dogs-cats लड़ते नहीं… ऐश करते हैं

 


डॉ. रजनी भंडारी
सामाजिक कार्यकर्ता
न्यू जर्सी

जब से अमेरिका आई हूँ और यहाँ के जानवरों, विशेषकर कुत्ते और बिल्लियों ( dogs-cats ) के ऐश और उनकी लाइफ स्टाइल देखती हूँ तो मुझे अपने देश का ब्लैकी याद आता है। जब भी उसे मेरे बेटे ने घर के अंदर बुलाया मेरा पारा सातवें आसमान पर हो जाता है और मैं कहती हूँ इसे बाहर करो और अगर दूध भी देना है तो बाहर जाकर दो। जब तक ब्लैकी बाहर नहीं जाता मेरी बड़बड़ चलती रहती है।

यहां दो-दो dogs-cats रखने का फ़ैशन है

आपको बता दूँ ब्लैकी एक स्ट्रीट डॉग है जो मेरे बेटे की कम्युनिटी में रहता है , बेचारे ब्लैकी को तो मिल्क के लिए भी डॉट खानी पड़ी मेरी, पर यहाँ के कुत्ते तो आपसे और हमसे भी महँगा खाना खाते हैं। मेरी बेटी की फ्रेंड ने दो बिल्ली पाली हैं और वो बड़े शान से बता रही थी लूसी का खाना तो एक विशेष ब्रांड का ही आता है। ये तो मिल्क नहीं पीता और हमारे देश की बिल्ली तो कूदकर किचिन का दूध पीकर ख़ुद को धन्य मानती है। बेचारी ने तो कभी सुना ही नहीं ब्रांडेड फूड। एक बात और यहाँ दो-दो कुत्ते और बिल्ली ( dogs-cats ) रखने का फ़ैशन है। इनकी सुंदरता को मैंटेन करने के लिए ये पार्लर भी जाते हैं, उनका वाश और पेडीक्योर भी होता है। इनके भाग्य को देखकर किसी को भी जलन हो सकती है बड़ी बड़ी गाडिय़ों की फ्रंट सीट पर बैठे ये महाशय तो मानो राजा होते हैं। अगर इनके मालिक को ऑफिस जाना होता है तो महाशय डे केयर में छोड़ दिये जाते हैं। डे केयर में इनका बेड, इनकी प्लेट और इनका खाना देख मुझे इनकी कि़स्मत से बहुत ही जलन सी महसूस होती है, जब मुझे अपने देश का ख्याल आता है ।
अमेरिका में डॉग वॉकर जितना कमाते हैं उनता एक भारतीय आम सर्विस में नहीं कमा सकता। यहां की सड़कों पर आपको हाथ में कुत्ता पकड़े एक से एक सुंदर महिलायें नजऱ आएंगी और वो जो काम करती है उसे अगर आपको करना पड़े तो आप अपना सिर पीट लेंगे। डॉगी की पूप आपको एक स्पेचुला से उठाकर प्लास्टिक बैग में रखनी होती है और उसे आगे मिलने वाली डस्टबीन में डालना होता है। ये नजारा आप को अमेरिका की प्रत्येक कम्युनिटी में सबेरे हो या शाम देखने को मिलेगा। जब मैं पहले बार यहाँ आई थी तो समझ ही नहीं आया था कि मॉर्निंग वाक पर जाने वाले और एक हाथ में डॉगी को पकडऩे वाले के दूसरे हाथ में प्लास्टिक का क्या पकड़ा है।जब घर आकर बेटी से पूझा तो उसने ये सब बताया। जब भी लिमोज़ीन की सीट पर शान से पसरे इन महानुभाव को देखा तो मुझे उन बच्चों की याद आई, जिनको स्कूल में बैठने को टाटपट्टी भी नहीं मिलती । ये सब पढक़र आप कहेंगे तो क्या हुआ हमारे भारत में भी तो अभिजात्य वर्ग में इनके नखरे भी होते हैं और ये कार में भी जाते हैं। माना पर यहाँ तो जो शानों शौक़त और ठाठ-बाठ मैंने इन दोनों के देखे वैसे तो इंसानों को भी कई देशों में नहीं मिलते । यहाँ तो अपने-अपने में सभी मगन है कि वो आपकी तरफ़ देखते भी नहीं, पर अगर किसी का कुत्ता दिखा तो ज़रूर देखेंगे कौन सी ब्रीड का है, कितना महंगा है और कितना सुंदर है। फिर अपने वाले से उसकी तुलना करेंगे। हमारे वहाँ तो कुत्ता बोलना ही गाली और अपशब्द होता है अगर किसी से नाराज़ हैं तो बड़े आराम से बोल देते है कुत्ता कहीं का , यहाँ तो बार-बार बोलते हैं ये तो अमेरिका का है साला, हमसे ज़्यादा ऐश कर रहा है , भाग्य इसी को कहते हैं और यही सोचने में आता है कि भाग्य हो तो इनके जैसा…।