फर्जी वोटर : बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर सियासी बहस तेज हो गई है। विपक्ष सवाल कर रहा है कि आधार और निवास प्रमाण पत्र को मान्यता क्यों नहीं दी जा रही। वहीं, सीमांचल के चार जिलों, कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज और अररिया में आधार कार्ड की संख्या आबादी से ज्यादा है। यहां आधार के आधार पर निवास प्रमाण पत्र भी दिए गए, जबकि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इस क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठ और मुस्लिम आबादी में तेजी से बढ़ोतरी ने जनसांख्यिकी को बदला है, जिससे केंद्र सरकार और चुनाव आयोग चिंतित हैं।
कम समय में वोटर लिस्ट संशोधन, विपक्ष ने उठाए सवाल
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम बहुल इलाकों में हो रहा है। यह समुदाय लंबे समय से विपक्षी महागठबंधन का समर्थन करता रहा है। अब महागठबंधन इस अभियान के विरोध के जरिए मुस्लिम वोटरों को एकजुट करना चाहता है। राज्य में अक्तूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में विपक्ष का कहना है कि सिर्फ तीन-चार महीने में इतनी बड़ी प्रक्रिया को ठीक से पूरा करना मुश्किल है। उनका आरोप है कि जल्दबाजी में की जा रही यह प्रक्रिया कई लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने का बहाना बन सकती है।
किशनगंज में आधार कार्ड की संख्या आबादी से 5% ज्यादा
देश में करीब 90% लोगों के पास आधार कार्ड है, लेकिन बिहार के सीमांचल इलाके में यह संख्या आबादी से भी ज्यादा है। किशनगंज में आधार कार्ड 105.16%, अररिया में 102.23%, कटिहार में 101.92% और पूर्णिया में 101% दर्ज किए गए हैं। यह क्षेत्र सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास है, जो सामरिक रूप से बहुत अहम माना जाता है। चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों के अनुसार, कुछ विधानसभा क्षेत्रों में औसतन 10,000 फर्जी वोटरों की आशंका है। आबादी से ज्यादा आधार कार्ड होना इस संदेह को सही साबित करता है, इसलिए आयोग इस पर विशेष ध्यान दे रहा है।