Arvind Kejriwal के लिए ईडी तो सूर्पणखा साबित हुई

लेखक
राकेश अचल

सब कहते थे कि हमारी संवैधानिक संस्थाओं के पास न दांत हैं और न नाखून, लेकिन ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया, 21 मार्च की रात दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ( Arvind Kejriwal ) की गिरफ्तारी के बाद ये साबित हो गया है कि ईडी कोई स्वप्न सुंदरी नहीं बल्कि वो संस्था है जिसके पास छुपे हुए नाखून और न दिखने वाले पैने दांत भी हैं। यानि ईडी किसी सूर्पणखा से कम नहीं है। ईडी के इतिहास का ये बसे बड़ा कारनामा है कि उसने एक कथित घोटाले में एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया है।देश में भ्र्ष्टाचार के खिलाफ मुहिम कहिये या अदावत की राजनीति कहिये ,जो हो रहा है है वो अविश्वसनीय है । हमारे वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना कहते हैं कि -चीज़ों के गिरने के नियम होते हैं! मनुष्यों के गिरने के कोई नियम नहीं होते। लेकिन चीज़ें कुछ भी तय नहीं कर सकतीं। अपने गिरने के बारे में। मनुष्य कर सकते हैं,बचपन से ऐसी नसीहतें मिलती रहीं कि गिरना हो तो घर में गिरो ,बाहर मत गिरो ,यानी चि_ी में गिरो, लिफ़ाफ़े में बचे रहो, यानी आँखों में गिरो ,चश्मे में बचे रहो, यानी ,शब्दों में बचे रहो। इस कविता को मै हमेशा याद रखता हूँ और सोचता हूँ कि राजनीति में भी गिरने कि नियम होना चाहिए थे ,जो
दुर्भाग्य से नहीं हैं।
अरविंद केजरीवाल दरअसल केंद्रीय सत्ता की आँख कि बाल थे, नाक के बाल होते तो शायद बच भी जाते गिरफ्तारी से। केंद्रीय सत्ता एक ऐसा छाता है जिसके नीचे खड़े होकर हर आपदा से बचा जा सकता है। अजित पंवार हों या अशोक चौहान ,सुरेश पचौरी हों या ज्योतिरादित्य सिंधिया सबके सब आखिर बच गए न ! अन्यथा आप जिसे चाहो भ्र्ष्टाचार कि आरोप में ईडी कि जरिये उठवा लीजिये,जेल में डाल दीजिये और वर्षों तक बिना मुकदमा चलाये अपनी कैद में रखिये। मनीष सिसोदिया,और संजय सिंह की तरह। उन्हें दोषी या निर्दोष साबित करने की जरूरत नही। वे दोषी होने कि बाद जितनी सजा के हकदार होंगे उतनी कैद उन्हें एक विचारधीन कैदी कि रूप में जेल में रखकर हिसाब बराबर किया जा सकता है।
अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी कि लिए मै निजी तौर पर ईडी को शाबासी देना चाहता हूँ। कम से कम ईडी ने ये तो साबित किया कि वो एक कुशल कठपुतली है और नचाने वाले कि हर इशारे को बाखूबी समझती है। अरविंद की गिरफ्तारी में ईडी का कोई दोष नहीं है । सारा दोष अरविंद केजरीवाल की किस्मत का है। उनकी और उनकी पार्टी की किस्मत खराब है इसलिए उन्हें ये दिन देखना पड़ रहे हैं। आगे इससे भी ज्यादा बुरे दिन देखना पड़ सकते हैं। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में जेल में उनकी संगत कि लिए पंजाब कि मुख्यमंत्री श्रीमान भगवंत मान भी गिरफ्तार कर लिए जाएँ। इस देश में कुछ भी सम्भव है। ईडी ने 68 साल में पहली बार कोई पुरुषार्थ दिखाया है।
