राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति 20 दिसंबर 2025 को भी चिंताजनक बनी रही। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस दिन शहर का समग्र एयर क्वालिटी इंडेक्स (ए क्यू आई) ‘बहुत खराब’ श्रेणी में दर्ज किया गया। लगातार कई दिनों से यह सूचकांक इसी स्तर पर बना हुआ है, जिससे साफ है कि प्रदूषण से फिलहाल राहत के संकेत नहीं दिख रहे हैं।
वायु गुणवत्ता सूचकांक की श्रेणियों के अनुसार 301 से 400 के बीच का स्तर ‘बहुत खराब’ माना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस श्रेणी की हवा में लंबे समय तक रहने से सांस की बीमारियों, दिल की तकलीफों और आंखों की जलन जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है, खासकर उन लोगों के लिए जो पहले से अस्थमा, सीओपीडी या अन्य श्वसनीय रोगों से जूझ रहे हैं।
दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों के मौसम के दौरान प्रदूषण बढ़ना कोई नया fenómeno नहीं है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह स्थिति लगातार अधिक गंभीर रूप में सामने आ रही है। पृष्ठभूमि में वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक इकाइयां, निर्माण कार्य, सड़क की धूल और आसपास के राज्यों में फसल अवशेष जलाने जैसी वजहों को मुख्य कारक माना जाता है।
राजधानी में लगातार ‘बहुत खराब’ श्रेणी का ए क्यू आई
शनिवार, 20 दिसंबर 2025 की सुबह से ही वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग सिस्टमों पर दर्ज स्तरों ने संकेत दे दिया था कि हालात में सुधार की संभावना कम है। समग्र ए क्यू आई ‘बहुत खराब’ श्रेणी में रहने का मतलब है कि शहर की हवा संवेदनशील समूहों के साथ-साथ स्वस्थ लोगों के लिए भी स्वास्थ्य जोखिम बढ़ा सकती है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसे दिनों में हवा में सूक्ष्म कण (पीएम 2.5 और पीएम 10) का स्तर सामान्य से कहीं अधिक हो जाता है। इन कणों का आकार इतना छोटा होता है कि वे सीधे फेफड़ों की गहराई तक पहुंच सकते हैं। लंबे समय तक इनका प्रभाव रहने पर खांसी, सांस फूलना, सीने में जकड़न, सिरदर्द और गले में खराश जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं।
शहर के कई आवासीय और व्यावसायिक इलाकों में प्रदूषण स्तर समग्र औसत के आसपास या उससे अधिक ही दर्ज होने की आशंका जताई जा रही है। बड़े चौराहों, व्यस्त सड़कों और औद्योगिक क्षेत्रों में वाहनों की आवाजाही और अन्य गतिविधियों के कारण सूचकांक का स्तर अपेक्षाकृत अधिक रहता है। हालांकि विस्तृत स्थानीय ए क्यू आई मानकों का ब्योरा आधिकारिक बुलेटिन में जारी किया जाता है, लेकिन समग्र श्रेणी ‘बहुत खराब’ होना ही बताता है कि ज्यादातर इलाकों में हवा स्वास्थ्य मानकों से नीचे है।
स्वास्थ्य के लिए खतरा, संवेदनशील समूहों को विशेष सावधानी की सलाह
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ‘बहुत खराब’ श्रेणी में वायु गुणवत्ता होने पर बुजुर्गों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं और पहले से हृदय या फेफड़े की बीमारी से जूझ रहे लोगों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसे लोगों को अनावश्यक रूप से बाहर निकलने से बचने और यदि बाहर जाना पड़े तो एन 95 या समान स्तर के मास्क का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है।
डॉक्टरों का मानना है कि सुबह और देर शाम के समय हवा में प्रदूषक कणों की सांद्रता अपेक्षाकृत अधिक हो सकती है। इसलिए तेज वॉक, दौड़ या बाहरी व्यायाम जैसे गतिविधियों को इस अवधि में टालना बेहतर माना जाता है। साथ ही, घर के अंदर भी पर्याप्त वेंटिलेशन, एयर प्यूरिफायर (यदि संभव हो) और नियमित सफाई पर जोर दिया जा रहा है।
फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित मरीजों को समय पर दवाएं लेने, इनहेलर साथ रखने और अचानक सांस फूलने या सीने में दर्द जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेने की सलाह दी जाती है। छोटे बच्चों में लगातार खांसी, सांस लेने में आवाज आना या लंबे समय तक थकान बने रहने जैसे लक्षणों को भी नजरअंदाज न करने की बात कही जा रही है।
