भू-माफिया के खिलाफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सख्ती के बाद भी जिला प्रशासन पीड़ितों को नहीं दिला सका हक

इंदौर जिला प्रशासन कालिंदी गोल्ड, फिनिक्स टाउनशीप और सेटेलाइट हिल्स के पीड़ितों को नहीं दिला सका उनका हक

इंदौर – एक ओर जहाँ प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह लगातार भूमाफियाओं के खिलाफ सख्त कदम उठा रहे है वही ,इंदौर जिला प्रशासन कालिंदी गोल्ड, फिनिक्स टाउनशीप और सेटेलाइट हिल्स के पीड़ितों को नहीं दिला सका उनका हक। रितेश अजमेरा उर्फ ‘चंपू’ और उसका पूरा परिवार घर के नौकरों को मालिक बनाकर इन कॉलोनियों से पीछे हट गए है। और साथ ही पीड़ित इस बात से नाराज है की सुप्रीमकोर्ट प्रशासन के अधिकारियों ने उन्हें अपना हक दिलने का वादा कर रितेश अजमेरा उर्फ ‘चंपू’ और उसके साथियों को जमानत पर रिहा कर दिया। परन्तु अभी तक हमें कोई न्याय नहीं मिला।

अब अधिकारियो का कहना है की अजमेरा परिवार के खिलाफ कोई साबुत नहीं है.और अब हमें भू-माफिया के तौर पर उनके नौकरों के नाम गिनाए जा रहे हैं जिन्हें अजमेरा परिवार मालिक बनाकर बैठा है। पवन अजमेरा, निलेश अजमेरा, रितेश अजमेरा, योगिता अजमेरा, हैप्पी धवन और उनकी टीम ने दो दर्जन से ज्यादा कंपनियां अपने नौकरो के नाम पर रजिस्टर्ड करा रखी हैं। फिनिक्स डेवकॉन प्रा.लि. ने केलोदहाला में फिनिक्स टाउनशीप नाम से कॉलोनी काटना शुरू किया। कंपनी के मालिक थे पवन अजमेरा, निलेश अजमेरा, रितेश अजमेरा और अजमेरा परिवार की बहुएं। बाद में इसमें चिराग शाह का नाम भी जोड़ा गया। इसके बाद इसी ग्रुप ने दूसरी कंपनी बनाई और पिपल्याकुमार की द एड्रेस विकसित किया। इस कंपनी में फिनिक्स का ही पैसा लगाया गया। बाद में फिनिक्स और द एड्रेस का पैसा एक अन्य कंपनी में लगाकर भांग्या में कालिंदी गोल्ड सिटी के नाम से कॉलोनी काटना शुरू किया। इसके बाद मुंडला नायता में सेटेलाइट हिल्स प्लान की और वहा बिना किसी सुविधाओं के सारे प्लॉट बेच दिए। और इनकी जितनी भी कॉलोनियां हैं,सब कही न कही विवादों से जुडी है.101 एकड़ से अधिक जमीन पर फीनिक्स टाउनशिप बनाई। टीएंडसीपी से 31 अक्टूबर 2007 को तीन नक्शे पास कराए। जिनमें 2303 प्लॉट थे। तीनों नक्शे जोड़कर एक फर्जी नक्शा बनाया और उससे 2500 प्लॉट बेच दिए। फिनिक्स हो या कालिंदी गोल्ड किसानों को कोई पैसा नहीं दिया।

परन्तु उनकी जमीन पर कॉलोनी काट दी गई.और यहाँ पर एक ही प्लॉट को कई लोगों के नाम पर बेच दिया। प्लॉट पीड़ितों की कही शिकायतों पर 2019-20 में कमलनाथ सरकार ने वापस केस दर्ज किया ,और चम्पू, योगिता और हैप्पी गिरफ्तार भी हुए। और नीलेश यहाँ से फरार हो गया। यहाँ मामला सुप्रीमकोर्ट पहुंचा। जहां 26 नवंबर 2021 को अजमेरा परिवार और उनके साथियो को जमानत मिली। इनकी जमानत से पहले कलेक्टर मनीष सिंह चम्पू से मिलने जेल गए थे वहा चम्पू और उसकी पत्नी ने दवा किया की सभी को प्लॉट मिलेंगे।
तब पीड़ितों की संख्या 250 थी जिसमे कुछ रजिस्ट्री वाले थे। कुछ ऐसे थे जिनके पास रसीदें थी। जेल से छूटने के बाद भी पीड़ितों को कोई लाभ नहीं मिला। पीड़ित अभी भी इसको लेकर परेशान हैं. हलाकि यहाँ मामला अब सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट को सौंप दिया है.और कहा की रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमेटी बने। यदि भू-माफिया पीड़ितों का सहयोग नहीं करते तो उनकी जमानत रद्द कर दी जाये। पिछली सुनवाई के दौरान अपर कलेक्टर अभय बेडेकर ने कहा था कि तीनों कॉलोनियों में से लगभग 50 प्रतिशत पीड़ितों को न्याय दिलवाया है।

कुछ मामलों में भू माफियाओं द्वारा किसानों को पैसे नहीं दिए हैं इस कारण किसानों ने जमीन का कब्जा नहीं लेने दिया। भू माफियाओं द्वारा पीड़ितों को उनके पैसे वापस करने के लिए चेक देने का भी कहा गया, लेकिन कई पीड़ितों ने चेक लेने से मना कर दिया। पीड़ितों की मानें तो जो लोग रजिस्ट्री करके भी प्लॉट नहीं दे रहे हैं, उनसे चेक लेकर न्याय मिल जाएगी, इसकी संभावना कम है। मामले की सुनवाई 15 मार्च को है और निराकरण होता दिख नहीं रहा है।

पुलिस ने रजत बोहरा, निकुल कपासी, मनीष सिंह पंवार, विजेंद्र कुशवाह, शब्बीर अली, निकुल कपासी को पिछले साल लंबी फरारी के बाद गिरफ्तार किया था। शब्बीर अली और रजत अभी भी सलाखों के पीछे है. कालिंदी गोल्ड सिटी में कुल 96 पीड़ित हैं। जिनमे से 34 के पास रजिस्ट्री भी है। इसी कॉलोनी की बड़ी जमीन का सौदा कुछ दिनों पहले चम्पू ने अपनी जेबी कंपनी के साथ किया था. इस जमीन पर 80 पीड़ितों को प्लॉट दिए जा सकते थे। सेटेलाइट हिल्स में कुल 90 पीड़ित हें। यहाँ सभी को प्लॉट का इंतजार है। इसी कॉलोनी की जमीन चम्पू ने कैलाश गर्ग को बेची थी। गर्ग ने ओवर वेल्यूएशन कराकर इसी जमीन पर 100 करोड़ का लोन लिया था। इस मामले में सीबीआई जांच जारी है.
फिनिक्स टाउनशीप में कुल 90 पीड़ित हैं जिनके पास रजिस्ट्री है, परन्तु प्लॉट नहीं। यहां पर 2500 से ज्यादा प्लॉट बेचे गए। और मंजूरी 2300 की थी। सार्वजनिक उपयोग की जमीनें भी बेच दी गई।