‘आंखन देखी-कानन सुनी’; अयोध्या में उस दिन भावनाओं का समुंदर उमड़ा था

स्वतंत्र समय, इंदौर

अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को भावनाओं का समुंदर उमड़ा था। कारसेवा करने जो लोग पहुंचे थे उन पर किसी का नियंत्रण नहीं था। तमाम बाधाओं को तोड़ते हुए भी मुट्ठी में सरयू नदी की रेत लेकर पहुंचे कारसेवकों ने ये ठान रखा था कि आज यहां से बिना कुछ किए नहीं जाना है। जो माहौल बना था उसके बीच रिपोर्टिंग करना मुश्किल हो रहा था। परेशानी यह भी थी कि वहां से तेज गति से समाचारों को अखबारों के दफ्तर तक कैसे पहुंचाया जाए। आज की तरह उस वक्त संसाधन भी नहीं थे। 1992 के श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के दौर के सारहे वरिष्ठ पत्रकारों और छायाकारों अपने ये अनुभव गुरुवार को इंदौर प्रेस क्लब द्वारा आयोजित ‘आंखन देखी-कानन सुनी’ कार्यक्रम में साझा किए।

  • अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार कृष्णकुमार अष्ठाना ने कहा कि अयोध्या में कारसेवा नई पीढ़ी को गौरव से साक्षात्कार कराने की थी। जिसमें विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की मुख्य भूमिका रही। हालांकि उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने कहा था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता। इसके बावजूद कारसेवक सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अयोध्या पहुंचे थे। उस समय एक नारा बहुत चला था सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे। भारत वह देश है जिसमें वक्त आने पर अपने रक्त से भी इतिहास लिखा है। उस वक्त सरयू नदी कारसेवकों के रक्त से लाल हो गई थी।
  • वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी ने कहा कि मैं पहले बार अयोध्या 1983 में गया था। उस वक्त वहां एक बैठक थी, लेकिन मुझे नहीं पता था कि एक दिन इसी अयोध्या में धूमधाम के साथ श्रीराम लला की इतनी भव्य प्राण प्रतिष्ठा होगी, जिसे देखने के लिए दुनियाभर के लोग आएंगे। हम इतिहास को देखें तो धर्म के नाम पर बड़े-बड़े युद्ध हो रहे हैं, जिसमें हजारों नहीं लाखों लोग मारे जा रहे हैं। ऐसे दौर में अयोध्या सांस्कृतिक एकता की अद्भुत मिसाल है।
  • वरिष्ठ पत्रकार हेमन्त शर्मा जो 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में मौजूद थे, उन्होंने कहा कि तब मेरे जैसे युवा पत्रकार के लिए अयोध्या में लाखों कारसेवक, पुलिस का कड़ा बंदोबस्त एक नया अनुभव था। मैंने ये सब पहले नहीं देखा था। उस समय अखबारों को खबरें भेजना बड़ा कठिन काम था। न तो सब जगह टेलीफोन सुविधा थी और ना ही संचार के अन्य साधन। खबर भेजने का एकमात्र माध्यम फैक्स या फिर टेलीफोन द्वारा डेस्क खबर लिखाना था। अयोध्या में कफ्र्यू की वजह से पोस्ट ऑफिस भी बंद थे। उस दौर में उत्तर भारत की ओर जाने वाली सभी ट्रेनें कारसेवकों से भरी होती थी।
  • जगह-जगह उन ट्रेन में सफर कर रहे कारसेवकों का विभिन्न हिंदू संगठनों द्वारा चाय-नाश्ता और खाने से स्वागत किया जाता था। अयोध्या में हजारों कारसेवक मुट्ठी में सरयू नदी की रेत लेकर बाबरी ढांचे तक पहुंचे थे। वहां पहुंचने पर कारसेवकों ने गुम्बद पर भगवा झंडा लहरा दिया और इसके बाद तो शाम होते-होते बाबरी ढांचा समतल मैदान में तब्दील हो गया। कई कारसेवक वहां लौटते हुए अपने साथ वहां की मिट्टी और ईंटे साथ लेकर आ गए थे।
  • वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने कहा कि पुलिस प्रशासन की वजह से शहर में बाबरी ढांचा के ध्वस्त 6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद दंगा नहीं हुआ। शहर में इसलिए दंगा नहीं कि क्योंकि उस समय के पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों बहुत ही संवेदनशील थे और उन्होंने घटना की गंभीरता समझते हुए अपने मातहतों को छुट्टी नहीं दी और शहर में कफ्र्यू लगा दिया गया था। 90 के दौर में कारसेवकों के स्वागत में जमीन पर रामरज बिछाई जाती थी और आज जब अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है तो आकाश भगवामय हो गया है।
  • वरिष्ठ पत्रकार और छायाकार दिनेश सोलंकी ने कहा कि महू में बाबरी विध्वंस के बाद दंगा नहीं हुआ था। एहतियात के तौर पर 8 दिन का कफ्र्यू लगा दिया गया था। रामशिला पूजन के समय यहां दंगा हो गया था। इस पूजन में पांच हजार लोगों को आना था, लेकिन इसमें करीब 25 हजार लोग एकत्रित हो गए था।
  • वरिष्ठ छायाकार दिलीप लोकरे ने कहा कि 80 और 90 का दशक बड़ा ही संवेदनशील रहा। ऐसे दौर में फोटोग्राफी करना बड़ा कठिन काम था। 6 दिसंबर के बाद जब इंदौर में एहतियात के तौर पर पुलिस प्रशासन ने कफ्र्यू लगा दिया था और कोई ढील भी नहीं दी। तब मीडिया ने प्रशासन से सवाल किया था कि अन्य शहरों में दंगे होने के बावजूद कफ्र्यू में ढील दी जा रही हैं, तो इंदौर अछूता क्यों? इसका असर यह हुआ कि प्रशासन ने अगले ही दिन सुबह और शाम को कुछ घंटों की ढील दी थी।
  • विषय प्रवर्तन करते हुए इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने रामजन्म भूमि आंदोलन के उस दौर को याद किया और कहा कि उस दौर में पत्रकारिता और फोटोग्राफी करना आसान नहीं था। आज जो अनुभव हमारे वरिष्ठ साझा कर रहे हैं, इससे पत्रकारिता की नई पीढ़ी को लाभ होगा।

