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महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के चेहरे के ऐलान हो गया है। भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ( Devendra Fadnavis ) राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। बुधवार को विधायक दल की बैठक में उन्हें नेता चुन लिया गया है। फडणवीस तीसरी बार महाराष्ट्र की सत्ता की कुर्सी संभालेंगे जहां पहली बार उन्होंने पूरे पांच साल तो दूसरी बार महज तीन दिन की सरकार चलाई। बीते पांच साल में जिस तरह से महाराष्ट्र की राजनीति बदली उस तरह देवेंद्र फडणवीस की भूमिका भी बदली। वह कभी तीन दिन के मुख्यमंत्री, कभी नेता प्रतिपक्ष तो कभी उपमुख्यमंत्री रहे। आइये जानते हैं देवेंद्र फडणवीस के पूरे करियर और उनके बारे में…
Devendra Fadnavis ने राजनीति में आने कानून को विषय चुना
देवेंद्र फडणवीस ( Devendra Fadnavis ) का राजनीतिक करियर शुरू होने से पहले का जीवन काफी दिलचस्प था। उनका पालन-पोषण एक सियासी माहौल में हुआ, जिससे उन्हें बचपन से ही राजनीति में गहरी रुचि थी। अपनी भविष्यवाणी को साकार करने के लिए उन्होंने कानून की पढ़ाई का चयन किया। उनका मानना था कि कानून का ज्ञान उनके राजनीतिक करियर के लिए लाभकारी होगा। इसके लिए उन्होंने नागपुर के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दाखिला लिया और 1992 में एलएलबी की डिग्री में स्वर्ण पदक के साथ स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एमबीए में दाखिला लिया और डीएसई बर्लिन से प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में डिप्लोमा भी हासिल किया।
देवेंद्र फडणवीस ने इंदिरा गांधी के विरोध में छोड़ दिया था स्कूल!
राजनीति में अपनी स्पष्टवादी शैली और विरोधियों पर तीखे कटाक्ष के लिए प्रसिद्ध देवेंद्र फडणवीस का एक रोचक किस्सा उनके बचपन से जुड़ा हुआ है। यह किस्सा 1977 का है, जब देश में आपातकाल लगा हुआ था और इंदिरा गांधी के शासन के खिलाफ देशभर में आक्रोश था। उस समय देवेंद्र फडणवीस एक छोटे से बच्चे थे और उनकी पढ़ाई इंदिरा कॉन्वेंट स्कूल में हो रही थी। उनके पिता, गंगाधर राव को आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था, जिससे देवेंद्र फडणवीस बेहद नाराज थे। इसके विरोध स्वरूप उन्होंने एक अनोखा कदम उठाया। उन्होंने स्कूल प्रशासन से अपना नाम कटवा लिया। उन्होंने इंदिरा गांधी के नाम वाले स्कूल से अपना नाम हटवा दिया, यह उनका विरोध करने का एक अलग और कड़ा तरीका था। यह घटना साबित करती है कि देवेंद्र फडणवीस ने बचपन से ही गलत के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया था। उनकी यही सोच और बगावत की भावना आगे चलकर राजनीति में भी दिखाई दी, जहां वह हमेशा अपनी बात दृढ़ता से रखते हैं और विरोधियों पर तीखे प्रहार करने से नहीं कतराते। यही कारण है कि आज वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के लिए महाराष्ट्र में पहली पसंद बन चुके हैं।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
देवेंद्र फडणवीस ने राजनीति में अपने कदम 1986 में रखा था, जब वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सक्रिय सदस्य बने थे। कॉलेज के दिनों में ही उनका राजनीति में रुझान बढ़ा, और उन्होंने युवा मोर्चा में कार्य शुरू किया। बाद में उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) में पदाधिकारी के रूप में काम करना शुरू किया और 1990 में बीजेवायएम के नागपुर शाखा के पदाधिकारी के रूप में अपनी पहचान बनाई।
सिर्फ 80 घंटे के लिए सीएम बने थे फडणवीस
2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना गठबंधन ने मिलकर सरकार बनाने का प्रयास किया, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों के बीच विवाद खड़ा हो गया। विधानसभा चुनाव के बाद, भाजपा ने 105 सीटें और शिवसेना ने 56 सीटें हासिल की। कुल मिलाकर गठबंधन को 161 सीटें मिलीं, जो बहुमत के आंकड़े 145 से काफी अधिक थीं। बावजूद इसके, मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों में सहमति नहीं बन पाई और गठबंधन टूट गया। इसी दौरान, देवेंद्र फडणवीस ने 23 नवंबर 2019 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। लेकिन सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए, जिसके कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद, महाविकास अघाड़ी सरकार ने सत्ता संभाली, और देवेंद्र फडणवीस ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपनी भूमिका निभाई।
