काट निकाली। भाजपा और जदयू नेताओं ने रैलियों में सवाल उठाया कि इन नौकरियों के लिए पैसा कहां से आएगा, और इसे एक अव्यावहारिक वादा बताने की कोशिश की। उन्होंने इसे ‘पुरानी लालटेन’ युग की वापसी के खतरे से जोड़कर पेश किया, जिसमें वे काफी हद तक सफल रहे।