इस मौके पर कार्यकारिणी सदस्य राहुल वावीकर, वरिष्ठ पत्रकार संजय जोशी, सुनील जोशी, रवीन्द्र व्यास, के.पी.एस. जादौन, डॉ. कमल हेतावल, राजीव उपाध्याय, राजेंद्र कोपरगांवकर, मांगीलाल चौहान, कैलाश मित्तल, लक्ष्मीकांत पंडित, बी.के. उपाध्याय, विद्युत प्रकाश पाठक, कमलेश सेन, महेश मिश्रा, विनोद शर्मा, प्रवीण जोशी, मार्टिन पिटों, लोकेंद्र थनवार, धमेन्द्र शुक्ला, खन्नू विश्वकर्मा, सोनू मसीह, हर्ष जैन, चेतन मोहनवानी सहित बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी मौजूद थे।

वहीं, अभ्यास मंडल के शिवाजी मोहिते, इंदौर लेखिका संघ की अध्यक्ष विनीता तिवारी, सचिव मणिमाला शर्मा, मराठी साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक अश्विन खरे, विचार प्रवाह साहित्य मंच की प्रचार प्रमुख राधिका मंडलोई, पंच कन्या संस्था की डॉ. समीक्षा नायक, प्रो. अखिलेश राव, दामोदर विरमाल, लोकेंद्र राठौर, किशोर कोडवानी, सुभाष सिंघई, दीपक सिरालकर, डॉ. अजय जैन, बसंत सोनी, प्रांजल शुक्ल, पवन तिवारी, चेतन जोशी, रोहित रघुवंशी सहित अनेक साहित्यिक, बौद्धिक संगठन के लोग उपस्थित थे।