Drinking water crisis से जूझती दुनिया, कैसे बचेगा जीवन

 


ज्ञानेन्द्र रावत
वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद्

दुनिया में पेयजल की समस्या ( Drinking water crisis ) दिनों दिन विकराल होती चली जा रही है। इसकी भयावहता का सबूत यह है कि दुनिया में आज लगभग 4.4 अरब लोग पीने के साफ पानी से महरूम हैं। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के 135 देशों में किये गये अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। इस अध्ययन से इस बात के भी सबूत मिले हैं कि हकीकत में यह तादाद पहले से जारी तादाद से दोगुणे से भी ज्यादा है। यह हालात की भयावहता का तो सबूत है ही, भीषण खतरे का संकेत है कि अब भी समय है, चेत जाओ वरना हाथ मलते रह जाओगे।

Drinking water crisis की यह स्थिति भयावह

स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट आफ एक्वाटिक साइन्स एण्ड टेक्नोलाजी के अध्ययन कर्ता एस्टर ग्रीनबुड की मानें तो यह पेयजल की समस्या ( Drinking water crisis ) बेहद भयावह और अस्वीकार्य है कि दुनिया में इतनी बड़ी आबादी की पीने के साफ पानी तक पहुंच नहीं है। इन हालात को तत्काल बदले जाने की जरूरत है। विडम्बना यह है कि इसके बावजूद दुनिया की सरकारें पेयजल को बचाने और जल संचय के प्रति क्यों गंभीर नहीं हैं। यह समझ से परे है। जबकि संयुक्त राष्ट्र बरसों से चेतावनी दे रहा है कि जल संकट समूची दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन जायेगा और अगर अभी से पानी की बढ़ती बर्बादी पर अंकुश नहीं लगाया गया तथा जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गये तो हालात और खराब हो जायेंगे जिसकी भरपायी असंभव हो जायेगी।
गौरतलब है कि सबसे बड़ा संकट तो पानी के मामले में आंकड़ों का है जिसमें दुनिया के देशों की सरकारी की नाकामी जगजाहिर है। यह सबूत है कि आज भी दुनिया में कुछ ही लोगों को पीने का साफ पानी मिल रहा है। स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट आफ एक्वाटिक साइनस एण्ड टैक्नालाजी के वैज्ञानिक एस्टर ग्रीनबुड तो यही मानते हैं कि आज भी वैश्विक आबादी के सिर्फ आधे हिस्से के लिए जल गुणवत्ता संबंधी आंकड़े उपलब्ध हैं। न अमीर देशों के पास पानी के स्पष्ट आंकड़े हैं। ऐसी स्थिति में अभावग्रस्त देशों के लोगों तक क्या कभी साफ पानी की पहुंच हो पायेगी? जबकि अब यह स्पष्ट है कि दुनिया अपने बुनियादी लक्ष्यों तक को पाने के मामले में बहुत पीछे है। यह अच्छे संकेत नहीं हैं। इन हालातों में 2015 में संयुक्त राष्ट्र का मानव कल्याण में सुधार के लिए सतत विकास लक्ष्य के तहत सभी के लिए 2030 तक सुरक्षित और किफायती पेयजल की आपूर्ति सपना ही रहेगी। इंटरनेशनल ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट सेंटर के अनुसार पूरी दुनिया में आज भी 270 करोड़ लोग ऐसे हैं जो पूरे एक वर्ष में तकरीब तीस दिन तक पानी के संकट का सामना करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की मानें तो अगले तीन दशक में पानी का उपभोग यदि एक फीसदी की दर से भी बढ़ेगा, तो दुनिया को बड़े जल संकट से जूझना पड़ेगा।
