स्वतंत्र समय, भोपाल
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सर कार्यवाह सुरेश सोनी ( Suresh Soni ) ने कहा- शिक्षा के विकास के साथ समस्याएं भी बढ़ रही है। दुनिया में सभी देश विकास चाहते हैं। उस विकास की यात्रा पर आगे बढऩा है तो शिक्षित होना जरूरी है। शिक्षा की पद्धति दुनिया में चल रही है। तुलनात्मक रूप से विकास तो हो रहा है, तो समस्याएं भी बढ़ रही हैं।
Suresh Soni ने कहा मानव के जीवन मूल्यों का विकास हो
रविवार को रवीन्द्र भवन में शिक्षा भूषण अखिल भारतीय सम्मान समारोह में सीएम डॉ. मोहन यादव, संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुरेश सोनी ( Suresh Soni ), स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह, राज्यसभा सांसद बालयोगी उमेश नाथ महाराज बतौर अतिथि शामिल हुए। समारोह में प्रो. केके अग्रवाल, प्रो. रामचंद्र आर, प्रो. कुसुमलता केडिया को ‘शिक्षा भूषण’ सम्मान से सम्मानित किया। सुरेश सोनी ने कहा- जो पहली विसंगति ध्यान में आ रही है कि बाहर के परिवेश का विकास हो रहा है, लेकिन मानव पिछड़ता जा रहा है। वास्तविक विकास तभी हो सकता है। जब हमारे आसपास के परिवेश का विकास हो और साथ ही साथ मानव का भी विकास हो। मानव के जीवन मूल्यों का विकास हो। इस नाते से इसके बीच की जो विसंगति है, उसको पाटने की जरूरत है। यह अगर करना है तो सबसे पहले शिक्षा है क्या?, इसके संदर्भ में एक स्पष्टता बनना चाहिए।
गुरुजी और शिक्षकों में अंतर चुनौतीपूर्ण है : सीएम यादव
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि गुरु पूर्णिमा पर हमेशा यह प्रश्न आता है। गुरु पूर्णिमा पर शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए या नहीं? गुरु और शिक्षक में जो अंतर है, यह बड़ा चुनौती पूर्ण मामला है। जिसको उठाकर मैंने गलती कर दी है। लेकिन महाराज की उस बात का उत्तर ढूंढ रहा था, महाराज ने बताया कि मैं अपने धाम में रहकर अलग धारा में रहता था। हमने कहा महाराज,आपने घर छोड़ा, संसार के सुधार के लिए आप इसी मार्ग पर चलो, मुझे लगता है कि नवरात्रि में आज हमारे बीच में दो शब्द बोलना यह इस मार्ग पर चलने का उदाहरण है। जब-जब इस देश पर प्रश्न खड़े हुए कुछ प्रश्नों की तरफ हम देखेंगे तो ध्यान में आएगा रामायण काल में गुरु वशिष्ठ अगर दशरथ जी के घर नहीं जाते और राम-लक्ष्मण को उठाकर जंगल में नहीं ले जाते तो हम क्या कल्पना कर सकते थे कि रामायण का ऐसा रूप हो सकता था।
बच्चे का जन्म होते ही कॉन्वेंट में भेजना चाहती हैं माताएं : उमेश नाथ
राज्यसभा सदस्य डॉ. उमेश नाथ महाराज ने कहा- हम आज की शिक्षा पद्धति की ओर जब देखते हैं तो कष्ट होता है। जिसे हम ना चाहते हुए भी सहन कर रहे हैं। हमारी प्राचीन परंपरा में शिक्षा व्यवस्था गुरुकुल में गुरुजी के हाथ में होती थी। आज हम गुरु परंपराओं से बहुत वंचित होते चले जा रहे हैं। आज स्थिति ऐसी है कि जब कोई मातृ शक्ति गर्भवती होती है तो वह अपने गर्भस्थ बालक-बालिका के लिए सोचती है कि मेरे बच्चे का कब जन्म हो और वह थोड़ा सा पैदल चलने लगे तो मैं उसे इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेजूं। 99 प्रतिशत माताओं का यह प्रयास रहता है कि वह अपने बच्चे को कॉन्वेंट में भेजना चाहती हैं। लेकिन, उसके मन में यह कभी नहीं रहता है कि उसका बच्चे का जन्म हुआ है तो उसे मैं गुरु की शरण में भेजूं।