प्रखर – वाणी
हर घर में होली बनकर हमजोली आहिस्ता से बोली…जन – जन ने रंगीनियत बढ़ाकर रंगभरी पिचकारी खोली…जहां पर उमंग – तरंग का ढंग हो…लाल – पीला – हरा – गुलाबी – केसरिया रंग हो…वहां पर्व का आनन्द और द्विगुणित हो जाता है…जब वैमनस्य भुलाकर इंसान भाईचारा बढ़ाता हो…जब प्रेम का रंग मधुर रिश्तों के बदन पर चढ़ता है…तब टेसू भी अपनी खूबसूरती की राह पर बढ़ता है…भारत ऐसा देश है जहां किस्म किस्म के पर्व है…इसी वजह से हमको भारतीय होने पर गर्व है…
होलिका की गोद में बैठकर सारे घृणा के दैत्य जलकर राख हो जाये…नफरत फैलाने वाले पत्थरबाज खुद-ब-खुद जमींदोज होकर खाक हो जाये…इंसानों को बांटने वाले , निर्दोषों को काटने वाले…बाप – बेटे के नहीं बेटे – बाप के नहीं खुद का थूका चाटने वाले…अब न रहे इस जहां में इस तरह के शैतानी फसाने…होली मनाई जाती है गम भगाने लोगों को हंसाने…इस होली पर एक आस एक अरदास युवाओं से है…नशा शान न बन जाए उसे बेअसर करो असर तो माता-पिता की दुआओं से है…अशालीन व अश्लील बरताव शिष्टाचार का परे होता भाव नष्ट कर दो…सौम्यता , सुशीलता व सभ्यता तुम्हारे आचरणों का हिस्सा बने इतना मानवता पर कष्ट कर दो…
फूहड़ता से चारित्रिक दोष लगता है उसका उन्मूलन जरूरी है…जीवन को भंग करती मदिरा व मयशाला से क्यों नहीं बना लेते दूरी है…होली के मस्त रंग भरो ज़िन्दगी की बेरुखी में…मनोविनोद व हास्य पैदा कर दो हर दुखी में…मिलनसारिता का स्वभाव बने सतपथ पर हर इंसान चले…अपनों को अपनापन देने हरदम मिलते रहो गले…होलिका की गोद में बैठकर कुंदन बन बाहर निकलने वाले प्रह्लाद बनो…दुखी और मायूस चेहरों की जिंदगी में खुशी का आल्हाद बनो…रंग बिरंगी पिचकारी बनकर उपकारी समाज का सुधार करे…होली की मित्रता शत्रुता को समाप्त कर इंसानियत का उद्धार करे…ज्ञान का रंग विज्ञान की पिचकारी में भरकर उडाओ…प्रेम की होली में घृणा के कदम मत बढ़ाओ…