वैज्ञानिकों की मानें तो साफ पानी की पहुंच से दूर देशों के मामले में दक्षिण एशिया शीर्ष पर है जहां 1200 मिलियन लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं, वहीं उप सहारा अफ्रीकी देशों के 1000 मिलियन, दक्षिण पूर्व एशिया के 500 मिलियन और लैटिन अमेरिकी देशों के 400 मिलियन लोग साफ पानी से महरूम हैं। यह पानी के मामले में दुनिया की शर्मनाक स्थिति है। हकीकत यह है कि इन क्षेत्रों में पानी में दूषित पदार्थों की मौजूदगी सबसे बड़ी समस्या है, फिर बुनियादी ढांचे की कमी भी वह अहम कारण है जिसने समस्या की विकरालता में प्रमुख भूमिका निबाही है। गौर करने वाली बात यह है कि 2020 में दुनिया में निम्न-मध्यम आय वर्ग वाले देशों के लगभग 33 फीसदी लोग साफ पानी से वंचित थे जबकि आज हालत यह है कि लगभग 61 फीसदी आबादी एशिया में, 25 फीसदी आबादी अफ्रीका में, 11 फीसदी अमेरिका और 3 फीसदी यूरोप की आबादी साफ पानी के संकट से जूझ रही है। जहां तक भारत का सवाल है, यहां की 35 मिलियन से भी ज्यादा आबादी साफ पानी से दूर है। नीति आयोग तो यह तादाद 60 करोड़ से भी ज्यादा बतायी है।
यूनिसेफ़ के अनुसार भारत में 1.96 करोड़ आवासों में जो पानी पहुंच रहा है, उसमें फ्लोराइड और आर्सेनिक की तादाद बहुत ज्यादा है। इससे यहां जलजनित रोगों पर सालाना 42 अरब रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। यह जगजाहिर है कि जल का हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। यह भी कि जल संकट से एक ओर कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं दूसरी ओर जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है। विश्व बैंक का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते पैदा हो रहे जल संकट से 2050 तक वैश्विक जी डी पी को छह फीसद का नुक़सान उठाना पड़ेगा। आखिरकार इस वैश्विक समस्या के लिए जिम्मेदार कौन है? जाहिर है इसके पीछे वह मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं जिसमें कहीं न कहीं उसके लोभ, स्वार्थ और भौतिकवादी जीवनशैली का अहम योगदान है जिसके चंगुल में वह आकंठ डूब चुका है। वैश्विक स्तर पर देखें तो अभी तक यह स्थिति थी कि दुनिया में दो अरब लोगों को यानी 26 फीसदी आबादी को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं था। पूरी दुनिया में 43.6 करोड़ और भारत में 13.38 करोड़ बच्चों के पास हर दिन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। यूनिसेफ़ की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते हालात और खराब होने की आशंका है। दुनिया में हर तीन में से एक बच्चा यानी 73.9 करोड़ बच्चे पानी की कमी वाले इलाकों में रह रहे हैं। इसके अलावा पानी की घटती उपलब्धता, अपर्याप्त पेयजल और स्वच्छता की कमी का बोझ चुनौतियों को और बढा़ रहा है। दुनिया में वह शीर्ष 10 देश जहां के बच्चे पर्याप्त पानी से महरूम हैं, उसमें भारत शीर्ष पर है जिसके 13.38 फीसदी बच्चे पर्याप्त पानी से महरूम हैं।
उसके बाद नाइजीरिया के 2.65 फीसदी, पाकिस्तान के 2.42 फीसदी, इथियोपिया 2.32 फीसदी, चीन 2.03 फीसदी, नाइजर 1.43 फीसदी, तंजानिया 1.39 फीसदी, यमन 1.27 फीसदी, सूडान 1.22 फीसदी और केन्या का नम्बर आता है जहां के 1.06 फीसदी बच्चे पर्याप्त पानी से महरूम हैं। जल संकट के लिए दुनिया में अति संवेदनशील माने जाने वाले 37 देशों की सूची में भारत भी शामिल हैं। यह सबसे चिंतनीय है। यूनीसेफ की रिपोर्ट यह भी कहती हैं कि 2050 तक भारत में मौजूद जल का 40 फीसदी हिस्सा खत्म हो चुका होगा। यही चिंता का विषय है कि तब क्या होगा ?
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।)