बातरस
राजेश राठौर
दिवाली…के ठीक पहले धनतेरस ( Dhanteras ) का बड़ा महत्व है। गरीब और मध्यवर्गीय परिवार से लेकर अरबपति परिवार भी जोश-खरोश के साथ इस त्योहार को मनाते हैं। गरीब को तो जीवन भर गरीब रहना है, तो वह बेचारा बर्तन बाजार जाकर एक-दो बर्तन खरीदकर त्योहार मना लेता है। लेकिन, भ्रष्ट अफसर के लिए दिवाली तो एक तरह से ‘तिजोरी का खजाना’ भरने जैसी होती है। हर कोई अफसरों के यहां मिठाई, ड्राईफ्रूट्स और महंगे तोहफे लेकर जाता है ताकि उसके ‘धंधे की सलामती’ बनी रहे।
Dhanteras पर लक्ष्मी जी से करते हैं कामना
हम तो धनतेरस ( Dhanteras ) पर लक्ष्मी जी से कामना करते हैं कि इन भ्रष्ट अफसरों और राजनेताओं की झोली आखिर कब तक भरी जाएगी। कब इन गरीबों को स्वाभिमान के साथ जीने का हक मिलेगा। कब तक ये गरीब मुफ्त का ही राशन खाते रहेंगे। कब तक युवा बेरोजगार की तरह घूमते रहेंगे। लक्ष्मी मां की कृपा जरूरतमंदों पर कब होगी। राजनेताओं और अफसरोंं के यहां इतने मिठाई और ड्राईफ्रूट्स के डब्बे पहुंच जाते हैं कि वो भले ही सड़ जाए, लेकिन अफसर ओर नेता अपने यहां दिवाली पर आने वाली मिठाई जरूरतमंदों को नहीं देते हैं। अफसरों और राजनेताओं के यहां माफिया किस्म के लोग लाइन लगाकर बंगले पर मिठाई और गिफ्ट देने के लिए खड़े रहते हैं।
यदि एक शहर के ही अफसर और राजनेताओं के यहां पहुंचने वाली मिठाई और ड्राईफ्रूट्स का हिसाब लगा लें तो 2-3 हजार किलो से कम नहीं होती होगी। अब सोचने की बात है कि ये सारे अफसर 8 दिन में दो-चार किलो से ज्यादा मिठाई और ड्राईफ्रूट्स खा नहीं सकते। मिठाई और ड्राईफ्रूट्स भले ही सड़ जाए लेकिन किसी जरूरतमंद के मुंह लग जाए, इसकी कल्पना अफसर और राजनेता दोनों ही नहीं करते। होना यह चाहिए कि अफसर और राजनेताओं को हाथों-हाथ यह मिठाई गरीब बस्तियों में बंटवा देना चाहिए क्योंकि बंगाली मिठाई तो एक-दो दिन में ही उपयोग की जा सकती है, बाद में तो बंगाली मिठाई का सडऩा तय है। अफसर और राजनेताओं के यहां दिवाली के मौके पर गुलदस्तों की भी भरमार हो जाती है।
आज तक किसी अफसर या राजनेता ने यह कहने की हिम्मत नहीं जुटाई कि कोई भी उनके यहां दिवाली पर हार-फूल, मिठाई, ड्राईफ्रूट्स या गिफ्ट लेकर न आएं, हम उनका मुंह मीठा कराएंगे। अनावश्यक रूप से इतनी ज्यादा सामग्री आने के कारण उसका उचित उपयोग नहीं हो पाता है। जिस तरह से सभी समाजों के कुछ-कुछ लोग अपने परिवार में शादी होने पर पत्रिका में लिखते हैं कि ‘न हार-न फूल-न उपहार, बस आपका आशीर्वाद’ चाहिए। क्या इस तरह की अपील सारे अफसर और राजनेता दिवाली जैसे त्योहार पर नहीं कर सकते। सवाल इस बात का उठता है कि इतना बड़ा कदम उठाने के लिए राजनेता और अफसर का दिल बड़ा होना चाहिए। लेकिन इनके दिल तो इतने छोटे हैं कि भले ही मिठाई सड़ जाए, हम किसी को भी एक टुकड़ा नहीं देंगे। अफसर और राजनेता चाहें तो खुद ऐसा कह सकतेे हैं कि हम उक्त बस्ती में जाएंगे और वहां जरूरतमंदों को मिठाई और गिफ्ट बाटेंगे तो फिर सारे लोग वहां आ जाएं और जरूरतमंद की दिवाली भी ऐसी मने कि उनको लगे कि हमारे त्योहार पर भी अफसर और राजनेता हमारे साथ हैं।