विपिन नीमा, इंदौर
किसी भी शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए चौड़ी सडक़े, लंबे चौड़े लेफ्ट टर्न, फ्लाईओवर ब्रिज, तथा एलिवेटेड ( Elevated ) कॉरिडोर होना जरुरी हैं। इंदौर में जिस तरह से ट्रैफिक बढ़ता जा रहा है, उसको देखते हुए फ्लावर या एलिवेटेड की संख्या बढ़ानी पड़ेगी। इंदौर शहर की ट्रैफिक व्यवस्था बिगडऩे का कारण यह भी है कि गत 6 साल में तीन बड़े एलिवेटेड कॉरिडोर प्रोजेक्ट स्वीकृत होने के बाद भी सरकारी एजेंसियां नहीं बन पाई। गंगवाल से लेकर एयरपोर्ट तक एलिवेटेड बना था लेकिन मेट्रो प्रोजेक्ट के चक्कर में कागजों में ही सिमट गया। इसी प्रकार जवाहर मार्ग पर राजमोहल्ला से पटेल ब्रिज तक ब्रिज बनने से पहले ही राजनीति में उलझ गया। इसी तरह बीआरटीएस पर प्लानिंग बनने के बाद भी एलिवेटेड धरातल पर नहीं उतर सका। ये यह तीनों एलिमेंट शहर के लिए बहुत जरूरी थे, अगर तीनों महत्वपूर्ण एलिवेटेड बन जाते हैं तो शेर की ट्रैफिक व्यवस्था भी सुगम हो जाती और इंदौर को ट्रैफिक में नंबर एक बनाने का सपना देखने वाले महापौर पुष्यमित्र भार्गव कभी सपना पूरा हो जाता। इस तरह इंदौर को मिलने वाले तीन एलिवेटेड कॉरिडोर अलग-अलग मामलों में उलझ कर रह गए।
ऐसे उलझे तीनों ब्रिज…
1. जवाहर मार्ग एलीवेटेड- मेयर और विधायक की राजनीति में फंसा रहा
2. बड़ा गणपति से एरोड्रम थाने तक एलीवेटेड मेट्रो प्रोजेक्ट के आने से निरस्त करना पड़ा था
3. बीआरटीएस पर बनने वाला एलिवेटेड – आखिरी समय तक फाइनल नहीं हो पाई डिजाइन।
350 करोड़ के BRTS Elevated पर नेताओं व अफसरों ने उलझाया
बीआरटीएस कॉरिडोर पर प्रस्तावित 7.4 किलोमीटर के एलआईजी से लेकर नौलखा चौराहे तक एलिवेटेड ब्रिज भी लटक गया है। एलिवेटेड ( Elevated ) कॉरिडोर पर ब्रिज की संभावना बहुत ही कम नजर आ रही है। एक तरह से करोड़ों का यह प्रोजेक्ट विभागों के बीच उलझकर रह गया। सबसे पहले यह ब्रिज आईडीए बनाने वाला था, इसके बाद ब्रिज को बनाने की जिम्मेदारी एमपीआरडीएस ( मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) को मिली थी। उसने भी 20 को बनाने से मना कर दिया था। अब ब्रिज को बनाने का काम पीडब्ल्यूडी को, लेकिन वह भी टेंडर वाले मामले में उलझ गया है। पीडब्ल्यूडी ने जो प्रोजेक्ट बनाया था उसके अनुसार एलाईजी से नोलाखा तक ब्रिज की तीन भुजाओं का डिजाइन तय हुआ । पहली भुजा ग्रेटर कैलाश अस्पताल की तरफ रहेगी, जबकि दूसरी भुजा गीता भवन चौराहे पर मधुमिलन चौराहे की तरफ रहेगी। ब्रिज की तीसरी भुजा व्हाइट चर्च रोड पर रखी गई थी। 350 करोड रुपए के लागत से बनने वाले 6.70 किलोमीटर एलिवेटेड कॉरिडोर कोई काम शुरू नहीं हुआ है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जनवरी माह में एलिवेटेड कॉरिडोर का भूमि पूजन किया था। इंदौर में एक नहीं, दो नहीं, तीन एलिवेटेड कॉरिडोर हाथ से निकल गए। अगर ये तीनों एलिवेटेड कॉरिडोर बन जाते तो शहर की ट्रैफिक व्यवस्था सुधरती ही नहीं, बल्कि ट्रेफिक में नंबर वन बन कर महापौर पुष्यमित्र भार्गव का सपना पूरा हो जाता।
