पाकिस्तान ने एक बार फिर दुनिया को यह दिखा दिया कि वहां सेना और आतंकवाद का गठजोड़ कितना गहरा है। देश के मौजूदा सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल की रैंक दी गई है, जो न सिर्फ पाकिस्तान की सेना में उनका कद बढ़ाता है, बल्कि यह इस बात का भी प्रतीक है कि आतंक को पालने-पोसने वाला व्यक्ति वहां सर्वोच्च पदों पर बैठ सकता है। असीम मुनीर वही शख्स हैं, जिनका नाम भारत विरोधी कई आतंकी हमलों की साजिश में आ चुका है, जिनमें पुलवामा और हाल ही में हुआ पहलगाम हमला भी शामिल है।
एक मदरसे से मिलिट्री की ऊंचाइयों तक
रावलपिंडी में जन्मे असीम मुनीर की शुरुआती पढ़ाई मरकजी मदरसा दार-उल-तजवीद में हुई। उनके पिता एक शिक्षक थे। सेना में उनका प्रवेश पारंपरिक पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी के जरिये नहीं, बल्कि मंगला के ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (OTS) से हुआ, जो अपेक्षाकृत छोटा और कम प्रतिष्ठित मार्ग माना जाता है। हालांकि, वहां उन्होंने ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ जैसा प्रतिष्ठित सम्मान हासिल किया।
तेजी से बढ़ता करियर और ISI का प्रमुख बनना
मुनीर को 23वीं बटालियन, फ्रंटियर फोर्स रेजीमेंट में नियुक्ति मिली और उन्होंने धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत की। साल 2018 में उन्हें आईएसआई (Inter-Services Intelligence) का डायरेक्टर जनरल बनाया गया। वही एजेंसी जो आतंकवादियों को प्रशिक्षण और संरक्षण देने के लिए बदनाम है। इसके अलावा, वे मिलिट्री इंटेलिजेंस के प्रमुख भी रह चुके हैं।
इमरान खान से टकराव और नई पोस्टिंग
2019 में मुनीर और तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच गंभीर मतभेद हो गए, जिसके चलते उन्हें आईएसआई चीफ के पद से हटना पड़ा। हालांकि, सेना की ताकत को देखते हुए उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सका और गुजरांवाला कोर की कमान सौंप दी गई। इसके बाद, 2021 में उन्हें क्वार्टरमास्टर जनरल बना दिया गया, जो एक बार फिर उनकी वापसी की बुनियाद बना।
29 नवंबर 2022 को मुनीर को जनरल कमर जावेद बाजवा की जगह पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इमरान खान उनके विरोध में थे, लेकिन शहबाज शरीफ सरकार ने उन्हें समर्थन दिया। 2024 में उन्होंने संसद से कानून पास करवा कर अपने कार्यकाल को तीन साल से बढ़ाकर पांच साल करवा लिया, जो पाकिस्तान में सेना की हुकूमत की झलक देता है।
भारत के खिलाफ साजिशों का मास्टरमाइंड
मुनीर का असली चेहरा तब सामने आता है जब बात भारत के खिलाफ आतंकी साजिशों की होती है। पुलवामा आतंकी हमले के समय वे आईएसआई प्रमुख थे और हाल ही के पहलगाम हमले की योजना भी उन्हीं की निगरानी में बनी। उनका झुकाव आतंक की ओर किसी से छिपा नहीं है और यही कारण है कि वे आतंकी संगठनों के बीच एक सुरक्षित नाम माने जाते हैं।
फील्ड में विफल, लेकिन ताजपोशी में सफल
भले ही युद्ध के मैदान में मुनीर को कई बार मुंह की खानी पड़ी हो, लेकिन सत्ता के खेल में वे माहिर निकले। फील्ड मार्शल की रैंक देकर शहबाज सरकार ने एक तरफ सेना को संतुष्ट किया, वहीं दूसरी ओर अपने सियासी भविष्य की गारंटी भी खोज ली। यह ताजपोशी एक संदेश है,भले ही भारत से पराजय मिली हो, लेकिन पाकिस्तान में सबकुछ ‘ठीक’ दिखाना ज़रूरी है।