स्वतंत्र समय, भोपाल
दिल्ली में हुए शराब घोटाले के बाद अब डायरेक्टरेट ऑफ एनफोर्समेंट ( ED ) ने अब मप्र के शराब ठेकों में हुए करोड़ों की फर्जी बैंक गांरटी मामले को अपने रडार में लिया है। आठ साल पहले इंदौर जिले के शराब ठेकों में 42 करोड़ रुपए के फर्जी बैंक गारंटी लगाने के मामले में इंडी ने प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। दरअसल, करीब सात साल पहले हुए 42 करोड़ रुपये के फर्जी बैंक चालान के घपले से भी अधिकारियों ने सीख नहीं ली। उस समय हुए घोटाले में शराब ठेकेदारों के साथ ही कुछ अधिकारियों की भी मिलीभगत सामने आई थी और कई अधिकारी निलंबित भी हुए थे। उस मामले की जांच अब तक चल रही है और उसके बाद फर्जी एफडीआर के कई मामले सामने आ चुके हैं।
ED के जांच करते ही ठेकेदारों में हड़कंप
इन मामलों में भी शराब ठेकेदारों ने बैंक की फर्जी एफडीआर बनवाकर शासन को करोड़ों रुपये का नुकसान पहुंचाया। ऐसे में जैसे ही ईडी ( ED ) ने इस दिशा में जांच शुरू की है आबकारी विभाग के अधिकारियों और ठेकेदारों में हडकंप मच गया है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में मप्र में ठेकेदारों द्वारा बैंक गारंटी के रूप में फर्जी एफडीआर (सावधि जमा रसीद) बनवाकर शराब दुकानों का ठेका लेने के मामले बढ़े हैं। जानकारों का कहना है कि इसमें आबकारी विभाग के अधिकारियों की भी मिलीभगत है। बार-बार हो रही गलतियों और घोटालों के कारण वाणिज्यकर विभाग की बदनामी हो रही है। लेकिन अब ईडी ने इंदौर में हुए 42 करोड़ रू. के फर्जी बैंक चालान मामले में एफआईआर दर्ज कर लिया है। साथ ही जांच में प्रदेश के विभिन्न जिलों में पिछले वर्षों में हुए फर्जी बैंक गारंटी के आधार पर शराब ठेके लेने के मामलों को भी शामिल कर लिया गया है।
7 साल पहले सामने आया था बड़ा मामला
गौरतलब है कि वर्ष 2016-17 में इंदौर जिले में फर्जी बैंक गारंटी के तर पर 42 करोड़ रुपए के ठेके आधार का मामला सामने आया था। फर्जी बैंक गारंटी का मामला तब उजागर हुआ, जब आबकारी विभाग ने संबंधित बैंकों को पत्र लिखकर एफडी की पुष्टि की। बैंकों ने सहायक आयुक्त आबकारी के पत्र के जवाब में बताया कि संबधित नंबरों की एफडी उनके बैंक द्वारा नहीं बनाई गई है। इसके बाद इंदौर जिले की रावजी बाजार पुलिस थाने में प्रकरण दर्ज किया गया। मामला सामने आने के बाद ठेकेदारों द्वारा तेईस करोड़ रुपए की राशि जमा कराई गई। यही नहीं राज्य सरकार ने मामले की गंभीरता से लेते हुए सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। पुलिस ने चौदह शराब ठेकेदारों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर दो दर्जन से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई। लेकिन पुलिस कार्रवाई के बाद जमा की गई नगद राशि का हिसाब नहीं मिला कि 23 करोड़ रुपए की राशि कहां से आई और इस राशि को जुटाने में किसका योगदान है। लगभग सात साल बाद एक शिकायत के आधार पर केन्द्रीय जांच एजेंसी इंडी ने मामले की पड़ताल की तो कई सनसनी खेज जानकारियां सामने आई। सभी कागजातों की छानबीन करने के बाद ईडी ने मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में हुए बहुचर्थित शराब ठेके में फर्जी बैंक गारंटी लगाने के मामले में प्राथमिकी दर्ज कर ली है। साथ ही अन्य जिलों में हुए फर्जी बैंक गारंटी के मामले की भी जानकारी मांगी है।
ED ने मांगी जानकारी
गौरतलब है कि आबकारी विभाग प्रदेश के सबसे कमाऊ विभागों में से एक है। इस विभाग में घपले-घोटाले होते रहते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से फर्जी बैंक गारंटी लगाकर शराब ठेका लेने के मामले बढ़ गए हैं। अब प्रदेश में इस तरह के मामलों में जितनी एफआईआर हुई है, उसकी जानकारी भी ईडी ( ED ) ने मांगी है। ईडी की कार्रवाई की भनक लगते ही आबकारी विभाग के अधिकारियों तथा ठेकेदारों में हड़कंप मच गया है। ईडी की टीम कुछ आईएएस अधिकारियों की भूमिका की भी जांच कर सकती है। मध्यप्रदेश में पहली बार शराब ठेके में फर्जी बैंक गारंटी लगाने के मामले में ईडी ने कार्रवाई शुरू की है।
कई मामले आ चुके हैं सामने
फर्जी बैंक गारंटी के मामले में प्रदेशभर में हुई एफआईआर की भी जानकारी जुटाई जा रही है। इंदौर जिले में वर्ष 2022 में भी इसी तरह लगभग साढ़े छह व करोड़ रुपए की फर्जी बैंक गारंटी लगाकर ठेका लेने का प्रयास किया गया था। इस मामले में भी ठेकेदारी और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई, लेकिन यह सिलसिला समाप्त नहीं हुआ। वर्ष 2023 में भोपाल जिले में लालघाटी की दो दुकानों के लिए राठौर एंड मेहता एसोसिएट्स ने दुकान के लिए 2 करोड़ 84 लाख की बैंक गारंटी लगाई गई थी। सात अप्रैल 2023 को बनाई गई बैंक गारंटी क्रमांक 0789 जीईएफ 00010 दो करोड़ चौरासी लाख रुपए की थी। भोपाल के सहायक आबकारी आयुक्त ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया अरेरा हिल्स भोपाल शाखा को पत्र लिखकर बैंक गारंटी के मामले में जानकारी चाही तो पता चला की उक्त नंबर की कोई बैंक गारंटी शाखा द्वारा जारी ही नहीं की गई। इसके बाद भोपाल के तत्कालीन कलेक्टर आशीष सिंह ने दुकानों का ठेका निरस्त कर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज कर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की थी।