शराब घोटाले में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के लिए कोई अगर माननीय कामचलाऊ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को दोषी मानता है तो मै सोचता हूँ के ये उसका पूर्वाग्रह है । मोदी जी यदि इस गिरफ्तारी कि पीछे होते तो क्या अभी तक अरविंद केजरीवाल उनके सामने अपनी आँखें लाल कर खड़े हो सकते थे। मोदी जी ने तो अरविंद केजरीवाल को बाल-बाल बचाने की कोशिश की ,लेकिन वे खुद ही नहीं बचना चाहते थे तो बेचारे मोदी जी क्या करते ? मोदी जी जैसा उदार प्रधानमंत्री अरविंद केजरीवाल को कम से कम इस जन्म में तो नहीं मिल सकता। केजरीवाल को मोदी जी का कृतज्ञ होना चाहिए।हमारी केंद्रीय सत्ता की उदारता और दरियादिली का सबसे बड़ा सबूत ये है कि उसने या उसकी कठपुतली ईडी ने अभी तक कांग्रेस कि राहुल गांधी को गिरफ्तार नहीं किया। राहुल गांधी से सिर्फ लम्बी पूछताछ की गयी । वरना किसी की गिरफ्तारी में आखिर कितना वक्त लगता है ? मोदी जी की न सही लेकिन ईडी की दरियादिली है कि उसने कांग्रेस कि सिर्फ खाते फ्रीज किये ,ईडी चाहती तो कुछ भी फ्रीज कर सकती थी। केंचुआ ने आखिर राहुल गांधी को एडवांस में एडवाइजरी दी ही थी न ?यानि अभी भी मोदी जी ,उनकी ईडी,सीबीआई और केंचुआ राहुल गांधी पर मेहरबान है । कांग्रेस को भी मोदी जी की कदर करना चाहिए।झारखण्ड में हेमंत सोरेन और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से भाजपा का मिशन 400 पार आसान हो सकता ह। होना भी चाहिए ,क्योंकि भाजपा कि पास जनता की सहानुभूति बटोरने कि लिए फिलहाल कोई दूसरा उपाय है भी नहीं। चुनाव या तो सहानुभूति से जीते जाते हैं या फिर जोड़तोड़ से। जब सहानुभूति न हो तो जोड़तोड़ ही इकलौता विकल्प बचता है । आपको आजादी है कि आप चाहें तो केजरीवाल की गिरफ्तारी को जोड़तोड़ से जोडक़र देख सकते हैं। राजनीति में जैसे गिरने का कोई नियम नहीं है वैसे ही जोड़तोड़ का भी कोई नियम नहीं है। मुमकिन है की भविअश्य में इस जोड़तोड़ कि लिए भी कोई नियम,कोई धारा बना ली जाये।
देश में जब लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गयी है ऐसे में कोई भी गिरफ्तारी भी आदर्श नहीं कही जा सकती। केंचुआ को चाहिए कि वो अपनी आदर्श आचार संहिता में इस बात को भी जोड़े कि संहिता लागू होने कि बाद किसी भी राजनितिक दल कि किसी भी छोटे-बड़े नेता को किसी पुराने मामले में गिरफ्तार नहीं किया जायेगा । चुनावों के चलते किसी भी नेता या कार्यकर्ता की गिरफ्तारी संविधान की धरा कहें या अनुच्छेद 21 के खिलाफ है। नागरिकों को चुनाव लडऩे ,लडऩे ,प्रचार करने की आजादी तो मिलना ही चाहिए। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी में कुछ भी नया नहीं है। (ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।)
सिवाय समय कि ईडी ने गरफ्तारी कि लिए वो समय चुना है उससे ये बू आती है कि इस गिरफ्तारी कि पीछे साजिश है।
अब आम आदमी पार्टी कि लिए रास्ता खुला है की वो अपने संस्थापक की गिरफ्तारी कि खिलाफ जेलें भरे या चुनाव लड़े । विपक्षी इंडिया गठबंधन की जिम्मेदारी है कि वो केजरीवाल की गिरफ्तारी कि खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़े या सडक़ों पर लड़े या फिर वोट की ताकत से इस कथित अवैध-वैध कार्रवाई का प्रतिकार करे। विपक्ष कि लिए अभी तमाम विकल्प खुले हैं ,तय विपक्ष को ही तय करना है कि कांटे से काँटा निकाला जाये या कोई दूसरा रास्ता निकाला जाये ?