प्रदूषण के कारण और मौसम की भूमिका
विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली की भौगोलिक स्थिति और सर्दियों के मौसम में हवा की गति कम होने के कारण प्रदूषक कण ऊपर की परत में जाने के बजाय निचले स्तर पर ही जमा हो जाते हैं। इससे एक तरह की धुंध या स्मॉग की परत बन जाती है, जो सूरज की रोशनी को भी प्रभावित कर सकती है और पूरे दिन हवा को भारी और घनी महसूस कराती है।
वाहन उत्सर्जन, डीजल जनरेटर, औद्योगिक इकाइयों और निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल प्रदूषण के स्थायी स्रोतों में शामिल हैं। इसके साथ ही, आसपास के राज्यों में फसल अवशेष जलाने की घटनाएं बढ़ने पर उसके धुएं का प्रभाव भी दिल्ली-एनसीआर की हवा पर पड़ता है, हालांकि यह कारक मुख्य रूप से अक्टूबर-नवंबर के महीनों में अधिक प्रभावी रहता है।
सर्दी के दिनों में तापमान गिरने और हवा की दिशा बदलने के कारण कई बार प्रदूषक कण परत बनाकर शहर के ऊपर ठहर जाते हैं। मौसम विभाग और वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान एजेंसियां समय-समय पर रिपोर्ट जारी करके अगले कुछ दिनों की स्थिति का अनुमान भी देती हैं, ताकि प्रशासन और जनता दोनों पूर्व तैयारी कर सकें।
सरकारी प्रयास और दीर्घकालिक समाधान पर चर्चा
दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पिछले कुछ वर्षों में कई तरह के कदम उठाए गए हैं। ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) जैसी व्यवस्था के तहत प्रदूषण स्तर के बढ़ने पर चरणबद्ध तरीके से अलग-अलग प्रतिबंध लागू किए जाते हैं, जिनमें निर्माण गतिविधियों में कमी, जनरेटर के उपयोग पर रोक और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने जैसे उपाय शामिल हैं।
स्थानीय निकायों और संबंधित एजेंसियों द्वारा सड़क की नियमित सफाई, मशीनी झाड़ू और पानी का छिड़काव जैसे कदम भी उठाए जाते हैं, ताकि धूल के उड़ने को कम किया जा सके। इसके साथ ही, औद्योगिक इकाइयों पर उत्सर्जन मानकों का पालन सुनिश्चित कराने के लिए समय-समय पर निरीक्षण की व्यवस्था की जाती है।
विशेषज्ञ हालांकि लगातार यह बात दोहराते रहे हैं कि दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए केवल अल्पकालिक आपात कदम पर्याप्त नहीं होंगे। वाहनों पर निर्भरता कम करने, सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क मजबूत करने, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने, निर्माण मानकों को सख्ती से लागू करने और हरित क्षेत्र बढ़ाने जैसे दीर्घकालिक उपायों पर समानांतर रूप से काम करना जरूरी माना जा रहा है।
लोगों के लिए क्या हैं एहतियाती कदम
‘बहुत खराब’ श्रेणी के ए क्यू आई के बीच विशेषज्ञ नागरिकों से भी कुछ बुनियादी सावधानियां अपनाने की अपील कर रहे हैं। इनमें अनावश्यक वाहन उपयोग से बचना, कार-पूलिंग या पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग बढ़ाना, कचरा या प्लास्टिक जलाने जैसी गतिविधियों से दूरी बनाना और पेड़ लगाने जैसी पहल शामिल हैं।
घर के भीतर रहने पर भी खिड़कियां और दरवाजे ऐसे समय पर खोलने की सलाह दी जाती है जब बाहर प्रदूषण स्तर अपेक्षाकृत कम हो। मोबाइल एप्लीकेशन और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध रियल-टाइम ए क्यू आई जानकारी की मदद से लोग अपने बाहर निकलने के समय और गतिविधियों की योजना बना सकते हैं।
कुल मिलाकर, 20 दिसंबर 2025 को दिल्ली में वायु गुणवत्ता का ‘बहुत खराब’ श्रेणी में बने रहना यह संकेत देता है कि प्रदूषण के मोर्चे पर स्थिति फिलहाल नियंत्रण में नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रशासनिक कदमों के साथ-साथ नागरिकों की भागीदारी और क्षेत्रीय स्तर पर समन्वित नीति ही आने वाले समय में प्रदूषण के स्तर को स्थायी रूप से नीचे ला सकती है।