स्वतंत्र समय, भोपाल
मप्र कर्मचारी चयन मंडल द्वारा की जाने वाली सरकारी नियमित भर्तियों में कर्मचारियों ( Employees ) को विभाग में नियुक्ति देने के बाद 100 प्रतिशत वेतन का लाभ नहीं मिल रहा है। पहले साल 70 प्रतिशत, दूसरे साल 80, तीसरे साल 90 और चौथे साल उसे 100 प्रतिशत वेतन मिल रहा है। इसका खामियाजा मप्र के 40 से 50 हजार कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा है। उन्हें वेतन के रूप में 14 हजार रुपए माह ही मिल पा रहे हैं।
Employees को वेतन देने में भेदभाव किया जा रहा है
प्रदेश के विभिन्न सरकारी दफ्तरों में रिक्त पदों को भरने कर्मचारियों ( Employees ) के लिए वित्त विभाग द्वारा पे-स्केल के साथ ही पद स्वीकृत किए जाते हैं। पिछले तीन सालों में मप्र कर्मचारी चयन मंडल पूर्व में (व्यापमं) द्वारा पटवारी से लेकर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर करीब 40 हजार से अधिक भर्तियां की गई है। ये नियुक्तियां स्वास्थ्य, स्कूल शिक्षा, राजस्व, उच्च शिक्षा, जनजातीय कार्य, पंचायत एवं ग्रामीण विकास जैसे विभागों में की गई हैं। इन कर्मचारियों को विभिन्न विभागों ने नियुक्ति तो दे दी, लेकिन उनके साथ पूरा वेतन देने में भेदभाव किया जा रहा है। मंत्रालय के एक कर्मचारी नेता का कहना है कि तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने बेरोजगार युवाओं को उद्योगों सहित विभिन्न विभागों में 70 प्रतिशत वेतन देने का नियम लागू किया था। कमलनाथ सरकार जाने के बाद शिवराज सरकार आई, लेकिन तीन साल मुख्यमंत्री रहने के बाद भी शिवराज सरकार ने इस नियम को नहीं बदला।
पीएससी से भरे पदों पर पूरा वेतन
मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि एमपीपीएससी से भरे जाने वाले रिक्त पदों पर कर्मचारियों को पूरा वेतन मिल रहा है, लेकिन मप्र कर्मचारी चयन मंडल द्वारा भरे जाने वाले पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों को शुरूआत में 70 प्रतिशत वेतन दिया जा रहा है। तीन साल काम करने के बाद उसे 100 प्रतिशत वेतन दिया जाता है, जबकि परिबीक्षा अवधि दो साल की होती है। इस तरह कर्मचारियों के साथ भेदभाव सरकार स्वयं कर रही है। वर्तमान में विभिन्न विभागों में नौकरी कर रहे 40 हजार से अधिक कर्मचारियों को दैनिक वेतन भोगी कर्मी से भी कम वेतन मिल रहा है।