भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार शाम अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक औपचारिक पत्र सौंपते हुए स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया और तत्काल प्रभाव से पद छोड़ने की घोषणा की। यह फैसला इतना अचानक था कि न केवल संसद बल्कि सत्ता और विपक्ष दोनों पक्ष स्तब्ध रह गए। धनखड़ का इस्तीफा उस वक्त आया जब वे अपनी संवैधानिक भूमिका के साथ-साथ राज्यसभा के सभापति के तौर पर भी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।
धनखड़ के करीबी सूत्रों की पुष्टि: “केवल स्वास्थ्य कारण”
धनखड़ के इस्तीफे के पीछे कई तरह की अटकलें चल रही थीं, लेकिन उनके बेहद करीबी सूत्रों ने इन अटकलों को पूरी तरह खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि यह फैसला पूरी तरह उनके स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से लिया गया है। सूत्रों ने बताया कि हाल ही में उत्तराखंड के नैनीताल दौरे के दौरान उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी और परिवार के सदस्यों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी। आज भी वह राज्यसभा नहीं गए और घर पर ही विश्राम कर रहे हैं। सूत्रों ने यह भी दोहराया कि वह अपने फैसले पर दोबारा विचार नहीं कर रहे हैं और यह त्यागपत्र अंतिम है।
संवैधानिक प्रावधान: इस्तीफा देना ही पर्याप्त, स्वीकृति आवश्यक नहीं
भारतीय संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति का त्यागपत्र राष्ट्रपति को भेजा जाता है और इसके लिए स्वीकृति की कोई आवश्यकता नहीं होती। जैसे ही पत्र राष्ट्रपति को प्राप्त होता है, उपराष्ट्रपति के पद से त्याग तत्काल प्रभाव से लागू हो जाता है। इसी आधार पर जगदीप धनखड़ अब आधिकारिक रूप से “पूर्व उपराष्ट्रपति” बन चुके हैं। उनका कार्यकाल अगस्त 2022 में शुरू हुआ था और 2027 तक चलना था, लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अपने पद से विदाई ले ली।
राज्यसभा में विपक्ष और सरकार दोनों से रहे टकराव
धनखड़ का तीन वर्षों का कार्यकाल कई दृष्टिकोणों से उल्लेखनीय रहा। एक ओर उन्होंने राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन बड़ी सक्रियता और तीखे तेवरों के साथ किया, वहीं दूसरी ओर, कई बार उनकी टिप्पणियां न सिर्फ विपक्ष बल्कि खुद सरकार को भी असहज कर देती थीं। विशेष रूप से न्यायपालिका, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और संसदीय मर्यादाओं से जुड़े मामलों पर उनकी स्पष्ट और मुखर टिप्पणियां चर्चाओं का केंद्र बनीं। यही कारण है कि उनका अचानक त्यागपत्र एक “सामान्य स्वास्थ्य मामला” भर नहीं माना जा रहा, और इस पर सियासी विश्लेषण शुरू हो गया है।
कोई फेयरवेल नहीं, कोई औपचारिकता नहीं—धनखड़ के निर्णय में स्पष्टता
धनखड़ के करीबियों ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस इस्तीफे के साथ कोई औपचारिक विदाई या ‘फेयरवेल’ कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया है। यह पूरी तरह से निजी स्वास्थ्य और पारिवारिक चिंता के आधार पर लिया गया निर्णय है। इस फैसले से यह संकेत भी मिलता है कि धनखड़ ने राजनीतिक या संवैधानिक प्रोटोकॉल की बजाय अपने व्यक्तिगत जीवन और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी है, जो एक दुर्लभ उदाहरण बनता है।
एक असमाप्त कार्यकाल, लेकिन तीव्र प्रभाव
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में कई सवाल छोड़ गया है। जहां एक ओर उन्होंने अपने तीन साल के अल्पकालिक कार्यकाल में राज्यसभा की गरिमा को बनाए रखने के लिए कई कड़े फैसले लिए, वहीं दूसरी ओर उनकी अचानक विदाई उनके काम के अधूरेपन का आभास कराती है। यह फैसला चाहे जितना भी निजी हो, लेकिन इसके राजनीतिक मायने अनदेखे नहीं किए जा सकते। आने वाले समय में यह साफ होगा कि इस इस्तीफे की पृष्ठभूमि में और क्या-क्या कारण रहे। फिलहाल, देशभर में उनकी सेहत के लिए शुभकामनाएं और भविष्य के निर्णयों के लिए गंभीर अपेक्षाएं बनी हुई हैं।