सावन का महीना भगवान शिव की आराधना और आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। साल 2025 में यह शुभ महीना 11 जुलाई से शुरू होकर 9 अगस्त तक चलेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें करने से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है और भोलेनाथ की कृपा से वंचित भी होना पड़ सकता है।
आइए जानते हैं कि इस पवित्र समय में किन बातों से बचना चाहिए..
1. तामसिक आहार और मांस-मदिरा से करें परहेज
सावन में सात्विक जीवनशैली अपनाना अत्यंत जरूरी होता है। इस महीने मांसाहार, मदिरा सेवन और अत्यधिक मसालेदार या तामसिक भोजन को त्यागना चाहिए। यह समय शरीर और आत्मा की शुद्धि का होता है, जिसमें संयम और सरल आहार की अहम भूमिका होती है।
2. क्रोध और कटुता से रहें दूर
इस महीने में मन, वाणी और व्यवहार पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। क्रोध, घमंड और कटु शब्दों का प्रयोग करने से बचें, क्योंकि ये नकारात्मक भावनाएं शिवभक्ति की साधना में विघ्न डाल सकती हैं।
3. शारीरिक सौंदर्य संबंधी कार्यों से बचें
धार्मिक परंपराओं के अनुसार सावन में बाल कटवाना, दाढ़ी बनवाना या नाखून काटना वर्जित होता है। इस महीने को तप और साधना का काल माना जाता है, जहां भौतिकता की बजाय आंतरिक शुद्धता पर जोर दिया जाता है।
4. खरीद-फरोख्त और गृह प्रवेश ना करें
सावन में किसी भी प्रकार की संपत्ति की खरीद-बिक्री, नया घर लेना या गृह प्रवेश करना शुभ नहीं माना जाता। इस महीने में चातुर्मास की शुरुआत होती है, जिसे मांगलिक कार्यों के लिए निषेध काल कहा गया है।
5. शिव पूजा में ना करें ये गलतियां
शिवलिंग पर तुलसी पत्र, केतकी के फूल, हल्दी या कुमकुम चढ़ाना वर्जित होता है। तुलसी देवी विष्णु की प्रिय मानी जाती हैं और शिव को तुलसी अर्पण करना निषेध है। पूजा करते समय इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
6. भोजन में रखें सावधानी
सावन में कुछ खास चीजों से भी परहेज करना चाहिए। जैसे कढ़ी, दही से बनी चीजें, मूली, बैंगन और अत्यधिक मसालेदार खाना। ये खाद्य पदार्थ पाचन में बाधा डाल सकते हैं और धार्मिक दृष्टिकोण से भी इनका सेवन अवांछनीय माना गया है।
7. दूध का करें सम्मान, ना करें अपमान
दूध को सावन में एक पवित्र आहुति के रूप में माना जाता है, खासकर शिव अभिषेक में इसका उपयोग होता है। ऐसे में दूध का अपमान, फेंकना या उसे व्यर्थ करना अनुचित माना जाता है।
8. विवाह और संस्कारों से रखें दूरी
सावन के महीने से ही चातुर्मास का आरंभ होता है, जिसमें किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे शादी, मुंडन, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते। यह काल केवल साधना, व्रत और पूजा के लिए उपयुक्त होता है।