महाराष्ट्र के इतिहास में दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री
31 अक्टूबर 2014 को, भाजपा और शिवसेना के गठबंधन ने मिलकर सरकार बनाने का निर्णय लिया, और इस सरकार में भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस को राज्य के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। वह महाराष्ट्र के 27वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले थे। 44 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री बनने के बाद, देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण रिकॉर्ड कायम किया। वह शरद पवार के बाद राज्य के दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री बने। उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले, वह पिछले 47 वर्षों में एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री बने जिन्होंने अपने कार्यकाल में पांच वर्षों का समय पूरा किया। महाराष्ट्र के प्रमुख नेताओं में एक महत्वपूर्ण नाम देवेंद्र फडणवीस का है, जिनका एक बयान हमेशा सोशल मीडिया पर छाया रहता है। यह बयान उन्होंने 2019 में दिया था: ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना. मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा!’ इस बयान के जरिए फडणवीस ने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति और राजनीतिक वापसी की इच्छा को स्पष्ट किया था। साल 2014 में देवेंद्र फडणवीस ने पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। इसके बाद 2019 में वह सिर्फ 80 घंटे के लिए मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्होंने अपनी राजनीति में पुन: जोरदार वापसी की, जो उनके मजबूत नेतृत्व और रणनीतिक सोच का परिचायक है। अब वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने की राह पर हैं।
भारत के दूसरे सबसे युवा महापौर
राजनीति में अपने सफर की शुरुआत करने के बाद, देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर नगर निगम से अपनी राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ाया। 1992 में, जब वे महज 22 वर्ष के थे, तो उन्होंने नागपुर नगर निगम के महापौर के रूप में शपथ ली। यह उनके जीवन का एक अहम मोड़ था, क्योंकि वे नागपुर के सबसे युवा महापौर बने। इसके बाद, उन्होंने 1997 में फिर से नगर निगम के महापौर पद की जिम्मेदारी निभाई, जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता और लोकप्रियता में इजाफा हुआ।
राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में कदम
2004 में, देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर पश्चिम से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के उम्मीदवार रणजीत देशमुख को हराकर विधानसभा में अपनी जगह बनाई। इसके बाद उन्होंने राज्य में भाजपा की राजनीति में अपनी उपस्थिति मजबूत की। 2009 में, फडणवीस ने नागपुर दक्षिण पश्चिम सीट से फिर से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के विकास पांडुरंग ठाकरे को हराया। इस जीत के साथ ही उन्होंने एक और बार विधानसभा में अपनी सीट बरकरार रखी और पार्टी में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की।
भाजपा में नेतृत्व के कदम
2010 में, देवेंद्र फडणवीस को भाजपा ने महाराष्ट्र राज्य के महासचिव के रूप में नियुक्त किया। इसके बाद, 2013 में, उन्हें भाजपा का महाराष्ट्र राज्य अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जो एक महत्वपूर्ण पद था। इस समय तक, वे पार्टी के लिए एक प्रमुख रणनीतिकार के रूप में पहचाने जाने लगे थे।