फॉरेस्ट-राजस्व सीमा विवाद में ढाई दशक से अटकी Jhinna Mine

स्वतंत्र समय, भोपाल

फॉरेस्ट-राजस्व सीमा विवाद के चलते 25 साल बाद भी कटनी जिले की झिन्ना खदान ( Jhinna Mine ) के प्रकरण का निराकरण नहीं हो पाया है। इस मुद्दे पर राज्य सरकार और वन विभाग कंफ्यूज है। दिलचस्प पहलू यह है कि 1989 में जब खनिज पट्टे का आवंटन हुआ था, तब ये भूमि राजस्व की थी। लेकिन जैसे ही मैसर्स सुखदेव गोयनका के नाम नामांतरण हुआ, तब अचानक भूमि फॉरेस्ट में परिवर्तित हो गई। इस विवाद के चलते सरकार को करोड़ों की रॉयल्टी का नुकसान हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में कटनी का Jhinna Mine विवाद लंबित है

फरवरी 2020 में तत्कालीन मुख्य सचिव ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि इस प्रकरण में न्यायालयीन प्रक्रिया के चलते राजस्व हानि हो रही है। बावजूद इसके, 2017 से सुप्रीम कोर्ट में कटनी का झिन्ना खदान ( Jhinna Mine ) विवाद लंबित है। वहीं इस क्षेत्र में आने वाले 20 गांव के 2000 से अधिक लोग रोजगार से वंचित है। दिलचस्प पहलू यह भी है कि समय-समय पर अधिकारियों के सुर बदलते रहे। ऐसे में विभागीय मंत्री रहे विजय शाह – उमंग सिंघार या फिर नागर सिंह चौहान सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी वापस लेने के लिए अपनी सहमति देते रहे। लेकिन कारोबारियों के बीच अहंकार की लड़ाई में ये सभी बौने साबित हुए है। हाल ही में सीएम यादव से की गई शिकायत में कटनी के खनन कारोबारी आनंद गोयनका मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका को तत्कालीन दिग्विजय सरकार के कार्यकाल में 1994 से 2014 तक की अवधि के लिए 48.562 हेक्टेयर भूमि पर खनिज पट्टा मिला था। दरअसल, ग्राम झिन्ना तहसील ढीमरखेड़ा जिला कटनी के वन क्षेत्र की 48.562 हेक्टेयर भूमि का पुराना खसरा नंबर 310, 311, 313, 314/1, 314/2, 315, 316, 317, 318, 265, 320 में खनिज के लिए एक अप्रैल 1991 में 1994 की अवधि के लिए निमेष बजाज के पक्ष में पट्टा स्वीकृत किया था। जिसे वर्ष 1999 में खनिज विभाग के आदेश से 13 जनवरी 1999 को उक्त खनिज पट्टा मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका प्रोप्राइटर आनंद गोयनका के पक्ष में हस्तांतरित किया गया। लेकिन साल 2000 में वन मंडलाधिकारी कटनी के पत्र के आधार पर कलेक्टर कटनी ने आदेश पारित कर लेटेराइट फायर क्ले और अन्य खनिज के खनन पर रोक लगा दी थी।

सालों से चल रहा Jhinna Mine को लेकर खेल

बताया जाता है कि 2022 मैं तत्कालीन प्रमुख सचिव वन अशोक वर्णवाल ने एसएलपी वापस लेने का निर्णय लिया था। इसके वापस लेने के लिए याचिका तैयार होकर शासकीय अधिवक्ता सलिल चौधरी के पास भेजी गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उसे प्रस्तुत नहीं किया गया। 2022 से एसएलपी वापस लेने की एक्सरसाइज चलती रही। बाद में नागरसिंह चौहान वन मंत्री बने तो उन्होंने भी तत्कालीन एसीएस फॉरेस्ट जेएन कंसोटिया के जरिए सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी वापस लेने नोटसीट लिखी। इस विवाद के चलते नागर सिंह से वन विभाग छीन लिया गया और एसीएस फॉरेस्ट रहे कंसोटिया को भी विभाग से हटाकर प्रशासन अकादमी का डीजी बना दिया गया। नए एसीएस फॉरेस्ट बने अशोक वर्णवाल ने आते ही एसएलपी वापास लेने वाली नोटसीट निरस्त कर दी। इससे यह साबित होता है कि अफसर और मंत्रियों के लिए झिन्ना खदान विवाद की जड़ रही है।