तीन स्वरूपों में होते हैं Maa Kalika के दर्शन… बेहद रोचक है इतिहास

पीनल पाटीदार, स्वतंत्र समय

शारदीय नवरात्रि में देश भर में देवी मंदिरों में नौ दिनों तक पूजा अर्चना होती है, लेकिन धार जिले के सुसारी में लगभग 1401 वर्ष से भी ज्यादा पुराना मां कालिका ( Maa Kalika ) का प्राचीन मंदिर है। जिसका इतिहास बेहद रोचक है। सुसारी ग्राम में स्थित माँ कालिका माता का मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का स्थल है।

Maa Kalika का मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक

मां कालिका ( Maa Kalika ) का यह मंदिर सुसारी ग्राम के मध्य भाग में स्थित है और इसे क्षेत्र के प्रमुख शक्ति केंद्रों में से एक माना जाता है। इसकी तुलना धार नगर के प्रसिद्ध माँ कालिका मंदिर से की जाती है और यह सुसारी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। नवरात्रि के अवसर पर आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में शतचंडी पाठ और हवन का आयोजन अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दौरान पूरे नौ दिनों तक पाठ और हवन के साथ प्रतिदिन रात्रि 8 बजे महाआरती का विशेष आयोजन होता है। इस प्रकार के आयोजनों में सैकड़ों भक्त भाग लेते हैं और अपने धर्म के प्रति श्रद्धा प्रकट कर धार्मिक लाभ प्राप्त करते हैं। भक्तों की उपस्थिति इन आयोजनों को और अधिक पवित्र और विशेष बना देती है, क्योंकि नवरात्रि का यह समय देवी दुर्गा की उपासना और भक्ति का प्रमुख पर्व माना जाता है।

किले की खुदाई के दौरान मिलीं थी प्रतिमा

मंदिर के निर्माण की सटीक तिथि का उल्लेख किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज में नहीं मिलता है, लेकिन स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार यह मंदिर लगभग 1401 वर्ष पुराना है। इसकी स्थापना से जुड़ी एक अनोखी कथा भी है। कहा जाता है कि ग्राम के मध्य में स्थित किले की खुदाई के दौरान दो महत्वपूर्ण मूर्तियाँ प्राप्त हुईं—एक माँ कालिका की चतुर्भुज प्रतिमा, जो सिंहासन पर विराजित है, और दूसरी माँ अंबिका माता की प्रतिमा। इस घटना को मंदिर की स्थापना से जोड़ा जाता है और इसे गांव के धार्मिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है। यह मंदिर ग्रामवासियों और श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र है, जहाँ माँ कालिका की पूजा-अर्चना होती है और लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहाँ आते हैं।

गांव की सीमा से आगे हिल भी नहीं पाई बैलगाड़ी

माँ कालिका मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का केंद्र है, जो अपनी प्राचीन मूर्तियों और स्थापना से जुड़ी अनोखी कथा के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि जब खुदाई के दौरान माँ कालिका और माँ अंबिका की प्रतिमाएँ प्राप्त हुईं, तब देश पर अंग्रेजों का शासन था। उस समय कुक्षी नगर के एक प्रभावशाली साहूकार ने प्रशासन का समर्थन प्राप्त कर इन प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा कुक्षी नगर में करवाने का निर्णय लिया। इस फैसले का गाँववासियों ने विरोध किया, लेकिन प्रशासन के आगे उनकी एक न चली। साहूकार ने प्रतिमाओं को बैलगाड़ी में रखकर कुक्षी नगर ले जाने का प्रयास किया, लेकिन सुसारी ग्राम की सीमा में स्थित एक नाले पर पहुँचते ही बैलगाड़ी रुक गई। साहूकार ने बैलगाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए बारह जोड़ी बैलों का उपयोग किया, फिर भी बैलगाड़ी हिल नहीं पाई। अंतत: उसे हार माननी पड़ी और अपनी योजना छोडऩी पड़ी। आश्चर्यजनक रूप से, केवल एक जोड़ी बैल के सहारे बैलगाड़ी वापस सुसारी ग्राम की ओर चल पड़ी। इसके बाद, ग्रामवासियों ने माँ कालिका और माँ अंबिका की प्रतिमाओं को गाँव के मध्य में स्थापित करने का निर्णय लिया।

नींव खुदाई में निकलीं मां कालिका

प्रतिमाओं की स्थापना के कुछ वर्षों बाद, स्थानीय निवासी रणछोडज़ी जाटपुरीया के घर की नींव की खुदाई के दौरान माँ कालिका की अष्टभुजा वाली एक अन्य प्रतिमा प्राप्त हुई, जिसमें माँ कालिका भगवान शिव पर विराजमान थीं। यह प्रतिमा भी जाटपुरीया परिवार द्वारा मंदिर में स्थापित की गई। इस मंदिर की पूजा-अर्चना का कार्य त्रिवेदी परिवार के द्वारा किया जाता है, जो मंदिर की स्थापना से ही इस जिम्मेदारी को निभा रहा है। मंदिर का संचालन गाँव की पंचायत द्वारा किया जाता है। यह मंदिर आज भी सुसारी ग्राम और आसपास के क्षेत्रों के लोगों के लिए एक विशेष श्रद्धा और आस्था का केंद्र है।

दुर्गा सप्तशती के पाठ को दीवारों पर उकेरा गया

2011 में सुसारी स्थित कालिका माता मंदिर के नवनिर्माण के दौरान एक विशेष कार्य किया गया, जिसमें मंदिर की दीवारों पर दुर्गा सप्तशती के पाठ को पत्थरों पर उकेरा गया और उन्हें मंदिर की दीवारों पर लगाया गया। यह एक अनूठी परंपरा है, जो किसी अन्य मंदिर में शायद ही देखने को मिलती है। इस अद्वितीय कार्य ने मंदिर को और अधिक पवित्र और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना दिया है। यह विशेषता कालिका माता मंदिर को और भी विशिष्ट बनाती है। श्री महाकालेश्वर मंदिर में श्री महाकालेश्वर भगवान को महाराष्ट्र औरंगाबाद से पधारे भक्त श्री गौरव मालपानी  द्वारा पं. रमाकांत जोशी की प्रेरणा से 01 नग चांदी का मुकुट भेट किया।  जिसका वजन लगभग 3400 ग्राम है। श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रभारी राकेश श्रीवास्तव द्वारा प्राप्त पर दानदाता का सम्मान किया जाकर विधिवत रसीद प्रदान की गई।