एयरपोर्ट जाने गंगवाल से एरोड्रम तक ब्रिज बनना जरूरी था
गंगवाल बस स्टैंड से लेकर एयरपोर्ट तक वीआईपी मार्ग पर वाहनों का दबाव इतना बढ़ गया था कि वाहनों को निकलने परेशानी होती रहती थी। गंगवाल बस स्टैंड, राजमोहल्ला चौराहा, अंतिम चौराहा, बड़ा गणपति चौराहा, व्यास पुलिया तक वाहनों का काफी जान लगा रहता। एयरपोर्ट जाने वाले लोगों को काफी परेशानी होती है। कई वार तो इन चौराहों पर। जाम लग जाने के कारण यात्रियों की फ्लाइट तक मिस हो जाती है। इस दबाव को कम करने के लिए ही प्रशासन में एलिवेटेड कॉरिडोर की संभावना तलाशी थी। तात्कालिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 3:45 किलोमीटर का लंबा एलिवेटेड बनाने की मंजूरी दे दी थी। प्रशासन ने एलिवेटेड के लिए फिजिकल सर्वे भी करवा लिया था। सर्वे रिपोर्ट के आधार पर फोर लेन बनना तय हो गया था। इसी बीच एलिवेटेड को बनाने के लिए सब कुछ तैयारियां हो गई थी, लेकिन इंदौर – भोपाल में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट ने आमद दे दी। जब मेट्रो कागजों पर भी नहीं आई थी, तब से ही एलिवेटेड होल्ड पर चला गया था। मेट्रो के आने से सभी एलिवेटेड प्रोजेक्ट को भूल गए।
राजनीतिक खींचतान में खो दिया जवाहर मार्ग का एलीवेटेड ब्रिज
शहर का सबसे बिगड़ैल , अस्त-व्यस्त हमेशा वाहनों से पटा रहने वाला जवाहर मार्ग को सुधारने के लिए कई सालों से प्रयास चल रहे है , लेकिन यह मार्ग न तो सुधरा, न सुलझा, न बदला। आज भी सुबह हो या शाम वाहनों की रेलमपेल बनी रहती है। कई बार तो घंटों जाम में फंसना पड़ता है। आलम यह है कि लोग इस मार्ग से गुजरने में कतराते है। परेशान करने वाली जवाहर मार्ग की ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए 14 साल पहले डॉ. उमाशशि शर्मा ने महापौर रहते सबसे पहले जवाहर मार्ग पर एलिवेटेड ब्रिज बनाने की पहल करते हुए शासन को प्रस्ताव भी भेजा था, लेकिन विधानसभा 4 की विधायक मालिनी गौड़ ने इसका विरोध किया और दूसरे विकल्प तलाशने की बात कहते हुए उक्त प्रस्ताव को निरस्त करवा दिया। इसके बाद एलिवेटेड ब्रिज नहीं बन पाया और जवाहर मार्ग पर ट्रैफिक की समस्याएं जस की तस रहीं।60 करोड़ रु की लागत से एलिवेटेड ब्रिज बनने वाला था। नगर निगम ने जवाहर मार्ग पर एलिवेटेड ब्रिज बनाने के लिए सारी तैयारी कर ली थी। 15 दिन में फिजिबिलिटी सर्वे भी हो चुका था। राजमोहल्ला चौराहे पर भूमिपूजन के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आ गए थे, राजनीति के चक्कर में ऐसा उलझा की पूरे प्रोजेक्ट को निरस्त करना पड़ा। ब्रिज के नहीं बनने से आज भी जवाहर मार्ग की ट्रेफिक व्यवस्था से शहरवासी परेशान हैं।