यौन उत्पीड़न के खिलाफ अब होगी त्वरित कार्रवाई, दिल्ली हाई कोर्ट ने लॉन्च किया शिकायत पोर्टल

महिलाओं के लिए कार्यस्थल को अधिक सुरक्षित और भरोसेमंद बनाने की दिशा में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण पहल की है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों को दर्ज करने और उनके समाधान की प्रक्रिया को आसान और गोपनीय बनाने के लिए एक डिजिटल पोर्टल लॉन्च किया गया है। इस पोर्टल का शुभारंभ गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह द्वारा किया गया।

इस मौके पर दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय, आईसीसी की अध्यक्ष जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह, और अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश जैसे जस्टिस अमित बंसल, नीना बंसल कृष्णा, तारा वितस्ता गंजू और शालिंदर कौर भी उपस्थित रहे।

महिलाओं के आत्मविश्वास और गोपनीयता को मिलेगा बल

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस कोटिश्वर सिंह ने इस पहल को एक “अत्यंत महत्वपूर्ण कदम” बताया। उन्होंने कहा कि यह पोर्टल महिलाओं को शिकायत दर्ज करते समय सुरक्षा और गोपनीयता का अहसास देगा, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। विशाखा जजमेंट का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि कार्यस्थल को अवसरों का स्थल होना चाहिए, न कि भय का। उन्होंने कहा कि यौन उत्पीड़न न केवल महिलाओं को अपमानित करता है, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से भी आहत करता है। इस प्रकार के कृत्यों पर सख्त रोक लगाने की आवश्यकता है।

महिलाओं के योगदान को देखते हुए ज़रूरी है सुरक्षित कार्यस्थल

जस्टिस सिंह ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं और राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रही हैं। ऐसे में यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि कार्यस्थल को प्रेरणादायक, सुरक्षित और स्वतंत्र बनाए रखें। उन्होंने यौन उत्पीड़न को पितृसत्तात्मक और सामंती सोच का परिणाम बताया, जो कि भारतीय संविधान की आत्मा के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि दिल्ली विविधता में एकता का प्रतीक है और यहां से शुरू हुआ बदलाव पूरे देश में सकारात्मक असर ला सकता है।

समय की मांग थी यह पहल

दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय ने इस अवसर पर कहा कि 1997 में सुप्रीम कोर्ट के विशाखा निर्णय के जरिए न्यायपालिका को कानून निर्माण की दिशा में हस्तक्षेप करना पड़ा, क्योंकि उस समय यौन उत्पीड़न से जुड़े कानूनों की कमी थी। लेकिन इसके बावजूद संसद को इस पर कानून बनाने में 16 वर्ष लग गए। उन्होंने बताया कि नया पोर्टल शिकायतों के निवारण की प्रक्रिया को सरल, सुलभ और प्रभावी बनाएगा।

“बेटी बचाओ, बेटा पढ़ाओ” की दी नई व्याख्या

जस्टिस उपाध्याय ने भारत सरकार के नारे “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमें “बेटा पढ़ाओ” की सोच को भी आगे बढ़ाना होगा ताकि समाज में लड़कियों के प्रति सम्मान और समानता की भावना विकसित हो। उन्होंने कहा कि कई बार शिकायतें यौन उत्पीड़न के तकनीकी दायरे में नहीं आतीं, लेकिन उन पर ध्यान देना आवश्यक है क्योंकि यह समाज की संवेदनशीलता की बात है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें इनकार की मानसिकता से बाहर निकलना होगा और अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।

इस डिजिटल पोर्टल की मदद से कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं से संबंधित शिकायतें ऑनलाइन दर्ज की जा सकेंगी, जिससे पीड़ितों को न्याय पाने में आसानी होगी। साथ ही, यह पहल एक सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन की ओर भी इशारा करती है, जिसमें कार्यस्थल न केवल आर्थिक प्रगति के केंद्र बनेंगे, बल्कि एक सुरक्षित और गरिमामय माहौल भी प्रदान करेंगे।